रांची: झारखंड की राजनीति का फैसला राज्य के बाहर से ही संचालित होता रहा है. पहले झारखंड के भाग्य का फैसला दिल्ली और पटना से होता था. बदले राजनीतिक समीकरण में अब झारखंड की राजनीति में एक नया हेड क्वार्टर मिल गया है. तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में झारखंड में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है. आने वाले दिनों में तृणमूल के फैसले कोलकाता में होंगे.
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राइटर्स बिल्डिंग (सचिवालय) या तृणमूल भवन (पार्टी कार्यालय) से ही झारखंड में अपनी पार्टी के नेताओं से बातचीत करेंगी. झारखंड में राजनीति ने ऐसी करवट बदली है कि तृणमूल कांग्रेस को बैठे बिठाये तीन विधायक मिल गये हैं. बंधु तिर्की, चमरा लिंडा और ददई दुबे तृणमूल में चले गये हैं. पलामू के सांसद कामेश्वर बैठा भी तृणमूल में शामिल हो गये हैं. दूसरे दलों के विक्षुब्ध भी तृणमूल में जाने की मंशा रखते हैं.
राज्य में सरकार गठन का मामला हो या फिर लोकसभा-विधानसभा के टिकटों का बंटवारा, अबतक फैसले दिल्ली और पटना में होते रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस का फैसला दिल्ली में होता रहा है. संगठन में पद लेना हो या सरकार में मंत्री बनना, प्रदेश के नेता दिल्ली दौड़ते हैं. दिल्ली के इशारे-निर्देश पर ही कांग्रेस का पत्ता तक हिलता है. केंद्रीय मंत्री रहे सुबोधकांत सहाय को भी अपने टिकट के लिए दिल्ली में चार दिनों तक कैंप करना पड़ा. इधर राजद-जदयू का रिमोट पटना में है. इन पार्टियों को भी छोटे-बड़े फैसले के लिए पटना दौड़ना पड़ता है.
अब नेताओं के सुर भी बदल गये हैं
तृणमूल में शामिल होनेवाले नेताओं के सुर भी बदल गये हैं. टिकट बंटवारे से लेकर सरकार पर फैसले के मुद्दे पर इनका दो टूक जवाब है : ममता दीदी जो बोलेंगी, वही होगा. नेताओं के बयान से साफ है कि आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीति में तृणमूल सुप्रीमो ममता की दखलंदाजी बढ़ने वाली है.