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जमशेदपुर के बंटी मुंबई में बचा रहे लोगों की जान
लाइफ गार्ड की ट्रेनिंग ली, दोस्त की मदद से संस्था बनायी शुकोह अलबदर तेज रफ्तार की जिंदगी वाले महानगर मुंबई में जहां दूसरों की जिंदगी के बारे में लोगों को सोचने का वक्त नहीं होता, जमशेदपुर के बंटी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकाल कर लोगों को समुद्र में डूबने से बचाते हैं. उन्होंने […]
लाइफ गार्ड की ट्रेनिंग ली, दोस्त की मदद से संस्था बनायी
शुकोह अलबदर
तेज रफ्तार की जिंदगी वाले महानगर मुंबई में जहां दूसरों की जिंदगी के बारे में लोगों को सोचने का वक्त नहीं होता, जमशेदपुर के बंटी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकाल कर लोगों को समुद्र में डूबने से बचाते हैं. उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ बे-वॉच लाइफ गार्ड नामक संस्था का गठन किया है.
यदि आपके पास खोने को कुछ नहीं होता, तो करने को बहुत कुछ होता है. जमशेदपुर के आदित्यपुर के रहनेवाले बंटी राव पर यह बात सही जमती है. बचपन में ही अपने मां-बाप को खोनेवाले बंटी मुंबई में एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर के रूप में अपनी आजीविका चलाते हैं. साथ ही जुहू चौपाटी पर लाइफ गार्ड के रूप में लोगों की मदद करते हैं.
मुंबई जैसे शहर में, जहां दूसरों की जिंदगी के बारे में लोगों को सोचने का वक्त नहीं होता, बंटी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकाल कर लोगों को डूबने से बचाने और उन्हें नयी जिंदगी देने के काम में लगे हैं. तट पर लोगों का जीवन सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ बे-वॉच लाइफ गार्ड नामक संस्था की नींव रखी. उन्होंने अब तक सत्तर से भी अधिक लोगों को डूबने से बचाया है. समुद्र में डूब चुके चालीस से भी अधिक लोगों के शवों को निकाला है. हालांकि, उन्हें इस बात का भी मलाल है कि वह उन 20 लोगों को नहीं बचा पाये, जिनकी डूबने से मौत हो गयी.
बंटी राव के जिंदगी के सफर की शुरुआत जमशेदपुर के आदित्यपुर के इलाका शेरे-पंजाब से होती है. बंटी का जन्म यहीं हुआ था. प्राइवेट स्कूल से महज नौंवी कक्षा तक की ही पढ़ाई कर सके. पिता टाटा स्टील में ठेके पर नौकरी करते थे, जिनकी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी. कुछ समय बाद लंबी बीमारी के कारण मां का निधन हो गया. साल 2000 में यह वह समय था, जब उन पर जैसे आपदाओं का पहाड़ टूट गया था. इसके बावजूद उन्होंने खुद को संभाला और हिम्मत बटोरी. उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में मुंबई का सपना देखा था. उन्होंने फैसला किया कि अब वह मुंबई जायेंगे और अपनी जिंदगी को आगे बढ़ायेंगे. वह बताते हैं कि मुंबई आने से पहले उन्होंने ऐसा कुछ विचार नहीं किया था कि वहां क्या करना है. मुंबई बस उनका सपना था, इसलिए कुछ पैसे जमा किया और यहां चले आये.
मुंबई आने के बाद जुहू चौपाटी के नाम से मशहूर समुद्र का किनारा उनका आसरा बना. लेकिन, यहां उनका कौन था, जो उन्हें आसरा देता. वह कुछ दिनों तक इधर-उधर भटकते रहे. इस दौरान जब पैसे खत्म हो गये, तो इस उधेड़बुन में रहे कि उन्हें अपनी जीविका के लिए क्या करना होगा. समुद्र के किनारों पर भटकने के दौरान उनसे वहीं के एक दुकानदार से मुलाकात हुई, जो किनारों पर खाने-पीने की दुकान लगाता था. उसने काम करने की सलाह दी और बदले में कुछ पैसे ऑफर किये. लेकिन, बंटी ने पैसे के ऑफर को ठुकराते हुए काम के बदले में सिर्फ खाने और रहने की जगह देने का अनुरोध किया. काम करने के दौरान वह चौपाटी पर आने वाले पर्यटकों से बातें करते, खाने-पीने की वस्तुओं का ऑर्डर लेते और डिलीवरी देते.
उनकी खुशमिजाजी से पर्यटक खुश होते. उनके काम को दुकान के मालिक ने काफी सराहा. कुछ दिन बीतने के बाद उन्होंने अपने एक साथी की सलाह पर अपना पोर्टफोलियो भी तैयार किया और फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमायी. पृथ्वी थियेटर में होने वाले नाटकों और कुछ धारावाहिकों में काम किया. लेकिन, अंसतुष्टि का भाव हमेशा बना रहा. कुछ अलग करने की चाह रखनेवाले बंटी ने एक्टिंग को अलविदा कहा और कुछ समय के लिए कैटरिंग का काम किया. वह वेटरों की जरूरतें पूरी करने के लिए काम करते, अपना परिचय देते और लोगों को काम की जरूरत होने पर उनसे मुलाकात करने की बात कहते. बंटी जुहू चौपाटी पर लगातार घूमते, उठती लहरों को देखते और डूबने की लगातार घटनाओं को सुनते थे. उन्होंने वहां पर सुरक्षा व्यवस्था में काफी कमी देखी.
वह बताते हैं जुहू चौपाटी लगभग पांच से छह किलोमीटर के दायरे में फैला है. उन्होंने यह भी देखा कि यहां पर लाइफ गार्ड की काफी कमी थी. धीरे-धीरे उन्होंने लाइफ गार्ड के काम को नजदीक से जानने का प्रयास किया. अपने एक साथी की मदद से लाइफ गार्ड्स की संख्या बढ़ाने के लिए स्थानीय विधायक और नगर निगम के अधिकारियों से मुलाकात की. लेकिन, कोई हल नहीं निकल सका. तब उन्होंने खुद ही लाइफ गार्ड के रूप में स्वयं काम करने का फैसला किया और लाइफ गार्ड के प्रशिक्षण के संबंध में जानकारी जुटाने लगे. इस बीच उन्हें राष्ट्रीय लाइफ सेवा सोसाइटी के बारे में पता चला जहां लाइफ गार्ड का प्रशिक्षण दिया जाता था. राष्ट्रीय लाइफ सेवा सोसाइटी की नींव रखने वाले रिटायर्ड एडमिरल ने उन्हें लाइफ गार्ड का प्रशिक्षण दिलवाने में मदद की. इस ट्रेनिंग में उन्हें किसी व्यक्ति को डूबने से बचाने और डूबे व्यक्ति का प्राथमिक उपचार के बारे में बताया गया.
प्रशिक्षण के बाद उन्होंने अपने एक साथी की मदद से बे-वॉच लाइफ गार्ड एसोसिएशन की नींव रखी. इस एसोसिएशन से अधिक से अधिक लाइफ गार्ड के रूप में अपनी सेवा देनेवालों को जोड़ने के लिए चौपाटी पर उन युवाओं को जोड़ा, जो वहां पर छोटे-मोटे रोजगार से जुड़े थे.
वह बताते हैं कि यहां के युवा इस काम में जोश के साथ अपनी भागीदारी देते हैं. गणपति विसर्जन और छठ पूजा डूबने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. इसलिए ऐसे समय में उन्हें खास रणनीति अपनाते हुए बचाव का काम करना होता है. हालांकि एसोसिएशन के पास बचाव में इस्तेमाल आनेवाले उपकरण जैसे- लाइफ जैकेट, बोट आदि की कमी है. फिर भी इसके वालंटियर स्वयं में पैसा जमा कर सामान खरीदते हैं. वह कहते हैं कि यदि उन्हें और अधिक मदद मिले, तो टीम के लोग बेहतर काम कर सकेंगे और अधिक से अधिक लोगों को डूबने से बचा सकेंगे.
उनके कारनामों की खबर ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच चुकी है. ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर बचाव का काम करनेवाली के 38 नामक संस्था की ओर से उनकी टीम को प्रशिक्षण दिये जाने का निमंत्रण भी प्राप्त हुआ है. लोगों के बचाने के साथ बे-वॉच की टीम लहरों के कारण तटों पर आ गये समुद्री जीवजंतु को भी बचाने और उन्हें वापस समुद्र में छोड़ने का काम भी करते हैं. बंटी अब नये वालंटियर को प्रशिक्षण देने के अलावा सुरक्षा संबंधित मानदंडों की जांच का भी काम करते हैं.
वह बताते हैं कि जमशेदपुर साल 2011-12 में जबरदस्त बाढ़ आयी थी. उन्होंने वहां युवाअों की मदद से दो समूह बनाया, जिनमें एक का काम डूबे क्षेत्र से लोगों का सुरक्षित निकालना था. दूसरे समूह का काम आवश्यक सामानों को घर से इकट्ठा कर उन जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाना था, जो डूबे गये क्षेत्र से बाहर निकाले गये थे.
उनके भाई राजू राव जमशेदपुर में ही रहते हैं, जबकि एक बहन की शादी हो चुकी है. आज उन्हें लगता है कि मुंबई आने का लिया गया उनका फैसला सही था. मुंबई के लोगों में उनके लिए इज्जत और प्यार को वह भगवान का आशीर्वाद मानते हैं.
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