मांसपेशियों की कमजोरी, शरीर का कोई अंग सुन्न हो जाना, शरीर के किसी हिस्से से कोई भी प्रतिक्रिया न होना या शरीर का कोई अंग मृत समान हो जाना आदि पैरालाइसिस के प्रारंभिक लक्षण हैं.
यह बीमारी अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार की होती है. कुछ पैरालाइसिस से पीड़ित मरीजों को यह बीमारी कुछ समय के लिए होती है तो कुछ में लंबे समय तक चलती है. शरीर के कई हिस्सों में पैरालाइसिस हो सकता है.
हाइ बीपी वालों को ज्यादा खतरा
शरीर के किसी अंग में अचानक कमजोरी होना, सूनापन, आवाज लड़खड़ाना, कभी-कभी आवाज बंद हो जाने को आम बोलचाल में पैरालाइसिस कहा जाता है. हमारे शरीर के दाएं हिस्से को दिमाग का बायां हिस्सा नियंत्रित करता है और बायें हिस्से को दिमाग का दायां हिस्सा नियंत्रित करता है. हमारे बोलचाल को दिमाग का दायां हिस्सा नियंत्रित करता है. इसलिए प्राय: दायें हिस्से में पैरालाइसिस मारने पर आवाज लड़खड़ा जाती है या फिर बंद हो जाती है. पैरालाइसिस का मुख्य कारण थ्रॉम्बोसिस (खून का जम जाना), हैमरेज (खून का बहाव होना), इंबोलिज्म (शरीर के किसी भाग से खून जमकर दिमाग की नली में चला जाना) है. डायबिटीज, हाइ ब्लड प्रेशर, हृदय रोग से पीड़ित लोगों को इसके होने का खतरा अधिक होता है.
बूढ़े लोगों में : बुजुर्गो में प्राय: एमिलॉयड एंजियोपेथी के कारण होता है. इस अवस्था में खून की नली में एमिलॉयड नामक तत्व के जमा होने से नली के कमजोर होकर हैमरेज होने का खतरा बढ़ जाता है.
छोटे बच्चों में : बच्चों में रिमेटिक (हृदय रोग), माइको न्यूमोनिया के कारण होता है. गर्भ के दौरान महिलाओं में यह समस्या खून के बढ़ने के कारण होती है एवं प्रसव के बाद खून गाढ़ा होने के कारण होती है. अगर किसी को पैरालाइसिस का लक्षण मालूम पड़े तो तुरंत डॉक्टर से दिखाना चाहिए. यदि किसी मरीज को पैरालाइसिस के लक्षण दिखाई देने के तीन घंटे के अंदर अस्पताल लाया जाता है, तो न्यूरोलॉजिस्ट मरीज को टीपीए नाम की दवा चढ़ाते हैं जो बहुत ही उपयोगी है. खास कर यह थ्रांबोसिस के मरीजों को दिया जाता है. यदि कोई मरीज शहरी क्षेत्र में है तो डॉक्टर से सलाह लेकर उचित जांच (सीटी स्कैन इत्यादि) कराकर इलाज कराएं. इसकी पूरी सुविधा पीएमसीएच, आइजीआइएमएस, एनएमसीएच एवं बिहार के सभी मेडिकल कॉलेजों में उपलब्ध है.
डॉ अशोक कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर, न्यूरोलॉजी विभाग, आइजीआइएमएस, पटना