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शारदीय नवरात्र, सातवां दिन : कालरात्रि दुर्गा का ध्यान
करालरूपा कालाब्जसमानाकृति विग्रहा। कालरात्रिः शुभं दद्दाद् देवी चण्डाटटहासिनी।। जिनका रूप विकराल है, जिनकी आकृति और विग्रह कृष्ण कमल सदृश है तथा जो भयानक अट्टहास करनेवाली हैं, वे कालरात्रि देवी दुर्गा मंगल प्रदान करें. संपूर्ण जगत् देवीमय है-7 नवरात्र के सातवें दिन कालरात्रि देवी के रूप में पूजा की जाती है. नैवेद्य में गाय का घी, […]
करालरूपा कालाब्जसमानाकृति विग्रहा।
कालरात्रिः शुभं दद्दाद् देवी चण्डाटटहासिनी।।
जिनका रूप विकराल है, जिनकी आकृति और विग्रह कृष्ण कमल सदृश है तथा जो भयानक अट्टहास करनेवाली हैं, वे कालरात्रि देवी दुर्गा मंगल प्रदान करें.
संपूर्ण जगत् देवीमय है-7
नवरात्र के सातवें दिन कालरात्रि देवी के रूप में पूजा की जाती है. नैवेद्य में गाय का घी, चावल का चिउड़ा, गुड़ अर्पण करें. इससे आपकी जन्मपत्री के ग्रहों की बाधा, दुष्टों व शत्रुओं का नाश होता है. आकस्मिक विपत्ति दूर होती है. मां की कृपा से आप शोकमुक्त होंगे.
शक्ति ही सर्वोपरि है. वे सगुणा साकारा, निर्गुणा निराकार के भेद से अनेक रूप में जानी जाती हैं. वेदोपनिषद पुराणेतिहासादि ग्रंथों में सर्वत्र देवी की अखंड और अपार महिमा का विवरण-वर्णन पाया जाता है, जिससे स्पष्ट होता है कि शक्ति सृष्टि की मूल नाड़ी, चेतना का प्रवाह और सर्वव्यापी है. शक्ति की उपासना आज की उपासना नहीं है
वह अत्यंत प्राचीन बल्कि अनादि है. वह एक महाशक्ति ही परमात्मा है, जो विभिन्न रूपों में विविध लीलाएं करती हैं. परमात्मा के पुरूषवाचक सभी स्वरूप इन्हीं अनायी, परमेश्वरी आद्यामहाशक्तिके ही हैं. ये ही महाशक्ति अपनी मायाशक्ति को जब अपने अंदर छिपाये रखती हैं, उससे कोई क्रिया नहीं करतीं, तब निष्क्रिय, शुद्ध ब्रह्म कहलाती हैं. ये ही जब उसे विकासोन्मुख करके एक से अनेक होने का संकल्प करती हैं, तब स्वयं ही पुरूष रूप से मानो अपनी ही प्रकृति रूप योनि में संकल्प द्वारा चेतन रूप बीज स्थापन करके सगुण, निराकार परमात्मा बन जाती हैं. श्रीमद् भगवद्गीता में स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-
मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।।
हे अर्जुन, मेरी महदब्रह्म अर्थात् अष्टधा मूल प्रकृति संपूर्ण भूतों की योनि है और उसमें मैं चेतनरूपी बीज को स्थापित करता हूं, उस जड़-चेतन के संयोग से सभी भूतों की उत्पत्ति होती है.
चेतन परमात्मरूपिणी महाशक्ति के बिना जड़ प्रकृति से यह सारा कार्य कदापि संपन्न नहीं हो सकता. इस प्रकार महाशक्ति विश्वरूप विराट पुरूष बनती हैं और इस सृष्टि के निर्माण में स्थूल निर्माणकर्ता प्रजापति के रूप में आप ही अंशावतारके भाव से ब्रह्मा और पालन-कर्ता के रूप में विष्णु और संहारकर्ता के रूप में रूद्र बन जाती हैं. ये ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि अंशावतार भी किसी कल्प में दुर्गारूप से होते हैं. (क्रमशः)
प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा
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