संदर्भ : रघुराम राजन कमेटी की सिफारिश की अनदेखी
बीके चांद, रिटायर्ड आइएएस
प्रश्न यह नहीं कि झारखंड को विशेष राज्य का दरजा क्यों मिले? बाकायदा, हमारा प्रश्न उन लोगों से है, जो इस पावन मांग के खिलाफ हैं. उन 11 राज्यों को जिन्हें यह दरजा प्राप्त है और जो अन्य पड़ोसी राज्य इसकी मांग को बुलंद कर रहे हैं, उनसे झारखंड भला अलग कैसे? केंद्र में बैठ कर विकास के झूठे आंकड़ों को रचने का खेल अब खत्म करना होगा. क्या हम गाडगिल-मुखर्जी फारमूले में सटीक नहीं बैठते? क्या हमारे भूखे पेट रहनेवाले झारखंडी पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में नहीं रहते?
अगर हमारे बिरहोर भाई की पूरी कौम खत्म होने के कगार पर खड़ी है, तो क्या हम यह मान लें कि हमारा प्रदेश जनजातीय बाहुल्यवाला नहीं रहा. सूखी अकालग्रस्त धरती की धधकती प्यास और बिजली की कमी के बीच अंधकार का दंश ङोलनेवाला हमारा राज्य, जो अभी भी पक्की सड़कों की बाट जोह रहा है, क्या आधारभूत संरचनाओं से लबरेज है?
जाहिर है, हमारे प्रश्नों का केंद्र के पास कोई जवाब नहीं है. लिहाजा उसने मापदंड बदलने की ठानी है और खुद के रचे गाडगिल फारमूले को खुद ही खारिज कर रहा है. चलिए, फिर भी प्रश्न यथावत है. हम पूछना चाहते हैं कि पूरे देश को 20444 करोड़ का राजस्व देनेवाला यह राज्य डॉ रघुराम राजन कमेटी की रिपोर्ट में किस पायदान पर खड़ा है. 10 में से 7.46 अंक लाकर झारखंड देश का पांचवां सबसे पिछड़ा राज्य है. आपके आंकड़े भी चीख-चीख कर हमारी मांगों को जायज ठहरा रहे हैं. पिछले 2012-13 के बजट को पेश करते वक्त वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने स्पष्ट कहा कि आर्थिक सहायता पहुंचाते वक्त हमें यह ध्यान रखना होगा कि संबंधित राज्य प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता और अन्य मानव सूचकांकों के मामले में राष्ट्रीय औसत से कितने फासले पर खड़ा है?
और मानव प्रगति रिपोर्ट, 2010 मूलत: तीन बिंदुओं पर आधारित है. पहला, एक दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, जिसमें झारखंड लाइफ एक्सपेक्टेंसी के मामले में पूरे देश में सबसे पीछे 61 की आयु पर दम तोड़ रहा है, जबकि राष्ट्रीय औसत 65 की है. दूसरा शिक्षा का सूचकांक है. पूरे देश में झारखंड स्कूल और ड्रॉप आउट के मामले में सबसे आगे (अर्थात सबसे पीछे 28.4 प्रतिशत) है. वक्त से पहले हमारे बच्चे पेट की आग को बुझाने के लिए गुजरात, पंजाब और दिल्ली की भट्ठियों में झोंक दिये जाते हैं. आधार भूत संरचनाओं के अभाव में छोटे-छोटे कल-कारखाने बंद हो रहे हैं. छोटे उद्यमी पलायन करने को विवश हैं. क्या यह अजीब नहीं कि हमारे ही खनिजों के खजाने से देश का कॉरपोरेट घराना अमीर हो रहा है और हमारे राज्य की 56 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीने को विवश है.
खनिजों की ढुलाई कर रेलवे के राजस्व का मुख्य हिस्सा झारखंड से आता है, लेकिन गुमला, सिमडेगा व खूंटी में रेल मार्ग नहीं है. दामोदर के दम पर चलनेवाले डीवीसी का मुख्यालय कोलकाता में! डूबा क्षेत्र झारखंड में और सिंचाई बंगाल में! हम पूछते हैं कि झारखंडी बच्चियों को दिल्ली में झाड़ू लगाने के लिए क्यों बेचा जा रहा है? विशेष दरजा मिलने पर विभिन्न केंद्रीय योजनाओं में अनुदान का घटक 90 प्रतिशत तथा ऋण 10 प्रतिशत रहेगा. लिहाजा, केंद्रीय सहायता में सीधे लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि हो जायेगी. वर्तमान में ऋण एवं अनुदान का प्रतिशत क्रमश: 70 एवं 30 है. इस प्रकार राज्य की देनदारी कम हो जाने से जो बचत होगी, उसका इस्तेमाल हम अपने जरूरत और योजनाओं के लिए कर सकेंगे. क्या अब भी आपके पास हमारे प्रश्न का उत्तर शेष है? आखिर क्यों नहीं है, हमें विशेष राज्य का दरजा लेने का हक ?हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग रो-रो कर बात कहने की आदत नहीं रही.
झारखंड व बिहार के साथ नाइंसाफी है
मोहन गुरुस्वामी, वरिष्ठ अर्थशास्त्री
सीमांध्र की प्रति व्यक्ति आर्थिक स्थिति पंजाब से भी बेहतर है. सीमांघ्र को अलग राज्य बनाने के बाद भी इसकी स्थिति देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर रहेगी. बिहार-झारखंड जैसे राज्यों को विशेष राज्य का दरजा न देकर सीमांध्र को देना यह इन राज्यों के साथ धोखा है. केंद्र सरकार बिहार-झारखंड-ओड़िशा जैसे राज्यों के साथ मजाक कर रही है.
आखिर, सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा दिये जाने का मतलब क्या है? विशेष राज्य का दरजा उन प्रदेशों को दिया जाता है, जो प्रदेश पिछड़ा हो. जहां की प्रति व्यक्ति आय कम हो. भगौलिक स्थिति प्रतिकूल हो, इत्यादि. राज्यों को विशेष राज्य का दरजा दिये जाने के लिए कुछ मापदंड निर्धारित किये गये हैं. उन मापदंडों में से किसी पर सीमांध्र खरा नहीं उतर रहा है, इसलिए यह समझ से परे है कि बिना किसी मापदंड का आधार बनाये बिना सीमांध्र को किस आधार पर स्पेशल स्टेटस देने की घोषणा की गयी है.
सीमांध्र को राजधानी बनाने के लिए कुछ पैसा दिया जा सकता है. क्योंकि राजधानी बनाने में पूंजी लगेगी. लेकिन पूरे राज्य को ही स्पेशल स्टेटस का दरजा देना तो उन पिछड़े राज्यों के साथ भेदभाव है. यह केंद्र सरकार की बिहार-झारखंड के साथ नाइंसाफी है.
बिहार-झारखंड को केंद्र के इस भेदभाव का डट कर मुकाबला करना होगा. बिहार-झारखंड के लोगों को सड़क पर आना होगा. भारत बंद करवाना होगा. अपनी शक्ति का अहसास कराना होगा. तभी केंद्र सरकार को कुछ समझ में आयेगा. क्योंकि केंद्र ने इन राज्यों को यह बता दिया है कि आपकी अहमियत क्या है. जो राज्य 15 सालों से इसकी मांग कर रहे हैं, उसे आजतक नहीं दिया गया, लेकिन अपने फायदे के लिए एक राज्य को रातोरात विशेष राज्य का दरजा दे दिया गया.
बिहार-झारखंड के लिए यह छोटा मुद्दा नहीं है. इस मुद्दे को दोनों राज्य सरकारों को प्रमुखता से उठाने के साथ ही इस पर केंद्र सरकार को मजबूर करना चाहिए. एक दिन के बिहार-झारखंड बंद से कुछ नहीं होनेवाला है. हफ्ते भर का बंद होना चाहिए. माल-यातायात जब रुकेगा, तब केंद्र सरकार के होश ठिकाने आयेगा.
बिहार-झारखंड को विशेष राज्य का दरजा न दिया जाना निश्चित रूप से उन पिछड़े राज्यों के साथ धोखा और विश्वासघात है, जो विशेष राज्य के दरजा के हकदार हैं. रघुराम राजन कमेटी ने भी अपनी सिफारिश में इन राज्यों को अति पिछड़ा माना है. फिर अब केंद्र के पास इन राज्यों को विशेष राज्य का दरजा न देने का क्या आधार बनता है. एक ओर विशेष राज्य का दरजा दिये जाने के लिए केंद्र सरकार सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक (एनडीसी) में फैसला होने का तर्क रखते हैं, वहीं दूसरी ओर बिना किसी विचार-विमर्श के सीमांघ्र को स्पेशल स्टेटस देने की घोषणा करते हैं. यह निहायत ही उन पिछड़े राज्यों के साथ धोखा है, जो वर्षो से देश की मुख्य धारा में सम्मिलित होने के लिए विशेष राज्य का दरजा मांग रहे हैं. इन राज्यों के पास केंद्र सरकार की इस भेदभाव नीति का डट कर विरोध करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. राज्य बंदी से राज्य सरकार का नुकसान नहीं होगा, बल्कि इससे देश का नुकसान होगा.
छीनना होगा अपना हक
प्रदीप यादव, लेखक झाविमो विधायक दल के नेता हैं
झारखंड विशेष राज्य के लिए जरूरी हर अर्हता पूरी करता है. झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले लोगों की संख्या काफी ज्यादा है. शिक्षा की स्थिति देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी खराब है. रोजगार के लिए पलायन करनेवाले लोग बहुत ज्यादा हैं. ऊपर से देखने पर झारखंड अपनी खनिज संपदा के कारण काफी समृद्ध राज्य लगता है, लेकिन असलियत कुछ और है. राज्य की खान-खनिज पर झारखंड का हक नहीं है. झारखंड का सीना चीर कर भारत सरकार कुंडली मार कर बैठ गयी है.
हमारे खनिज से सबसे ज्यादा लाभ केंद्र सरकार कमा रही है. झारखंड को सही तरीके से उसका हिस्सा तक नहीं दे रही है. खान-खनिजों से झारखंड को केवल धुआं, प्रदूषण और बीमारी मिलती है. झारखंड की प्रति व्यक्ति आमदनी यहां के लोगों की वास्तविकता बयान नहीं करती है. यहां की प्रति व्यक्ति आय उद्योगपतियों के धन के कारण ज्यादा नजर आती है. वास्तविकता यह है कि राज्य की ज्यादातर आबादी घोषित प्रति व्यक्ति आय से कम कमाती है. रघुराजन कमेटी की रिपोर्ट भी यह प्रमाणित करती है.
उस रिपोर्ट ने झारखंड को अत्यंत पिछड़े राज्यों की सूची में पांचवें स्थान पर रखा है. यानी देश के सबसे ज्यादा पिछड़े पांच राज्यों में हम शामिल हैं. केंद्र सरकार रघुराजन कमेटी की रिपोर्ट पर विचार करने की बात कह कर बहाना बनाती है. जब सीमांध्र को विशेष राज्य घोषित करने की बारी आयी, तो केंद्र सरकार ने न तो गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट देखने की जरूरत समझी और न ही रघुराजन कमेटी की रिपोर्ट पर ध्यान दिया. कांग्रेस पार्टी ने केवल आगामी लोकसभा चुनाव में लाभ पाने के लिए सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा दिया है. झारखंड के लोगों का विरोध सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा देने पर नहीं है.
हमारा विरोध इस बात को लेकर है कि रघुराजन कमेटी की रिपोर्ट में सीमांध्र अत्यंत पिछड़े राज्यों की सूची में 14वें नंबर पर है. जब उसे विशेष राज्य का दरजा दिया गया, तो उसी रिपोर्ट में पांचवें नंबर पर आनेवाले झारखंड को क्यों छोड़ा गया? दरअसल, हम कांग्रेस की राजनीति के शिकार हो गये हैं. वैसे कांग्रेस के इस कृत्य में भाजपा भी बराबर की भागीदार है. भाजपा चाहती, तो सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा देने का बिल संसद में पास ही नहीं होता. पर, बिल पास कराते समय भाजपा के सांसदों ने झारखंड-बिहार के बारे में सोचा तक नहीं. इस वजह से आम लोगों में आक्रोश है. चुनाव में सभी दलों को जनता सबक सिखायेगी. बहरहाल, राज्य की जनता के पास अब विशेष राज्य का दरजा पाने के लिए सड़क पर उतरने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है.
लोग खुद सड़क पर उतरेंगे. दो मार्च को इस मुद्दे पर झाविमो का झारखंड बंद है. वह स्वत:स्फूर्त बंद होगा. आंदोलन के बाद भी झारखंड को हक नहीं मिला, तो केंद्र सरकार भुगतेगी. हम राज्य से धूल का एक कण भी बाहर जाने नहीं देंगे. झारखंड की खनिज-संपदा बाहर ले जाने की तो बात ही दूर है. अब झारखंड के लोग केंद्र सरकार से अपना हक मांग कर नहीं लेंगे. अब हमें हमारा हक छीनना ही होगा.