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इक्विटी बाजार में निवेश के साथ टैक्स सेविंग का विकल्प है यूलिप और ईएलएसएस

II प्रभाकर कुमार II सीनियर एआरडीएम, रिलायन्स निपॉन लाइफ इन्श्योरेंस यूलिप और ईएलएसस दोनों में से किसी एक का चुनाव करना थोड़ा मुश्किल होता है. ये दोनों ही इक्विटी में निवेश करने के विकल्प के साथ ही आयकर में छूट प्राप्त करने में भी मदद करते हैं. आप अपनी जरूरतों और सुविधाओं के अनुसार इनमें […]

II प्रभाकर कुमार II
सीनियर एआरडीएम,
रिलायन्स निपॉन लाइफ इन्श्योरेंस
यूलिप और ईएलएसस दोनों में से किसी एक का चुनाव करना थोड़ा मुश्किल होता है. ये दोनों ही इक्विटी में निवेश करने के विकल्प के साथ ही आयकर में छूट प्राप्त करने में भी मदद करते हैं. आप अपनी जरूरतों और सुविधाओं के अनुसार इनमें से किसी का चयन कर सकते हैं.
यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP) बीमा के साथ निवेश करने का एक विकल्प है. सामान्यतया इसे बीमा कंपनियां बेचती हैं. इसमें निवेश करनेवालों को इक्विटी, डेट, हाइब्रिड और मनी मार्केट फंड्स में निवेश करने का मौका मिलता है. मिनिमम सम एश्योर्ड एनुअल प्रीमियम का 10 गुना (अगर निवेश शुरू करते वक्त उम्र 45 साल से ज्यादा हो तो सात गुना) होता है.
दूसरी ओर इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ELSS) डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स हैं. इनमें लगाया गया पैसा शेयरों में निवेश किया जाता है. ये विशुद्ध रूप से इनवेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट्स हैं और इनमें किसी भी तरह का बीमा नहीं मिलता है. दोनों को लेकर भ्रम संभवत: इसलिए पैदा होता है कि दोनों ही इक्विटी मार्केट्स में निवेश करते हैं और दोनों ही टैक्स सेविंग विकल्प हैं.
लॉक-इन पीरियड
यूलिप में लॉक-इन पीरियड पांच वर्षों का और ईएलएसएस में तीन वर्षों का होता है. इसका अर्थ यह है कि इससे पहले अगर आप अपना निवेश निकालेंगे, तो यूलिप के मामले में आपको सरेंडर करने का शुल्क देना होगा.
इसकी गणना आमतौर पर फंड या वार्षिक प्रीमियम के पर्सेंटेज के रूप में की जाती है. अगर आप शुरू में ही एग्जिट करें, तो यह चार्ज ज्यादा होता है. ईएलएसएस फंड्स के मामले में चूंकि आप तीन वर्षों से पहले निवेश निकाल ही नहीं सकते, लिहाजा कोई एग्जिट लगने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इक्विटी इनवेस्टमेंट से आपको 7-10 वर्षों की लंबी अवधि में ही अच्छा रिटर्न मिलता है. यूलिप के मामले में यह पीरियड आमतौर पर 10-15 वर्षों का है.5 वर्ष का न्यूनतम लॉक इन पीरियड होता है यूलिप में.
3 वर्ष का लाॅक इन पीरियड होता है ईएलएसएस में
टैक्स का मामला
इन दोनों विकल्पों में किये गये निवेश पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये तक की छूट मिलता है. ईएलएसएस में किये गये निवेश से प्राप्त होने वाले रिटर्न लांग टर्म कैपिटल गेन के तहत आता है और नये बजट प्रस्ताव के बाद एक लाख से अधिक की आय पर 10 फीसदी का टैक्स लग जायेगा.
यूलिप में अगर आप लॉक-इन पीरियड के पहले सरेंडर कर दें तो पहले लिया गया कोई भी डिडक्शन रिवर्स हो जाता है और आपको टैक्स चुकाना पड़ता है. मैच्योरिटी अमाउंट केवल उस सूरत में टैक्स फ्री होता है, जब पॉलिसीहोल्डर की डेथ हो जाती है या प्रीमियम कुल बीमित राशि के 10 प्रतिशत से कम हो. अगर प्रीमियम सम इंश्योर्ड के 10 प्रतिशत से ज्यादा हो, तो मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम को आय में जोड़ दिया जाता है और उसपर अायकर देय होता है.
2.5% एक्सपेंस रेशियो ईएलएसएस में लगता है
शुल्क और पारदर्शिता
ईएलएसएस में केवल एक शुल्क लगता है जिसे फंड मैनेजमेंट फी या एक्सपेंस रेशियो कहा जाता है. यह अधिकतम 2.5 फीसदी हो सकता है और यह लागत स्कीम की नेट एसेट वैल्यू में एडजस्ट की जाती है. यूलिप में लगभग 60 % तक शुल्क पहले कुछ वर्षों में ले लिये जाते हैं. इनमें प्रीमियम एलोकेशन चार्ज, मॉर्टेलिटी चार्ज, फंड मैनेजमेंट फी, एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज, फंड स्विचिंग चार्ज और सर्विस टैक्स डिडक्शन शामिल होते हैं.
स्विच ऑपशन
यूलिप में स्विच ऑप्शन उपलब्ध है. इसका अर्थ यह है कि इक्विटी, डेट, हाइब्रिड आदि विभिन्न फंड्स में आप निवेश की गयी रकम का अनुपात बदल सकते हैं. इससे आपको जीवन के विभिन्न चरणों में रिस्क के मुताबिक अपने फंड्स में बदलाव करने का मौका मिलता है. ईएलएसएस के मामले में ऐसा कोई विकल्प नहीं होता है. हालांकि समय-समय पर प्रॉफिट बुक करने के लिए आप डिविडेंड ऑप्शन चुन सकते हैं.
यूलिप में बीमा कवरेज
इसमें निवेश करनेवालों को इक्विटी में निवेश करने के साथ ही जीवन बीमा का भी लाभ मिलता है जिसमें मिनिमम सम एश्योर्ड एनुअल प्रीमियम का 10 गुना होता है.
यूलिप टैक्स फ्री रिटर्न प्राप्त करने का अवसर देता है. यूलिप मैचुरिटी या सिरेंडर की राशि निवेशक की आय का हिस्सा नहीं होती है और पूरी तरह कर मुक्त होती है.
निवेश का अच्छा विकल्प है यूलिप
संसद के बजट सत्र में 2018- 19 के लिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन और म्यूचुअल फंड पर निवेशक का तवज्जो काफी अहम रहा. यह निवेशकों के बीच काफी लोकप्रिय है लेकिन लोग यह नहीं जानते कि म्यूचुअल फंड निवेश की प्रकृति और अवधि तय करती है कि निवेश से प्राप्ति पर कर का स्वरूप क्या होगा. इक्विटी और बैलेंस फंड में 12 माह से कम का निवेश शॉर्ट टर्म कहलाता है जबकि डेट फंड के लिए यह अवधि 36 माह की है. इक्विटी सहित सभी फंडों में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन एक वर्ष में अगर एक लाख से अधिक है तो उस पर 10% टैक्स का प्रस्ताव किया गया है.
चूंकि यूलिप बीमा उत्पाद है, इसलिए निवेशक को निवेशित राशि का न्यूनतम 10 गुना बीमा भी हासिल होता है.यूलिप आयकर अधिनियम की धारा 80सी के अधीन कर लाभ योग्य होता है.यूलिप में निवेश को एक साथ इक्विटी बैलेंस या डेट फंड में निवेशित किया जा सकता है. जबकि ईएलएसएस में केवल इक्विटी में ही निवेश किया जाता है.
यूलिप में निवेशक को फंड स्विचिंग की सुविधा भी प्राप्त होती है, जो ईएलएसएस फंड में नहीं है.लॉक इन पीरियड के बाद यूलिप एक सेविंग अकाउंट की तरह कार्य करता है, जिसमें आंशिक तौर पर धन निकालने के बाद भी ग्राहक यूलिप में बना रहता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि यूलिप से प्राप्त रिटर्न को आयकर की धारा 10 (10) डी का कवच प्राप्त होता है. इसमेंं कर मुक्त राशि की कोई ऊपरी सीमा निर्धारित नहीं है.ईएलएसएस बेहतर निवेश विकल्प है
अगर हम निवेश की दृष्टि से दोनों की तुलना करें, तो यह स्पष्ट है कि अगर निवेश के लिए ईएलएसएस ही बेहतर विकल्प है. हां, यह बात सही है कि इसमें बीमा नहीं जुड़ा होता, परंतु बीमा के लिए बहुत सारे विकल्प बाजार में उपलब्ध हैं. इनमें से टर्म पॉलिसी लिया जा सकता है.
ईएलएसएस में यूलिप की तुलना में एडमिनिस्ट्रेटिव चार्जेज कम होते हैं.
ईएलएसएस में मात्र तीन साल का ही लॉक इन पीरियड होता है, जबकि यूलिप को कम से कम पांच साल तक चलाना पड़ता है.पिछले पांच परफामेंस को देखते हुए ईएलएसएस ने यूलिप की तुलना में बेहतर रिटर्न दिया है.
यूलिप में बीमा के प्रीमियम का भी भुगतान पूरे टर्म तक चलता है. परिपक्वता पर उसमें टैक्स नहीं लगने पर भी जो रिटर्न प्राप्त होता है, उसकी तुलना में ईएलएसएस अगर पांच वर्ष तक चलाया जाये, तो उसमें अधिक रिटर्न की संभावना रहती है.
– ललित त्रिपाठी, निदेशक, वेदांत ऐसेट एडवाजर्स

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