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सेना के खिलाफ लेख पाकिस्तान में हो गया सेंसर, छोड़ी गयी खाली जगह

इस्लामाबाद : पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद हनीफ ने न्यू यॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा था, जिसमें पाक सेना को लेकर कुछ तथ्यात्मक टिप्पणी थी. ट्राएंगिल ऑफ हेट शीर्षकवाले लेख में पाकिस्तानी सेना के भारत विरोधी एजेंडे का जिक्र था. न्यू यॉर्क टाइम्स के अंतरराष्ट्रीय संस्करण में यह लेख छपा, लेकिन पाकिस्तान संस्करण के […]

इस्लामाबाद : पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद हनीफ ने न्यू यॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा था, जिसमें पाक सेना को लेकर कुछ तथ्यात्मक टिप्पणी थी. ट्राएंगिल ऑफ हेट शीर्षकवाले लेख में पाकिस्तानी सेना के भारत विरोधी एजेंडे का जिक्र था. न्यू यॉर्क टाइम्स के अंतरराष्ट्रीय संस्करण में यह लेख छपा, लेकिन पाकिस्तान संस्करण के स्थानीय प्रकाशक ने इसे सेंसर कर दिया.

इसकी जगह पेज को खाली छोड़ दिया गया, जिसके नीचे लिखा था- न्यू यॉर्क टाइम्स का इस लेख को हटाने में कोई हाथ नहीं है. एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार पाकिस्तान में न्यू यॉर्क टाइम्स का प्रकाशन करता है. अखबार सरकार और सेना के साथ किसी भी तरह के विवाद से बचना चाहता था, इसलिए उसने इस लेख की जगह खाली छोड़ दी. असल में पाक में सेना के खिलाफ लिखना बड़ा गुनाह माना जाता है.

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हनीफ ने लेख में कहा था कि पाकिस्तानी सेना एहसानुल्लाह एहसान के रूप में एक ऐसे शख्स को साथी बना रही है, जिसने पिछले साल लाहौर में हुए हमले की जिम्मेदारी ली थी. एहसान ने ही नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई पर हमले का दावा किया था.

पाकिस्तान ट्राएंगिल ऑफ हेट : पाकिस्तान को भारत के खिलाफ मिल गया क्रूर हत्यारा दोस्त

पाकिस्तान को भारत के खिलाफ कभी नहीं खत्म होने वाले युद्ध में एक नया दोस्त मिल गया है – और वह दोस्त एक क्रूर हत्यारा है जिसे हम सब जानते हैं. वर्षों से लियाकत अली, जिसे एहसानुल्लाह एहसान के नाम से ज्यादा जाना जाता है, राष्ट्रीय मीडिया पर एक भयानक चेहरा था. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की हर नृशंसता के बाद वह सफलता का हर्ष मनाने वाला ऑडियो संदेश देता या दिल दहलाने वाला वीडियो जारी करता.

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जनवरी, 2014 में एक्सप्रेस टीवी के तीन कर्मचारियों की हत्या करने के बाद चैनल ने एहसान के साथ फोन पर बातचीत को प्रसारित किया. उसने शांतिपूर्वक हत्या की वजह बतायी. एहसान ने बाद में पिछले वर्ष लाहौर में इस्टर पर हुए हमले की भी जिम्मेदारी ली. उसने मलाला पर हमले की भी जिम्मेदारी ली थी. उसके करीब लाकर लगता है पाकिस्तानी सेना यह संदेश देना चाहती है – तुम हजारों पाकिस्तानियों की हत्या करो, लेकिन यह प्रमाण प्रस्तुत करते हो कि तुम भारत से उतनी ही नफरत करते हो जितनी हम करते हैं, हर गुनाह माफ हो जायेगी.

पेशावर में 2014 में आर्मी पब्लिक स्कूल में मारे गये छात्रों के अभिभावक चाहते थे कि एहसान को स्कूल के सामने ही फांसी पर लटकाया जाये. उस समय तालिबान हमलावरों ने 140 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. मरने वालों में ज्यादातर स्कूली बच्चे थे. लेकिन, सेना ने उसका मुस्कुराता चेहरा टीवी के सामना लाना ज्यादा जरूरी समझा. इसके साथ इस तरह के फुटेज भी जारी किये गये जिसमें वह बता रहा है किस तरह से तालिबान लड़ाकों के पास तीन बीवियां हैं. किस तरह टीटीपी के एक नेता ने उसके शिक्षक की बेटी को जबरन उठा लिया था.

हर देश की अपनी सेना होती है, लेकिन पाकिस्तान में कहा जाता है कि सेना के पास एक देश है. अगर राजनेताओं को देश की कमान वापस अपने हाथ में लेनी है, तो सेना को खुश करने के लिए उन्हें एक-दूसरे को देशद्रोही कहने से परहेज करना होगा.

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे लेख का संपादित अंश

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