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ऑटोमेशन से बदलेगी भारत में खेती की तस्वीर…जानें कैसे

एग्री टेक विकसित देशों के मुकाबले भारत में अधिकतर फसलों की पैदावार प्रति एकड़ काफी कम है. इसका एक बड़ा कारण खेती में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल अब तक बहुत कम होना है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय कृषि क्षेत्र में यदि आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाये, तो फसलों की पैदावार में व्यापक […]

एग्री टेक
विकसित देशों के मुकाबले भारत में अधिकतर फसलों की पैदावार प्रति एकड़ काफी कम है. इसका एक बड़ा कारण खेती में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल अब तक बहुत कम होना है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय कृषि क्षेत्र में यदि आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाये, तो फसलों की पैदावार में व्यापक पैमाने पर बढ़ोतरी हो सकती है.
सेंसर, अॉटोमेशन और इंजीनियरिंग की अनेक विधाओं का इस्तेमाल करते हुए भारत में खेती की दशा को बदलना असंभव नहीं है. कैसे हो सकता है यह सब और इससे जुड़े विविध पहलुओं को रेखांकित कर रहा है आज का इंफो टेक पेज …
पिछले कई दशकों से हम भारतीय कृषि की दयनीय तसवीरों को देखते आ रहे हैं. बाढ़ और अकाल से जूझते, कीड़े लगने से बर्बाद हाे चुकी फसलों और संसाधनों के अभाव के बीच पैदावार बढ़ाने के लिए संघर्ष करते किसानों की कहानी आप लगातार खबरों में देखते-पढ़ते रहे हैं.
लेकिन, अब समय बदल रहा है और टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के दौर में तकनीकी विशेषज्ञों को उम्मीद है कि वर्ष 2020 तक भारतीय कृषि जगत में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है. सेंसर, ऑटोमेशन और इंजीनियरिंग विधाएं इस क्रांतिकारी बदलाव में अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं. माना जा रहा है कि इनके बेहतर इस्तेमाल से भारतीय कृषि परिदृश्य में मौजूदा समय में दिख रही तकरीबन सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.
किसानों के लिए सॉफ्टवेयर
एग्रीकल्चर नॉलेज ऑनलाइन ने किसानों के लिए एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया है, जिससे उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. इस सॉफ्टवेयर के जरिये भारतीय किसान इजराइल के विशेषज्ञों से मदद ले सकता है.
फसलों में सेंसर
भारतीय किसान पिछली करीब एक सदी से खेतों में खाद डालने और दवा छिड़कने के लिए निर्धारित मैनुअल या गाइडलाइन का इस्तेमाल करते आ रहे हैं.
स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय और कृषि में शोधकार्य करनेवाली एजेंसियां इनके इस्तेमाल के तरीके और मात्रा के बारे में विविध किस्म की सूचनाएं तो मुहैया कराती हैं, लेकिन आम तौर पर वे सूचनाएं सभी खेतों और किसानों के लिए एकसमान होती हैं. मिट्टी और खेतों के विविध स्वरूपों को देखते हुए अलग-अलग रूप में सूचना हासिल करने की जरूरत है. क्रॉप सेंसर का विकास धीरे-धीरे इस हालात में बदलाव ला रहा है. भविष्य में ये सेंसर यह बताने में सक्षम होंगे कि किस तरह की मिट्टी में कैसे पोषक तत्वों की जरूरत है.
वर्टिकल फार्मिंग से कई लेयर में होगी खेती
शहरीकरण और औद्योगिकरण जैसे कारणों से खेती योग्य जमीन का दायरा दिन-ब-दिन सिमटता जा रहा है. खेती योग्य जमीन की बढ़ती कीमतों और इनके इस्तेमाल में बदलाव आने के कारण भविष्य में इसमें और कमी आयेगी.
अनेक वैश्विक खाद्य संगठन यह आशंका जता रहे हैं कि खेती और इसके उत्पाद महंगे होने के कारण आम आदमी के लिए भोजन मुहैया करा पाना मुश्किल हो सकता है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक नये विकल्पों पर ध्यान दे रहे हैं. वर्टिकल खेती यानी कई लेयर में की जाने वाली खेती के सिस्टम को ऐसे डिजाइन किया गया है, ताकि इसे शहरों में बनी इमारतों पर बिना मिट्टी के अंजाम दिया जा सके. इसमें केवल पानी और कृत्रिम रोशनी के इस्तेमाल से कम-से-कम खर्च में खेती की जायेगी. इससे लागत तो कम होगी ही, साथ ही उत्पाद ज्यादा बेहतर होंगे. चीन के कई शहरों में इसकी शुरुआत हो चुकी है.
ऑटोमेटिक ट्रैक्टर
जीपीएस आधारित स्वचालित ऑटोमेटिक ट्रैक्टर के इस्तेमाल से खेती में मानवीय भूल की गुंजाइश को बेहद कम किया जा सकता है. भारत जैसे देश में जहां 90 फीसदी से ज्यादा खेतों का आकार विकसित देशों के मुकाबले कम है, ट्रैक्टर से खेती के लिए निर्धारित कुशलता की जरूरत होती है.
स्वचालित ट्रैक्टर इस कार्य को ज्यादा आसानी से कर सकता है. इस तकनीक के जरिये खेती होने से किसान दूर बैठे हुए ही खेती संबंधी कार्यों को अंजाम दे पायेगा. ट्रैक्टर बनानेवाली अधिकतर बड़ी कंपनियां इस दिशा में अग्रसर हैं. उम्मीद जतायी जा रही है कि भारत में जल्द ही इसका इस्तेमाल होगा़
फार्मिंग में बिग डाटा
मौजूदा समय में विविध क्षेत्रों में बिग डाटा का इस्तेमाल बढ़ रहा है़ ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने उम्मीद जतायी है कि खेती के आंकड़ों के बड़ी तादाद में एकत्रित होने और इन आंकड़ों के विश्लेषण से हासिल नतीजों के आधार पर रीयल-टाइम में जरूरी फैसले लेने से कृषि में तेजी से सुधार किया जा सकता है.
डाटा एनालिटिक्स और समग्र सूचना के आधार पर लिये गये फैसले से इसमें बड़े स्तर की विश्वसनीयता, स्थिरता और शुद्धता को सुनिश्चित किया जा सकता है.
गायों के लिए फिटनेस ट्रैकर
फिट-बिट्स के विकास ने इनसान के फिटनेस में क्रांतिकारी परिवर्तन किया. एक भारतीय स्टार्टअप ने गायों के लिए भी इस तरह का सिस्टम विकसित किया है. आइओटी यानी इंटरनेट अॉफ थिंग्स इस तकनीक के इस्तेमाल से गायों के सोने, जागने और खाने जैसी सामान्य गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है.
एग्री रोबोट्स
मजदूरी की लागत बढ़ने और कई इलाकों में मजदूरों की कमी के कारण खेती के विविध कार्यों में रोबोट का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. मैनुअल लेबर की जगह खेती में भी ऑटोमेशन जगह बना रहा है और इस पूरे सिस्टम में बदलाव आ रहा है. भविष्य में इन कार्यों के लिए एग्री रोबोट का इस्तेमाल बढ़ने की उम्मीद है :
रोबोट स्वार्म्स
भविष्य में यदि आप बड़े खेतों में रोबोट स्वार्म्स यानी झुंड में सैकड़ों एग्री रोबोट काम करते हुए देखें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ये सभी रीयल-टाइम आंकड़े एकत्रित करेंगे और उनके विश्लेषण से यह आसानी से पता चलेगा कि खेत में नमी और पोषकता की क्या दशा है. और इसके मुताबिक इन समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा.
इजराइल में रोबोटिक स्वार्म्स का बड़े पैमाने पर सफल परीक्षण किया जा चुका है और यहां इसका व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है. यही कारण है कि आबादी के मुकाबले बहुत ही कम खेती योग्य भूमि वाला यह देश अपनी पूरी आबादी का पेट भरने में सक्षम होता है. इस संबंध में यूरोपियन यूनियन एक खास प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, जिसके जरिये मोबाइल एग्रीकल्चर रोबोट स्वार्म्स पर शोध जारी है.
विशेषज्ञ की राय
कम जमीन और पानी के इस्तेमाल से तकनीक के जरिये सबसे ज्यादा पैदावार इजराइल के किसान ले रहे हैं. हमें उनकी तकनीक और कार्यप्रणाली को अपनाना चाहिए. इससे हम पैदावार बढ़ा सकते हैं
– डॉक्टर एम एच जिलानी,
कृषि वैज्ञानिक, पंतनगर यूनिवर्सिटी
तकनीकी क्रांति और ऑटोमेशन के युग में देश के अधिकतर हिस्सों में अब भी परंपरागत तरीके से खेती होती है. कृषि में ऑटाेमेशन को बढ़ावा देने से लागत में कमी आयेगी और फसलों की पैदावार की बढ़ोतरी को सुनिश्चित किया जा सकेगा.
– डॉक्टर सुभाष सिंह,
कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र

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