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सब्सिडी के बजाये गरीबों के लिए हो न्यूनतम आय

विकल्प. ‘हर आंख के आंसू पोंछने’ के लिए की गयी यूनिवर्सल बेसिक इनकम की सिफारिश नयी दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा मंगलवार को संसद में पेश 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के विकल्प के रूप में गरीबों को एक न्यूनतम आय (सर्वजनीन बुनियादी आय) उपलब्ध कराने […]

विकल्प. ‘हर आंख के आंसू पोंछने’ के लिए की गयी यूनिवर्सल बेसिक इनकम की सिफारिश
नयी दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा मंगलवार को संसद में पेश 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के विकल्प के रूप में गरीबों को एक न्यूनतम आय (सर्वजनीन बुनियादी आय) उपलब्ध कराने की पुरजोर वकालत की गयी है. इसके लिए समीक्षा में ‘हर आंख के हर आंसू को पोछने’ के महात्मा गांधी के दृष्टिकोण का उल्लेख किया गया है. कहा गया कि सामाजिक सुरक्षा के लिए सब्सिडी की बजाय सकल बुनियादी आय का मॉडल अपनाने की जरूरत है.
इस योजना के तहत देश के नागरिकों की एक तय आय सुनिश्चित कर दी जायेगी और व्यक्ति की आय के उलट उन्हें तय रकम सरकार देगी. इस विषय पर काफी समय से चर्चा होती रही है. सकल बुनियादी आय योजना का मकसद सब्सिडी और गरीबी उन्मूलन की अन्य योजनाओं को खत्म कर लोगों को गरीबी रेखा से उपर लाना है. इसके लिए भारत सरकार को वर्षों से चली आ रही सब्सिडी जैसे एलपीजी, मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था को खत्म करना होगा. इस योजना पर 2011 से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर काम हो रहा है. इस योजना की रिपोर्ट के अनुसार जहां यह योजना चल रही है, वहां खाने पर खर्च बढ़ा है और अन्य सामाजिक और आर्थिक सूचकांक बेहतर हुए हैं. आर्थिक सर्वे मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के नेतृत्व में आर्थिक विशेषज्ञों की टीम ने तैयार किया है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक, यूबीआइ एक सशक्त विचार है. अगर इसे लागू करने नहीं, तो इस पर चर्चा करने का समय जरूर आ गया है. सर्वे में कहा गया है कि राजनीतिक चुनौतियों के कारण इस मॉडल को लागू करना चुनौतीपूर्ण काम है और राजनीतिक दल सब्सिडी की मौजूदा व्यवस्था के पक्षधर हैं. सकल बुनियादी आय योजना से जीडीपी पर 4-5 फीसदी का बोझ पड़ेगा. इसे महत्वपूर्ण विचार बताते हुए कहा गया है कि इसके क्रियान्वयन की तैयारी नहीं है.
सर्वे में कहा गया कि ऐसी योजना की सफलता के लिए दो पूर्व शर्तें पहले से काम कर रही हैं. इसमें एक जनाधारम (जनधन, आधार और मोबाइल प्रणाली) और दूसरा ऐसे कार्यक्रम की लागत में साझेदारी पर केंद्र-राज्य बातचीत है. जेटली ने कहा कि यूबीआइ की सख्त जरूरत है, क्योंकि मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं में गलत आवंटन, चोरी और गरीबों के शामिल नहीं होने जैसी खामियां है. इसे लागू करने से भ्रष्टाचार पर रोक लगेगा. केंद्र सरकार अकेले 950 केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित उप-योजनाओं को चला रही है, जिस पर जीडीपी का करीब पांच प्रतिशत खर्च हो रहा है.
आर्थिक समीक्षा के ‘महात्मा के साथ और महात्मा के भीतर संवाद’ शीर्षकवाले अध्याय में कहा गया है कि महात्मा ने सभी मार्क्सवादियों, बाजार मसीहाओं, भौतिकवादियों और व्यवहारवादियों से कहीं पहले और गहन तरीके से इसे समझा. अब इसकी भारत में आवश्यकता है, क्योंकि मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं में गलत आवंटन, चोरी और गरीबों के शामिल नहीं होने जैसी खामियां है.
गरीबों को मदद, पर अमीरों पर भी भार न पड़े
यूबीआइ के जरिये गरीबी को कम कर 0.5 प्रतिशत तक लाने के कार्यक्रम में जीडीपी के 4-5 प्रतिशत के बराबर लागत आयेगी, लेकिन इसके लिए शर्त है कि आबादी में ऊंची आबादीवाले 25 प्रतिशत लोग इसके दायरे में न रखे जाएं. वहीं, मौजूदा मध्यम वर्ग को मिलनेवाली सब्सिडी तथा खाद्यान्न, पेट्रोलियम और उर्वरक सब्सिडी की लागत जीडीपी का करीब तीन प्रतिशत है.
नकदी देने का प्रस्ताव
अरविंद सुब्रह्मण्यम ने यूबीआइ के बारे में कुछ दिन पहले बताया था कि इसके तहत सरकार द्वारा गरीबी हटाने के लिए चलायी जा रही 1000 से ज्यादा योजनाओं को बंद कर सभी नागरिकों को बिना शर्त 10,000 रुपये से 15,000 रुपये नकदी दी जा सकती है.
गरीबी उन्मूलन में प्रगति हुई
आर्थिक समीक्षा में रेखांकित किया गया है कि गरीब उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. आजादी के समय यह जहां करीब 70 प्रतिशत थी. वह 2011-12 में (तेंडुलकर समिति) लगभग 22 प्रतिशत पर आ गयी. इसमें हर आंख से हर आंसू पोछना उन्हें दो जून की रोटी के लिए समर्थ करने से कहीं कुछ और अधिक करने के बारे में है.
पहली बार रेल बजट नहीं . 92 साल पुरानी परंपरा आज होगी खत्म
इस बार रेलवे का अलग बजट नहीं आयेगा. पहली बार वित्त मंत्री अरुण जेटली रेल बजट को अलग से पेश की जानेवाली 92 साल पुरानी परंपरा को खत्म करते हुए बुधवार को इसे आम बजट के साथ संसद में पेश करेंगे. वर्ष 1924 में अंगरेजों के वक्त से 2016 तक रेल बजट पेश किया जाता रहा है. रेल मंत्री इस बार कोई घोषणा नहीं करेंगे, इसलिए वित्त मंत्री अगले वित्त वर्ष के लिए आम बजट में रेलवे के लिए वित्त, परियोजनाओं और पारूप को लेकर कुछ पैराग्राफ पेश कर सकते हैं.
जेटली बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दे सकते हैं, जिसमें नयी रेल लाइनों का विकास, लाइनों का दोहरीकरण, स्टेशनों का पुनर्विकास और सुरक्षा उन्नयन शामिल है. सूत्रों के अनुसार, हाल में ट्रेनों के पटरियों से उतरने की कई घटनाओं के बाद एक लाख करोड़ रुपये के सुरक्षा कोष का अलग से प्रावधान बजट में किया जा सकता है. यह अगले पांच वर्ष के लिए होगा, जिसमें 20,000 करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2017-18 के लिए होंगे. रेलवे अपने 92 प्रतिशत के परिचालन अनुपात लक्ष्य से भी चूक जायेगा. बजट में रेल विकास प्राधिकरण के गठन की घोषणा की जा सकती है, जो इसके लिए विनियामक का काम करेगा. वहीं, ट्रेनों की गति बढ़ाने के लिए 21,000 करोड़ रुपये की लागत से दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली-मुंबई मार्ग की बाड़बंदी की घोषणा हो सकती है.
1.19 लाख करोड़ रुपये का विशेष सुरक्षा कोष
खाली पड़ी भूमि का उपयोग : बजट में गैर-किराया राजस्व बढ़ाने पर ध्यान दिया जा सकता है, जिसमें खाली पड़ी भूमि का उपयोग और निजी भागीदारी के साथ स्टेशनों का पुनर्विकास शामिल है. रेलवे को यात्री किराये से आय में पिछले साल के मुकाबले नौ प्रतिशत से अधिक की कमी आयी है.
1.19 लाख करोड़ रुपये का विशेष सुरक्षा कोष: रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने जेटली को 1.19 लाख करोड़ रुपये का विशेष सुरक्षा कोष बनाने के लिए पत्र लिखा था, जिसके लिए वित्त मंत्रालय से इसकी मंजूरी मिल चुकी है. इस 20,000 करोड़ रुपये के वार्षिक कोष के लिए जहां रेल मंत्रालय को 15,000 करोड़ रुपये का बजटीय समर्थन मिलेगा, वहीं 5,000 करोड़ रुपये रेलवे को अपने आंतरिक स्रोतों से जुटाने होंगे.
11 % की नकारात्मक वृद्धि: रेलवे का परिचालन अनुपात लक्ष्य 92 प्रतिशत है. अप्रैल-दिसंबर 2016 में उसके यात्रियों की संख्या और माल परिवहन दोनों में ही कमी आयी है. यह 1.34 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले 1.19 लाख करोड़ रुपये पर रहा है. यह 11 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि है.
सब्सिडी बिल 5 फीसदी बढ़ा
चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-नवंबर की अवधि में सरकार के सब्सिडी बिल में पांच प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जबकि चालू वित्त वर्ष में प्रमुख सब्सिडी में 5.9 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य रखा गया था. आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, खाद्य सब्सिडी में 21.6 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि की वजह से सरकार का सब्सिडी बिल बढ़ा है. हालांकि, इस दौरान खाद और पेट्रोलियम सब्सिडी बिल में कमी आयी है. चालू वित्त वर्ष के बजट में खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी 2.31 लाख करोड़ रुपये के निचले स्तर पर रहने का अनुमान लगाया गया है. 2015-16 के लिए सब्सिडी बिल (संशोधित अनुमान) 2,41,856.58 करोड़ रुपये रहा था.

इधर, मौजूदा वर्ष में खुदरा महंगाई रिजव बैंक के पांच प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे रहने की संभावना है, क्योंकि नोटबंदी के चलते कीमतें गिरी हैं.
खाद्य सब्सिडी में 21.6 % की वृद्धि
खाद्य सब्सिडी बढ़ी सरकार ने चालू वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी के लिए 1,34,834.61 करोड़ रुपये की राशि रखी है, जो पिछले वित्त वर्ष में 1,39,419 करोड़ रुपये थी.
उर्वरक सब्सिडी घटी मौजूदा वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी 70,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष के 72,437.58 करोड़ रुपये के अनुमान से कम है.
पेट्रोलियम सब्सिडी घटी : चालू वित्त वर्ष में पेट्रोलियम सब्सिडी घटा कर 26,947 करोड़ रुपये की गयी है, जो पिछले वित्त वर्ष में 30,000 करोड़ रुपये थी.
जलवायु : भारत को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करनी होगी
सरकार को जीवाश्म ईंधन यानी कोयला पर देश की निर्भरता को कम करनी होगी. भारत ने दिसंबर 2015 में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते पर दस्तखत किये थे. अब अपना ध्यान इसके क्रियान्वयन पर लगायेगा. सर्वे में कहा गया है कि अब तक कोयले पर देश की निर्भरता चीन से अच्छी खासी कम बनी हुई है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप से नीचे है.

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