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#WorldBloodDonorDay: रक्तदान से बड़ा कोई दान नहीं, जिंदगी बचाइये

-देश को खून की सख्त जरूरत है, हम सबको सजग होना पड़ेगारांची : खून की कमी के कारण भारत में हर साल हजारों लोगों की जानें चली जाती हैं. देश को खून की सख्त जरूरत है. चिंता की बात यह है कि इस दिशा में कोई खास कदम उठाये नहीं जा रहे हैं. इधर, झारखंड […]

-देश को खून की सख्त जरूरत है, हम सबको सजग होना पड़ेगा
रांची :
खून की कमी के कारण भारत में हर साल हजारों लोगों की जानें चली जाती हैं. देश को खून की सख्त जरूरत है. चिंता की बात यह है कि इस दिशा में कोई खास कदम उठाये नहीं जा रहे हैं. इधर, झारखंड में कई ऐसे ग्रुप हैं कि जो जरूरतमंदों को मदद पहुंचा रहे हैं. ब्लड उपलब्ध करा रहे हैं. इसमें युवा हो या महिला सबकी भागीदारी बढ़ती जा रही है. जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. इसमें सोशल मीडिया की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती जा रही है. कई ग्रुप ब्लड डोनेशन के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे है़ं लोगों को रक्तदान करने के लिए जागरूक कर रहे हैं. ब्लड डोनर्स डे पर कुछ ऐसी ही प्रेरणादायी कहानियों से रूबरू करा रही है पूजा सिंह की यह रिपोर्ट.

-ब्लड नहीं मिलने से पिता की हो गयी मौत:फिर बनाया व्हाट्सएप ग्रुप लहू रक्तदान

कार्तिक शर्मा
यह कहानी हजारीबाग के कार्तिक शर्मा की है़ ब्लड की कमी के कारण उनके पिता की मौत हो गयी़ पिता का साथ छूट गया, लेकिन मन में ख्याल आया कि ऐसी स्थिति दूसरे के साथ न हो़ इसलिए ब्लड डोनेशन को लेकर लोगों को जागरूक करने की योजना बनायी़ लहू रक्तदान नाम से व्हाट्सएप ग्रुप बनाया़ कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स को जोड़ा. अभी इस ग्रुप से 200 से अधिक युवा जुड़े हैं, हालांकि 30-35 ही एक्टिव रहते है़ं अभी तक 85 लोगों को ब्लड उपलब्ध करा चुके हैं. वे खुद तीन महीने में एकबार ब्लड डोनेट करते हैं.

यह है कहानी
कार्तिक शर्मा कहते हैं : पिछले साल पिता जी की तबीयत खराब हो गयी. हजारीबाग से मेदांता रेफर किया गया़ ब्लड की जरूरत थी, लेकिन कोई डोनर नहीं मिला़ मैं खुद ब्लड डोनेट कर चुका था. एक व्यक्ति ब्लड डोनेट करने को तैयार भी हो गया, लेकिन उनका सुबह से शाम तक इंतजार करता रहा गया. इधर पिता जी की हालात खराब होती जा रही थी. रिम्स ले जाते समय ही उन्होंने साथ छोड़ दिया. उनकी मौत ने झकझोर कर रख दिया़ उस दिन अहसास हुआ कि रक्तदान के लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी है.

-खुद के किडनी ट्रांसप्लांट के समय समझ आया ब्लड का महत्व, 15 हजार की कर चुके हैं मदद

कृत्यानंद श्रीवास्तव
गढ़वा के कृत्यानंद श्रीवास्तव को खुद के किडनी ट्रांसप्लांट के वक्त ब्लड का महत्व समझ आया. आज जरूरतमंदों को नि:शुल्क ब्लड उपलब्ध कराते हैं. झारखंड के गांव-गांव में इनकी पहुंच है. इसके लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया. इनके व्हाट्सएप ग्रुप से सैकड़ों लोग जुड़े हुए हैं. अभी तक 15 हजार से अधिक लोगों को ब्लड दिलवा चुके हैं. गढ़वा में 200 युवा हर समय ब्लड डोनेशन के लिए तैयार रहते हैं. कृत्यानंद कहते हैं : मैं खुद बीमारी के कारण रक्तदान तो नहीं कर सकता, लेकिन डोनर्स को उपलब्ध करा देता हूं. केयर इंडिया सोसाइटी का भी गठन कर चुके हैं.

यह है कहानी
कृत्यानंद श्रीवास्तव बताते हैं कि वर्ष 1999 की बात है. खुद का किडनी ट्रांसप्लांट कराना था. डॉक्टर ने ब्लड की आवश्यकता बतायी. परिवार और रिश्तेदारों की मदद से छह यूनिट ब्लड मिल गया. लेकिन इसी दौरान मेरे मन में यह बात आ गयी कि यदि परिवार और रिश्तेदार न होते तो शायद ब्लड मिलना मुश्किल था़ इसी उद्देश्य के साथ मैंने रक्त दान के लिए लोगों को जागरूक करना शुरू किया. आज काफी हद इसमें सफलता मिली है. किसी को ब्लड उपलब्ध कराने के बाद काफी खुशी मिलती है.

-रामगढ़ घाटी में अक्सर हादसे होते रहते हैं घायलों की मदद के लिए बनाया ग्रुप

कुंदन तिवारी
रांची के रहनेवाले कुंदन तिवारी ने ब्लड एकत्रित करने के एक वाट्सएप ग्रुप बनाया है. इस ग्रुप का नाम है अरजेंट ब्लड डोनर ग्रुप. इस ग्रुप की खासियत है कि इसमें ज्यादातर युवा शामिल हैं. सभी लोगों को रक्तदान करने के लिए जागरूक करते हैं. साथ ही जरूरतमंदों को ब्लड मुहैया कराते हैं. इस ग्रुप में सैकड़ों लोग शामिल हैं. हालांकि एक्टिव मेंबर्स करीब 50 हैं. व्हाट्सएप पर मैसेज आते ही जरूरतमंद को किसी तरह ब्लड मिल जाये, इसकी कोशिश में लग जाते हैं. डोनर से बात की जाती है. यदि ग्रुप से मदद नहीं मिलती है, ताे इस सूचना को दूसरे ग्रुप में भेज दिया जाता है. या फेसबुक पर मैसेज पोस्ट कर देते है़ं इससे ब्लड डोनेट करनेवाले इच्छुक लोग सामने आते है़ं इस तरह से लोगों की मदद करने का मौका मिलता है.

यह है कहानी
कुंदन तिवारी ने बताया कि रामगढ़ घाटी में अक्सर सड़क दुर्घटना होती रहती हैं. इस कारण लोगों की मदद के लिए पिछले साल व्हाट्सएप ग्रुप बनाया. अब तक सात बार ब्लड डोनेशन कैंप भी लगा चुके है़ं ग्रुप के सदस्य यश ने बताया कि इस ग्रुप से काफी मदद मिली़ सोशल मीडिया के माध्यम से रेयर ब्लड ग्रुप भी मिल जाता है़ मैं अभी तक पांच बार रक्तदान कर चुका हूं.

-महाशिवरात्रि का उपवास तोड़ थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को डोनेट किया अपना ब्लड

शालिनी खन्ना
धनबाद की रहनेवाली शालिनी खन्ना खुद पांच बार ब्लड डोनेट कर चुकी हैं. साथ ही महिलाओं को रक्तदान करने के लिए जागरूक कर रही हैं. वह बताती हैं कि पिछले वर्ष उड़ान हौसलों की नाम से एक ग्रुप बनाया. रक्तदान शिविर लगाया गया. इसमें 125 महिलाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया, लेकिन 34 महिलाओं ने ही ब्लड डोनेट किया. 2018 में 22 महिलाओं ने रक्तदान किया़ फिर महिलाओं में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से रक्तदान महादान ग्रुप बनाया गया. इस ग्रुप में 200 से अधिक महिला-पुरुष रक्तदाता हैं.

यह है कहानी
शालिनी खन्ना बताती हैं कि पहले मुझे सुई से भी डर लगता था, लेकिन लोगों की मदद के लिए हिम्मत की. अभी तक पांच बार रक्तदान कर चुकी हूं. एक बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चे को ब्लड की जरूरत थी. मैंने महाशिवरात्रि का उपवास तोड़ उस बच्चे को ब्लड डोनेट किया. महिलाओं को रक्तदान के प्रति जागरूक करने के लिए व्हाट्सएप और फेसबुक पेज बनाया, ताकि जरूरतमंदों को ब्लड डोनर मिल जाये़ इस अभियान में महिलाओं ने अहम भूमिका निभायी. सोशल मीडिया के माध्यम से कई लोगों की मदद करने का मौका मिल रहा है़

-जरूरत के हिसाब से टाइमलाइन लिख कर टैग करते गये और दूसरों को मदद मिलती गयी

मयंक राय
देवघर के मयंक राय अपने पांच दोस्तों के साथ मिल कर रक्तदान नाम से ग्रुप बना कर लोगों की मदद कर रहे है़ं इस ग्रुप में साथ रहे हैं दीपक सिंह राजपूत, सुमित झा, राहुल झा और अनय पाठक. यह ग्रुप लोगों को ब्लड डोनेशन के लिए जागरूक कर रहा है. अभी तीन-तीन व्हाट्सग्रुप चला रहे हैं. प्रत्येक ग्रुप से 250-250 लोग जुड़े हैं. मयंक कहते हैं कि 2016 से अब तक 3000 लोगों की मदद पहुंचा चुके हैं. इसमें फेसबुक से काफी मदद मिली़ जरूरत के हिसाब से टाइमलाइन लिख कर टैग करते गये और लोगों की मदद मिलती गयी. वे कहते हैं कि देश के 10-12 राज्यों में हमारे को-ऑर्डिनेटर हैं.

यह है कहानी
मयंक बताते हैं कि 2016 में एक लड़की को ब्लड की जरूरत थी़ काफी अधिक ब्लीडिंग के कारण डॉक्टर ने चार यूनिट ब्लड की जरूरत बतायी. इसके बारे में हम दोस्तों काे मालूम चला. हमलोगों ने ब्लड डोनेट किया़ इसके बाद ब्लड डोनेट करने के लिए लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया गया. मेरा आम लोगों को यही संदेश है कि आपको खुद में बदलाव लाना होगा. अपने अंदर पनप रही मिथ्या को दूर कर ब्लड बैंक तक रक्तदान करने के लिए पहुंचना होगा.

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