।। रवि दत्त बाजपेयी ।।
ऊर्जा की चुनौतियां
आज भी कुल उत्पादन से अधिक है भारत में बिजली की मांग
भारत को अपनी ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दो विकल्प हैं, पहला प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की पूरी छूट दी जाये, जिसमें कोलगेट से कई गुने बड़े घपले सामान्य बात हों, दूसरा ऊर्जा के ऐसे घरेलू स्रोत तलाशें जायें, जो जल-जंगल-जमीन का विध्वंस न करें और स्थानीय स्तर पर ही ऊर्जा के उत्पादन, वितरण और शुल्क वसूलने की व्यवस्था बना सके. पढ़िए चौथी कड़ी में.
भारत में ऊर्जा की आवश्यकता सिर्फ एक रोजमर्रा की जरूरत नहीं है, बल्कियह समूचे देश के सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक और कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के निर्धारण में निर्णायक भूमिका में है. वैसे तो भारत में ऊर्जा की चुनौती बेहद सरल है; अपनी पूरी जनसंख्या को समुचित मूल्य पर ऊर्जा की आपूर्ति करना, लेकिन यह चुनौती बेहद कठिन बन जाती है जब इसमें भारत की विशाल जनसंख्या का आकार और समुचित मूल्य की समुचित परिभाषा जोड़ दी जाये.
समुचित मूल्य से तात्पर्य ऊर्जा प्रदान करने का वह दाम है, जो आपूर्तिकारों के लिए उचित और उपभोक्ताओं के लिए उपयुक्त हो, भारत में ऊर्जा का ऐसा मूल्य तय करना अभीष्ट भले हो, लेकिन अवश्यंभावी कतई नहीं है.
आज भी भारत में बिजली की मांग, कुल उत्पादन से कहीं अधिक है, जिसके कारण देश के एक बड़े भाग को बिजली की कटौती या इसकी अनियमित आपूर्ति से निबटना होता है. आनेवाले दिनों में भारत में ऊर्जा की मांग में बहुत भारी वृद्धि की संभावना है. भारत की आबादी का एक चौथाई हिस्सा आज भी ऊर्जा के अभाव में जीने को बाध्य है. इस आबादी की सामाजिक-आर्थिक उन्नति के लिए ऊर्जा की आवश्यकताएं बढ़ेंगी.
भारत में शहरीकरण और ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का शहर में आने के कारण शहरी क्षेत्रों में बिजली की मांग में वृद्धि संभावित है. भारत के आर्थिक विकास की गति बनाये रखने के लिए औद्योगिक व व्यावसायिक इकाइयों को अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ेगी, साथ ही भारत के ग्रामीण व शहरी उपभोक्ताओं में पेट्रोलियम पदार्थों की मांग लगातार बढ़ रही है.
भारत में ऊर्जा उत्पादन में कोयला 52 प्रतिशत, तेल 30 प्रतिशत, गैस 10 प्रतिशत, पनबिजली दो प्रतिशत और एक प्रतिशत नाभिकीय स्रोत है, केवल बिजली उत्पादन का 85 फीसदी भाग कोयला-तेल-गैस पर आधारित है.
पिछले कुछ वर्षों में भारत में बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए सार्वजनिक व निजी उद्यमों ने कोयले पर आधारित अनेक संयंत्र लगाये हैं, जिसके बाद से भारत में कोयले की मांग बहुत बढ़ गयी है. भारत में इस मांग के अनुरूप कोयले का उत्पादन नहीं हो रहा है
जिसके कारण बिजली उत्पादकों को इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से कोयला खरीदना पड़ रहा है. कोयले भंडार के मामले में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है, जबकि विदेशों से कोयला मंगाने में यह विश्व में तीसरे स्थान पर है, इस विसंगति का कारण भारतीय कोयले की खराब गुणवत्ता नहीं है बल्किकोयले की दलाली में हो रही धांधली है.
चीन की बढ़ती मांग के साथ ही विश्व बाजार में कोयले के दाम भी बहुत ऊंचे हो गये हैं, स्थानीय कोयले की कमी और आयातित कोयले के महंगे दामों के चलते जहां एक ओर भारत में बिजली उत्पादन स्थापित क्षमता से कम हो रहा है तो दूसरी ओर बिजली उत्पादक अपने संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने से बच रहे हैं. इसके अलावा कोयले का अधिक उपयोग पर्यावरण और जलवायु के लिए भी बेहद हानिकारक है.
भारतीय अर्थव्यवस्था में भुगतान असंतुलन और विदेशी मुद्रा भंडार के ह्रास का मुख्य कारण भारत की आयातित पेट्रोलियम पर निर्भरता है, आज भारत में तेल उत्पादों का 75 फीसदी अंश विदेशों से आता है जो वर्ष 2016-17 में 80 फीसदी होगा, इसी प्रकार गैस का 19 प्रतिशत भाग विदेशों से आता है जो 2016-17 में 29 प्रतिशत हो जायेगा. इस पर निर्भरता के चिंताजनक पहलू वैश्विक बाजार में इन संसाधनों के मूल्यों में अनिश्चितता और इन संसाधनों की खरीद के लिए चीन के साथ होड़ लेना है.
भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के निर्धारण में इस आयातित पेट्रोलियम की अहम भूमिका है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बड़ा खरीददार होने के बाद भी भारत तेल निर्यातक देशों के सामने भिक्षुक की तरह है. ईरान तथा मध्य एशिया से प्राकृतिक गैस को पाइप लाइन द्वारा अपने यहां लाने में भी भारत असफल रहा है, एक मजबूत महाशक्तिा चीन के उलट भारत को इस गैस से वंचित करने के लिए कभी अमेरिका की त्यौरियां तो कभी पाकिस्तान की घुड़कियां बहुत कारगर रही है.
भारत में गैस की तलाश में लगी कुछ निजी कंपनियों ने अपनी उत्पादन क्षमता को जान बूझ कर घटा दिया है ताकि गैस की कमी दिखा कर इसके दाम बढ़ाये जा सकें, जिससे गैस आधारित बिजली उत्पादकों को विदेशों से महंगी गैस आयात करनी पड़ रही है.
जापान के नाभिकीय बिजली संयंत्र में दुर्घटना के बाद से भारत में भी न्यूक्लीयर ऊर्जा के प्रति भारी विरोध है और अब नये परमाणु संयंत्र लगना बहुत कठिन होगा. भारत में वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा का उपयोग बहुत कम है, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों को छोड़कर सौर ऊर्जा में निवेश बहुत कम हुआ है.
वैकल्पिक ऊर्जा में भारत अपने सारे यंत्र-उपकरण केवल बाहर (अधिकतर चीन) से आयात कर रहा है, इस ऊर्जा के संग्रह, परिवर्तन के क्षेत्र में भारत में कोई उल्लेखनीय शोध या औद्योगिक उत्पादन नहीं हो रहा है, आयातित तेल-गैस की तरह ही वैकल्पिक ऊर्जा के यंत्रों में भी भारत सिर्फ विदेशी सहयोग पर आश्रित है.
दूर दराज के इलाकों में बिजली के वितरण की व्यवस्था बेहद खराब है और ज्यादा दूर तक बिजली के वितरण में ऊर्जा का भारी नुकसान भी होता है. बिजली वितरण की लचर व्यवस्था को सुधारना एक दीर्घकालीन व बहुत खर्चीला विकल्प है, जबकि सौर ऊर्जा के लघु संयंत्रों द्वारा स्थानीय विद्युत-वितरण को आसान और कुशल बनाया जा सकता है.
सौर ऊर्जा के मुख्य उपकरण फोटो वोल्टिक सेल के दाम लगातार घटते गये हैं और इनकी ऊर्जा संग्रह क्षमता में भी सुधार हुआ है, लेकिन इस तकनीक का समुचित लाभ उठाने के लिए भारत को इसमें आत्मनिर्भर बनना होगा.
भारत को अपनी ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी दो विकल्प हैं, पहला प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की पूरी छूट दी जाये, जिसमें कोलगेट से कई गुने बड़े घपले सामान्य बात हो; दूसरा ऊर्जा के ऐसे घरेलू स्रोत ढूंढ़ें जायें, जो जल-जंगल-जमीन का विध्वंस न करें और स्थानीय स्तर पर ही ऊर्जा के उत्पादन, वितरण और शुल्क वसूलने की व्यवस्था बना सके.
भारत में ऊर्जा की चुनौती से निबटने के लिए अब कड़े निर्णयों का समय है; ऊर्जा आपूर्ति सिर्फ मुनाफाखोरी का व्यापार नहीं है, लेकिन एक जनोपयोगी सेवा होने के बाद भी ऊर्जा आपूर्ति नि:शुल्क सेवा हरगिज नहीं है.