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जयललिता के लिए आसान नहीं राह

।। के. वैद्यनाथन, वरिष्ठ पत्रकार, तमिलनाडु ।। अन्नाद्रमुक समर्थक चाहते हैं अम्मा के लिए सिंहासन प्रधानमंत्री यानी देशहित का रखवाला. प्रधानमंत्री यानी भारत की विविधता का रखवाला. पहली बार ऐसा दिख रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार सामने आ गये हैं. दावा करने वाले बड़ा […]

।। के. वैद्यनाथन, वरिष्ठ पत्रकार, तमिलनाडु ।।

अन्नाद्रमुक समर्थक चाहते हैं अम्मा के लिए सिंहासन

प्रधानमंत्री यानी देशहित का रखवाला. प्रधानमंत्री यानी भारत की विविधता का रखवाला. पहली बार ऐसा दिख रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार सामने आ गये हैं. दावा करने वाले बड़ा वादा करने से नहीं चूक रहे हैं. जानिए प्रधानमंत्री पद के दावेदारों को. आज की कड़ी में पढ़ें दक्षिण भारत की कद्दावर नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता के बारे में.

लोकसभा चुनाव से पहले कई दल के नेता प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी जता रहे हैं. क्षेत्रीय दलों खासकर तीसरे मोरचे में शामिल अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) के नेता और उनके समर्थक भी चाहते हैं कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता प्रधानमंत्री बनें. लेकिन पीएम बनने की इच्छा रखना और उसे हकीकत में तब्दील होना अलग-अलग चीजें है. एक अच्छे प्रधानमंत्री के लिए सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता और गंठबंधन में शामिल दलों की स्वीकार्यता बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. जयललिता अपने दम पर इतनी सीट नहीं ला सकती है, जिससे वह प्रधानमंत्री बनें. हां, यह तय है कि तमिलनाडु में उनका प्रदर्शन बहुत ही अच्छा रहेगा. सीट की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह प्रधानमंत्री बन जायेंगी.

जयललिता को तमिलनाडु में प्रोजेक्ट करने का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि उनके वोटरों में एक अच्छा मैसेज जा रहा है. मैसेज द्वारा अन्नाद्रमुक की ओर से यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक को जितना अधिक सीटें मिलेगी, उतनी ज्यादा जयललिता की दावेदारी केंद्र में बढ़ेगी.

इस बात को तमिलनाडु में जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है. इस बात को प्रोजेक्ट करने का एक ही मकसद है कि उनके वोटर के बीच एक जयललिता को लेकर मैसेज जाये. हालांकि ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री जयललिता इस बात को नहीं जानती हैं. उन्हें पता है कि उनके प्रधानमंत्री बनने में कई तरह की अड़चने हैं. सच्चई तो यह है कि वह पीएम बनना भी नहीं चाहेंगी. क्योंकि वह तमिलनाडु में अच्छा काम कर रही हैं और वह यहीं रहना पसंद करेंगी. वह तीसरे मोरचे के गंठबंधन में शामिल जरूर है, लेकिन सिर्फ शामिल हो जाना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वह पीएम पद के सबसे ताकतवर दावेदार बन गयी हैं.

यदि गंठबंधन में शामिल दलों में सबसे ज्यादा सीट भी अन्नाद्रमुक जीत भी लेती है, तब भी उनकी दावेदारी मजबूत नहीं मानी जा सकती है. क्योंकि गंठबंधन सरकार का हश्र जयललिता को पता है. केंद्र की राजनीति किस तरह से चलती है, यह भी उन्हें पता है. इसलिए तमिलनाडु में अपनी इतनी मजबूत स्थिति को छोड़ कर वह शायद ही केंद्र में जाना पसंद करेंगी.

पीएम बनने से ज्यादा राज्य की मुख्यमंत्री बने रहना उनके लिए ज्यादा सेफ है. देश में गंठबंधन सरकार का दौर है. जयललिता को पता है कि केंद्र की गंठबंधन सरकार के कितने खतरे हैं. देवगौड़ा का हश्र भी वह अच्छी तरह से जानती हैं, चूंकि तमिलनाडु में कांग्रेस विरोधी हवा है इसलिए जयललिता के समर्थक भी कंफ्यूज्ड हैं. उनके वोटर कहीं भाजपा की ओर न चले जायें, इसलिए ऐसा प्रचार तमिलनाडु में किया जा रहा है. लेकिन सच में जयललिता इन सभी वातों से वाकिफ हैं.

उन्हें मालूम है कि गंठबंधन सरकार का नेतृत्व करना उनके लिए संभव नहीं है. चूंकि पार्टी के कार्यकर्ता कड़ी मेहनत कर रहे हैं, राज्य की सत्ता की बागडोर उनके पास है, इसलिए कार्यकर्ताओं में यह मैसेज देना की वह पीएम बन सकती हैं उसके उत्साह को बढ़ाने का काम कर सकता है. क्योंकि कांग्रेस की हालत तमिलनाडु में सबसे ज्यादा खराब है. डीएमके अपने विवादों से ही घिरा है, इसलिए भाजपा के पक्ष में न कहीं हवा बह जाये, इसलिए कुछ हद तक उस लहर को दूर करने के लिए ही जयललिता की ओर से खुद को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जा रहा है.

गंठबंधन के तहत मुलायम सिंह, नवीन पटनायक और नीतीश कुमार भी पीएम पद के दावेदार हैं. यदि गंठबंधन की ज्यादा सीट आती भी है, (जिसकी संभावना कम है) तब भी दलों के बीच नेताओं के चुनाव में जयललिता के नाम पर एकमत होना संभव नहीं है. इसलिए कोशिश सिर्फ यही है कि ज्यादा से ज्यादा सीट राज्य में लाया जा सके. इसी रणनीति के तहत उनके कार्यकर्ता या नेता पीएम के रूप में जयललिता के नाम को आगे कर रहे हैं. लेकिन यह बात सच्चई से कोसो दूर है.

मेरे हिसाब से जयललिता मौका मिलने पर भी राज्य में अपनी इतनी मजबूत पकड़ को छोड़ कर केंद्र में जाना पसंद नहीं करेगी. क्योंकि उन्हें पता है कि जो भी सरकार आयेगी वह कितने दिनों तक सत्ता में रह पायेगी. लेकिन यदि जयललिता अच्छी सीट ले आती हैं, और उनके समर्थन से कोई सरकार बनती है, तो उनकी भूमिका केंद्र में जरूर महत्वपूर्ण होगी.

बाचतीत : अंजनी कुमार सिंह

बाक्स में

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हैं जया

तमिलनाडु में कई एमएलए और सांसदों की ओर से यह कहा जा रहा है कि यदि अम्मा पीएम बनेंगी, तो इससे तमिलनाडु को लाभ पहुंचेगा. गैर भाजपा-गैर कांग्रेस दलों के विकल्प के रूप में जयललिता को प्रोजेक्ट किया जा रहा है, लेकिन इस गंठबंधन में सबके लिए स्वीकार्य जयललिता नहीं दिख रही हैं. इसका सबसे बड़ा कारण जयललिता का भ्रष्टाचार के कई संगीन आरोपों से घिरा होना और कई आरोपों की जांच चलने की बात बतायी जा रही है.

जानकार बताते हैं कि जिस तरह के आरोप उनके ऊपर लगे हैं वह उनके पीएम पद की दावेदारी को कमजोर करता है. भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह का मूड आज देश में है, उसमें जयललिता की उम्मीदवारी संभव नहीं दिखती. उनके ऊपर कई संगीन आरोप है, जिसमें से कुछ में वह बरी हो गयी हैं, लेकिन कई मामले अभी भी कोर्ट में जारी है. उदाहरण के लिए 1995 का कलर टीवी घोटाला, जिसमें 85 बिलियन खर्च करने का आरोप लगा. 1992 का तांसी भूमि घोटाला, इन दोनों में वह बरी हो गयी हैं, लेकिन 1993 का कोल इंपोर्ट केस, गिफ्ट घोटाला, सेफ गेम्स विज्ञापन घोटाला आदि ऐसे मामले हैं, जिसमें अभी जांच जारी है. इसके अलावा आय से अधिक संपत्ति अजिर्त करना(डिस्रप्रपोर्शनिट वेल्थ केस), ग्रेनाइट क्वैवरी केस, फेरा उल्लंघन केस, जेजे टीवी केस, मनी लांउड्रिंग केस, फॉरेन डिपॉजिट केस, डोनेशन केस आदि ऐसे केस है, जो उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है.

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