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सुस्त व कमजोर बना रही है विटामिन बी-12 की कमी…जानें क्‍या है बचाव के उपाय

व्यस्त जीवनशैली और शहर की दौड़-भाग वाली जिंदगी में लोगों को अपने लिए बहुत कम वक्त मिल पाता है. ऐसे में छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं को लोग नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन कई बार ये छोटी-छोटी समस्याएं ही आगे चलकर बड़ी हो जाती हैं. एक नये रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि चेन्नई में […]

व्यस्त जीवनशैली और शहर की दौड़-भाग वाली जिंदगी में लोगों को अपने लिए बहुत कम वक्त मिल पाता है. ऐसे में छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं को लोग नजरअंदाज कर देते हैं.
लेकिन कई बार ये छोटी-छोटी समस्याएं ही आगे चलकर बड़ी हो जाती हैं. एक नये रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि चेन्नई में हर पांच में से एक आदमी में विटामिन बी-12 की भारी कमी है. यह रिसर्च तीन लाख लोगों पर किया गया था, जिनमें दो लाख महिलाएं शामिल थीं. इनमें से ज्यादातर लोग वेजिटेरियन हैं. इस रिसर्च में यह सामने आया कि 9 शहरों के लगभग 15% लोगों में इस विटामिन की मात्रा सामान्य से कम है.
महिलाओं में अक्सर प्रेग्नेंसी के दौरान इसकी कमी का पता चल जाने से इसका इलाज हो जाता है. लेकिन पुरुष अक्सर इसके लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं और कोई जांच नहीं कराते. अतः महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में यह समस्या ज्यादा पायी जाती है.
क्या है विटामिन बी-12
विटामिन बी-12 में कोबाल्ट धातु पाया जाता है, जो शरीर के संतुलित कार्य प्रणाली के लिए बेहद आवश्यक है. यह खून की कमी नहीं होने देता, साथ ही लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है. हमारा शरीर विटामिन बी-12 का उत्पादन नहीं कर सकता. अतः छोटी आंतों द्वारा इसका भोजन में से अवशोषण किया जाता है, जिसे लीवर स्टोर कर रखता है. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और तनाव को भी कम करता है. इस कारण इसे एंटी स्ट्रेस विटामिन भी कहते हैं.
क्या है कमी का कारण
समय के अभाव में सही डायट नहीं लेने और कुछ भी खाते रहने की आदत बी-12 की कमी की बड़ी वजह है. यह केवल एनिमल प्रोड्क्ट्स जैसे मीट, अंडा, डेयरी प्रोड्क्ट्स में ही पाया जाता है.
वनस्पति से प्राप्त होनेवाले भोजन में यह बिल्कुल नहीं पाया जाता. आजकल बढ़ते वेगान कल्चर से भी लोगों में इसकी कमी बढ़ी है. ऐसे लोग डेयरी प्रोड्क्ट्स को भी मांसाहार की श्रेणी में रखते हैं और उसका सेवन नहीं करते. इसकी कमी से सुस्ती, कमजोरी, खून की कमी, कमजोर पाचन शक्ति, सिरदर्द, त्वचा में पीलापन, धड़कन तेज होना, मुंह में छाले, आंखों में कमजोरी, अवसाद, भ्रम, अनियमित मासिक जैसे लक्षण नजर आते हैं.
दादी-नानी के नुस्खे
दैनिक जीवन में लोग कई छोटी-छोटी समस्या का सामना करते हैं और इलाज के तौर पर एलोपैथिक दवाएं लेते हैं. इसका साइड इफेक्ट भी हो सकता है. जबकि बुजुर्गों के बताये कई नुस्खे हैं, जो सदियों से आजमाये जा रहे हैं और बेहद प्रभावी भी हैं. जानिए कुछ उपाय.
बच्चे को सर्दी लगने पर कोल्ड डायरिया हो सकता है. ऐसे में एक चुटकी अजवाइन को 6-7 चम्मच पानी में मिलाकर धीमी आंच पर उबाल लें. इसमें थोड़ी मिश्री डाल दें. इसे दिन भर में तीन-चार बार दें. सर्दी भर यह घोल पिलाने से बच्चा इन्फेक्शन व मौसमी रोगों से बचा रहेगा.
बच्चे के पेट में कीड़े हो, तो तुलसी पत्तियों को गुड़ के साथ पीसकर रोज बच्चे को खिलाएं. इससे समस्या खत्म होगी, साथ ही शरीर में खून भी बढ़ेगा.
सर्दी में बाल काफी ड्राई होने से रूसी के साथ बाल झड़ने की समस्या होती है. बालों में तेल की मसाज के बाद उसे गर्म पानीवाले तौलिये से स्टीम दें. इससे बालों में तेल गहरे पहुंचता है व उसे मजबूती मिलती है.
गायनी सलाह
आजकल ब्रेस्ट कैंसर के मामले काफी सामने आ रहे हैं. महिलाएं डॉक्टर के पास जाने में संकोच करती हैं. इसके लक्षणों को खुद से कैसे पहचानें, ताकि पहले ही अलर्ट हुआ जा सके?
डॉ मोनिका अनंत
असिस्टेंट प्रोफेसर,
(ओ एंड जी) एम्स, पटना
स्तन में होनेवाली गांठ को समय रहते निकाल दिया जाये, तो कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है. स्तन की जांच आप नहाते समय कर सकती हैं. अपने एक हाथ को अपने सिर के पीछे ले जाएं तथा दूसरे हाथ से स्तन के ऊपरी हिस्से से लेकर अपने कांख तक के हिस्से को दबा कर देखें. स्तन कैंसर के 50 % मामले इन्हीं हिस्सों मे देखने को मिलते हैं.
उंगलियों के अगले हिस्से को स्तनों के ऊपर गोल-गोल घुमाते हुए ट्यूमर की जांच करें. नहाने के बाद आइने के सामने खड़े होकर देखें कि उसमें डिंपल, लालीपन या सूजन तो नहीं. स्तन कैंसर की पहचान जल्दी होने से सफल उपचार की संभावना बढ़ जाती है. पीरियड के कुछ दिनों बाद जांच करना अच्छा समय माना जाता है.
इलाज की प्रक्रिया : स्तन में किसी प्रकार का गांठ होने पर सबसे पहले मेमोग्राफी कराया जाता है.फिर एफएनएसी कराया जाता है. अंत में बायोप्सी रिपोर्ट आने के बाद पुष्टि की जाती है. सर्जरी द्वारा लंप यानी ट्यूमर या पूरे स्तन को निकाल दिया जाता है. रेडियोथेरेपी एवं कीमोथेरेपी इलाज की सामान्य प्रक्रिया है, जिसमें विकिरण की मदद से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है.
इएनटी रोग
यदि कोई बच्चा जन्मजात बधिर है, तो क्या उपचार द्वारा वह ठीक हो सकता है? इस समस्या को शिशु में कैसे पहचाना जा सकता है? उपचार के तौर पर कोई कारगर सर्जरी हो, तो बताएं.
डॉ क्रांति भावना
असिस्टेंट प्रोफेसर
इएनटी, एम्स, पटना
बहरापन जन्मजात हो, तो बोलने की क्षमता भी क्षीण होने लगती है. नहीं सुन पाने के कारण ऐसे बच्चे अक्सर भाषा सीख नहीं पाते हैं. इनके गले या जीभ में कोई विकार नहीं होता.
चूंकि ये सुनते नहीं हैं, इसलिए बातचीत नहीं करते. अक्सर लोग भाषा के विकास न होने का कारण जीभ का विकार को समझते हैं, जो गलत है. अगर शिशु तीन-चार महीने तक आवाज की ओर ध्यान न दे, तो डॉक्टरी सलाह लें. अगर एक-दो साल का बच्चा कुछ न बोले तब भी यह चिंता का विषय है. ‘म’ ‘ब’ एवं ‘प’ अक्षर से शुरू होनेवाले शब्द होठ से बोले जाते हैं.
अत: बधिर बच्चे भी मामा, पापा, बाबा बोल लेते हैं, परंतु अधिक जटिल शब्द उच्चारित नहीं कर पाते. ऐसे बच्चों को जल्द कान, नाक, गला विशेषज्ञ के पास ले जाएं. मूक-बधिर बच्चों का इलाज मुश्किल तो है, पर नामुमकिन नहीं. आज कॉक्लियर इंप्लांट द्वारा ऐसे बच्चों को सुनने की शक्ति प्रदान की जा सकती है. सुननेवाले बच्चे धीरे-धीरे भाषा भी सीख लेते हैं. यह एक ऐसा यंत्र है, जो सर्जरी द्वारा कान के अंदर लगाया जाता है. ध्यान रखना जरूरी है कि जन्मजात बहरेपन का इलाज जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी बच्चा बोलने लगता है.
किनको है ज्यादा खतरा
जो लोग पाचन तंत्र की समस्या से ग्रस्त होते हैं, उनमें विटामिन बी-12 की कमी ज्यादा होती है. अतः 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में भी इसकी कमी होने की संभावना ज्यादा होती है.
इसके अलावा जिन लोगों ने वजन कम करने के लिए या किसी भी तरह की पेट की सर्जरी करायी हो, उनमें भी इस विटामिन की कमी पायी जाती है. लंबे समय तक शराब पीने और एसिडिटी की दवा लेने से भी शरीर में इस विटामिन को स्टोर करने की क्षमता कम होने लगती है.
ज्यादा कमी से कॉम्प्लिकेशंस
सोनिया सिन्हा
डायटीशियन,
ओबेसिटी मैनेजमेंट एक्सपर्ट
fitfoody.in
विटामिन बी-12 हमारे दिमाग और नर्वस सिस्टम को स्वस्थ बनाये रखता है. इसकी कमी अल्जाइमर, हृदय रोग, ब्रेन डैमेज, एनीमिया, गैस्ट्रोइंटेसटाइनल प्रॉब्लम्स आदि को बढ़ावा देती है. इसलिए इसकी मात्रा शरीर में सही बनाये रखने के लिए भोजन में एनिमल बेस्ड फूड का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए. दूध से ज्यादा यह विटामिन दही में पाया जाता है.
अतः दही का नियमित सेवन भी इसके लिए अच्छा है. नॉनवेज फूड में जानवरों के लिवर और अंडे के पीले भाग में यह काफी मात्रा में पाया जाता है. जो लोग डेयरी प्रोडक्ट्स और नॉनवेज नहीं खा सकते हैं, वे मार्केट में मिलनेवाले विटामिन बी-12 एडेड फूड प्रोडक्ट्स को अपने डायट में शामिल कर सकते हैं. अधिक मात्रा में इसकी कमी होने पर डॉक्टर की सलाह से दवाएं और इंजेक्शन दी जाती हैं.
बातचीत : पूजा कुमारी
दंत रोग
मैं खैनी, गुटखा आदि का सेवन करता हूं. कुछ समय से मुंह के भीतर सफेद दाग दिख रहे हैं. कहीं यह कैंसर तो नहीं?
– महादेव मंडल, रांची
डॉ अभिषेक हल्दर
दांत रोग विशेषज्ञ कोलकाता
मुंह के भीतर सफेद धब्बे को चिकित्सीय भाषा में प्री- कैंसरस डिजीज कहते हैं. इसे हम कैंसर का संकेत कह सकते है. लेकिन जरूरी नहीं कि यह हमेशा कैंसर का आकार ले. मगर जो व्यक्ति शराब व सिगरेट दोनों का सेवन करते हैं, उन्हें इसका खतरा ज्यादा रहता है. इसका इलाज संभव है. मुंह में होनेवाली कैंसर भारत के अन्य कैं‍सर की तुलना में आम है.
एक रिपोर्ट के अनुसार 10 कैंसर के मरीजों में चार मुंह के कैंसर के शिकार पाये जाते हैं. सफेद दाग से कैंसर के चपेट में आनेवाले मरीजों को मुंह खोलने में परेशानी होती है. दवा व लेजर सर्जरी द्वारा इलाज होता है. कई बार टेढ़े या नुकीले दांतों के कारण भी मुंह के भीतर सफेद दाग हो सकता है. इस स्थिति में ऐसे दांत को निकाल दिया जाता है. वहीं मधुमेह, उच्च रक्तचाप, के मरीज भी इसके चपेट में आ सकते हैं.

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