।।दक्षा वैदकर।।
क्या आपके साथ ऐसा हुआ है कि बोर्ड मेंबर्स कोई गलत निर्णय ले रहे हैं और आपके लाख मना करने के बावजूद वे आपको ही गलत ठहरा रहे हैं? आपकी कंपनी कोई नयी पॉलिसी ला रही है और आपको यकीन है कि यह गलत फैसला है. आप उन्हें समझा रहे हैं, तो वे आप पर ही बरस रहे हैं? तो बेहतर यही है कि आप ज्यादा विरोध करने की बजाय कंपनी के अन्य लोगों पर ही इस निर्णय को छोड़ दें. आप जितना विरोध जाहिर करेंगे, लोग आपके खिलाफ ही होते जायेंगे.
किसी ने सच ही कहा है कि कभी-कभी मूर्खो के साथ मूर्ख बनने में ही समझदारी है. अगर आप खुद को समझदार साबित करने की कोशिश करेंगे, तो वे आपका जीना दुभर कर देंगे, आपकी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी. ऐसी स्थिति में आपसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा. एक कहानी सुनें.
एक ताकतवर जादूगर ने किसी शहर को तबाह कर देने की नीयत से वहां के कुएं में कोई जादुई रसायन डाल दिया. जिसने भी उस कुंए का पानी पिया वह पागल हो गया. क्योंकि सारा शहर उसी कुएं से पानी लेता था इसलिए अगली सुबह सभी लोग अपने होशोहवास खो बैठे. शहर के राजा और उसके उसके परिजनों ने कुएं का पानी नहीं पिया था क्योंकि महल में उनका निजी कुआं था, जिसमें जादूगर रसायन नहीं मिला पाया था.
राजा ने अपनी जनता की सुधबुध लाने के लिए कई फरमान जारी किये, लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि सारे कामगारों व पुलिसवालों ने भी जनता के कुएं का पानी पिया था. सभी को लगा कि राजा बहक गया है और ऊल-जलूल फरमान जारी कर रहा है. सभी राजा के महल गये और उन्होंने राजा को गद्दी छोड़ देने के लिए कहा.
राजा उन सबको समझाने-बुझाने के लिए महल से बाहर आ रहा था, तब रानी ने उनसे कहा ‘क्यों न हम भी जनता कुएं का पानी पी लें. हम भी फिर उन्हीं केजैसे हो जायेंगे. राजा और रानी ने ऐसा ही किया. अब वे भी नागरिकों की तरह बे सिर पैर की बातें करने लगे. अपने राजा को अपनी ही तरह समझदारीपूर्ण व्यवहार करते देख नागरिकों ने निर्णय लिया कि इन्हें गद्दी से हटाने को कोई औचित्य नहीं है.
परिस्थितियों के अनुसार खुद को सामनेवाली की तरह बना लें. हर बार खुद को समझदार साबित करने की इच्छा रखना बड़ी मूर्खता है.
लोगों को वही चीज समझाएं, जो उन्हें समझ आ सकती हो. अगर सामनेवाले ने तय कर लिया है कि आप गलत है, तो फिर उसे उसके हाल में छोड़ दें.