भारत की चुनौतियां
उड़ी हमले के बाद देशभर से उठती जवाबी कार्रवाई की मांग के बीच भारत सरकार ने जरूरी संयम का परिचय दिया है. इस समय सरकार जहां अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक प्रयास तेज करते हुए पाकिस्तान को घेरने में जुटी है, वहीं सीमा पर पाक सैनिकों की नापाक हरकतों का भारतीय सेना डट कर मुकाबला कर रही है. दरअसल, जवाबी कार्रवाई की राह में भारत के सामने चुनौती सिर्फ पाकिस्तान और उसकी शह पर कश्मीर में जारी अशांति से निबटना ही नहीं है, बल्कि खतरा यह भी है कि चीन ऐसी किसी कार्रवाई के वक्त पाकिस्तान को शह देकर अपने मंसूबे पूरे करना चाहेगा. यह अकारण नहीं है कि पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगनाओं पर लगाम कसने के भारत के कूटनीतिक प्रयासों को चीन विफल करता रहा है.
दरअसल, चीन आर्थिक एवं सामरिक सहयोग सहित अलग-अलग तरीकों से पाकिस्तान को उपकृत कर उसे भारत के साथ उलझाये रखना चाहता है, ताकि भारत दक्षिण एशिया में सामरिक या आर्थिक दृष्टि से चीन के समानांतर एक शक्ति बन कर न उभर सके. ऐसे में भारत को कोई भी कदम फूंक-फूंक कर ही उठाने की जरूरत है. पाकिस्तान और चीन के प्रगाढ होते रिश्तों से भारत के लिए दरपेश चुनौतियों पर नजर डाल रहा है आज का विशेष.
कमर आगा
रक्षा विशेषज्ञ
किसी भी युद्ध की स्थिति से तैयार रहने के लिए भारत के पास असलहे और गोला-बारूद की उतनी कमी नहीं है, जितना कुछ लोगों द्वारा बताया जा रहा है. पाकिस्तान हमसे छद्म युद्ध लड़ रहा है, इसलिए हमें वह चुनौती लगता है. दरअसल, पाकिस्तान के इस छद्म युद्ध से भारत के भीतर अक्सर तनाव की स्थिति बन जाती है और देश में एक प्रकार की नकारात्मकता फैल जाती है.
यह नकारात्मकता सामाजिक तौर पर हमारे लिए नुकसान पहुंचानेवाली तो है, लेकिन इससे भारत-पाक युद्ध की आशंका नहीं करनी चाहिए. सामरिक मामले में पाकिस्तान से कहीं भी भारत कमजोर नहीं है. पाकिस्तान ने जब भी भारत से युद्ध लड़ा है, उसने मुंह की खायी है. इस ऐतबार से अगर हम गौर करें, तो सामरिक ताकत के मामले में भारत की चुनौती चीन से है, पाकिस्तान से नहीं. हथियारों को लेकर हमारी तुलना चीन से ही होती रही है, क्योंकि चीन के पास भारत से कहीं ज्यादा हथियार हैं और चीन अपने आयुध भंडार को लगातार बढ़ाता ही जा रहा है. इसलिए भारत की चुनौती चीन के सामने कुछ ज्यादा है.
भारत-पाक युद्ध में चीन की भूमिका
अगर किसी एक बिंदु पर भारत की चुनौती पाकिस्तान से है, तो वह बिंदु यह है कि अगर भारत-पाक युद्ध होता है (इसकी संभावना कम है), तो इसमें चीन की क्या भूमिका होगी. मेरा यह मानना है कि अगर भारत-पाक युद्ध होता है, तो चीन फौरन ही पाकिस्तान को सामरिक मदद कर देगा. लेकिन, यहां गौर करनेवाली बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत-पाक के अापसी तनाव या युद्ध की स्थिति में चीन अपनी तरफ से प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं करना चाहेगा और न ही कुछ बोलेगा.
चीन इस मामले में बहुत चालाक है. तब ज्यादा से ज्यादा चीन की भूमिका यह होगी कि वह पाकिस्तान को मानसिक और सामरिक रूप से मदद करे, उसे हथियारों की सप्लाई करे और भारत-पाक युद्ध को लेकर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की वकालत करे. अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की मदद करके चीन यही चाहेगा कि भारत-पाक के बीच युद्ध लंबे समय तक चलता रहे. इस तरह की रणनीति को अमेरिका ने ईरान-इराक युद्ध में अपनाया था. उस वक्त अमेिरका कभी ईरान को हथियार सप्लाई करता था, तो कभी इराक को हथियार भेजता था. ईरान-इराक आपस में आठ साल तक लड़ते रहे.
अगर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, तो चीन वैसी ही भूमिका निभायेगा, जैसा अमेरिका ने निभाया था. लेकिन यहां अंतर यह है कि चीन सिर्फ पाकिस्तान को हथियार देगा, भारत को नहीं. चीन अप्रत्यक्ष रूप से हमारे खिलाफ होगा और युद्ध को बनाये रखने के लिए पाक को चीन अपने हथियारों की सप्लाई करता रहेगा. हालांकि, भले चीन यह न चाहे कि भारत-पाक युद्ध बड़े पैमाने (फुल फ्लेज) पर हो.
भारत को अपना प्रतियोगी मानता है चीन
चीन और पाकिस्तान के बीच जिस तरह का संबंध है, वैसा संबंध भारत और चीन के बीच नहीं है. चीन और पाकिस्तान के बीच अपने कई समझौते हैं और साझेदारियां हैं, बिना किसी बड़े मतभेद के. लेकिन, वहीं भारत-चीन के बीच के रिश्तों में काफी मतभेद हैं. भारत-चीन के बीच सीमा विवाद जैसे मुद्दे हैं, जिसे लेकर दोनों में अक्सर खींचतान मची रहती है.
दरअसल, चीन पूरे दक्षिण एशिया में भारत को अपना एक प्रतियोगी मानता है कि भारत उसके मुकाबले खड़ा हो रहा है. चीन को इस बात की चिंता होती है कि भारत में दुनियाभर से निवेश आ रहा है, जो पहले चीन में जाता रहा था. चीन यह किसी भी सूरत में यह नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी देश आर्थिक रूप से, तकनीकी रूप से, सामरिक रूप से आगे बढ़े. इस तरह के अनेकों कारण हैं, जिन्हें समझ कर हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि आखिर क्यों अप्रत्यक्ष तौर पर चीन अपने पड़ोसी भारत को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहता है. दूसरी बात यह है कि भारत दक्षिण एशिया में एक प्रमुख शक्ति (पावर) बनने की इच्छा रखता है और भारत इस तरफ तेजी से अागे बढ़ भी रहा है.
इसलिए चीन की यह कोशिश रहती है कि वह भारत को शक्ति बनने से रोके और इसीलिए वह पाकिस्तान की मानसिक और सामरिक तौर पर मदद करता रहता है, ताकि पाकिस्तान पड़ोस में अपनी खुराफात को अंजाम देकर भारत को परेशान करता रहे, ताकि भारत का विकास बाधित हो और वह महाशक्ति बनने की राह से भटक जाये. भारत को ताकतवर बनने से रोकने के लिए ही चीन ने अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक धर रखी है.
भारत, पाक और चीन के बीच व्यापार
भारत का पाक के साथ प्रत्यक्ष रूप से महज ढाई बिलियन डॉलर का व्यापार है, जिसका भारत के लिए कोई मायने नहीं है. भारत का अप्रत्यक्ष रूप से पाक के साथ करीब पांच बिलियन डॉलर तक का व्यापार है, क्योंकि पाक भारतीय सामानों को सीधे ताैर पर खरीदने के बजाय सिंगापुर, दुबई या अन्य भारतीय निर्यातक प्रतिष्ठानों से, जहां-जहां ड्यूटी फ्री पोर्ट हैं, वहां से खरीदता है.
ऐसे में यह तो कहा ही जा सकता है कि भारत-पाक के बीच व्यापार बढ़ता है, तो दोनों देशों के राजनीतिक संबंध सुधरने में काफी-कुछ मदद मिल सकती है. पाकिस्तान को भारत मोस्ट फेवर्ड नेशन मानता है और इस मानने के चलते भारत चाहता है कि भारत-पाक व्यापारिक रिश्ते मजबूत हों और बढ़ें, जैसा कि भारत का एक मजबूत व्यापारिक रिश्ता चीन से है.
चीन के साथ भारत एक समय में अपने व्यापार को बढ़ाते हुए 75 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया था, लेकिन अब इसमें भी थोड़ी कमी आ गयी है और यह 60 बिलियन डॉलर हो गया है. भारत से चीन के व्यापार का आकार बड़ा होने के चलते भी चीन प्रत्यक्ष रूप से भारत के खिलाफ नहीं खड़ा होना चाहता. वैसे भी, किसी भी दो देशों में उनके आपसी मतभेद की बात अलग है और व्यापारिक रिश्तों की बात दूसरी है. चीन इस रणनीति को बखूबी अपनाता रहता है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
जानिए, पाक को क्यों मिल रही है चीनी मदद और भारत के लिए क्या हैं इसके मायने
– पाक और चीन के संबंधों की शुरुआत 1950 में हुई. बीतते वक्त के साथ यह प्रगाढ़ होता गया और दोनों ही देशों ने इसका बड़ा आधार अपने ‘कॉमन शत्रु’ भारत के खिलाफ मजबूती से उभरना तय किया.
-चीन जहां कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का समर्थन करता है, वहीं पाकिस्तान तिब्बत, ताइवान और शिनजियांग मामले पर चीन का समर्थन करता है.
– इस समय चीन के लिए पाकिस्तान भारत को उभरने से रोकनेवाला एक सस्ता द्वितीयक फैक्टर है, जबकि पाकिस्तान के लिए चीन भारत के विरुद्ध सुरक्षा मुहैया करानेवाला एक बड़ा गारंटर है.
– भारत और पाक के बीच तनाव को चीन इसलिए भी बढ़ावा देता रहा है, क्योंकि वह चाहता है कि भारत दक्षिण एशिया में ही उलझा रहे और अंतरराष्ट्रीय फलक पर उसके लिए चुनौती बन कर नहीं उभर सके.
तािक पाक पर ही रहे भारतीय सेना फोकस
वॉशिंगटन आधारित एक फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान को मदद करने की चीन की रणनीति का बड़ा कारण यह है कि इसके जरिये वह भारतीय सैन्य बलों का फोकस इस क्षेत्र में चीन के बजाय पाकिस्तान की ओर बनाये रखना चाहता है.
पाक के लिए बड़ा आर्म्स सप्लायर है चीन
पाकिस्तान के लिए चीन एक बड़ा आर्म्स सप्लायर है. तकनीक हासिल करने के लिए भी वह चीन पर ही निर्भर है. वर्ष 1992 में चीन ने आधिकारिक तौर पर 36 एम9 बैलिस्टिक मिसाइल ट्रांसफर किये. इसके बाद से दोनों देशों के संबंध मजबूती की ओर बढ़ते गये. फिर चीन ने पाकिस्तान को जेएफ-17, एफ-7 एयरक्राफ्ट समेत विविध किस्म के अन्य छोटे हथियार मुहैया कराये हैं.
ऑर्म्ड फोर्सेज एयरक्राफ्ट चीन का योगदान
पाक के करीब 70 फीसदी ऑर्म्ड फोर्सेज एयरक्राफ्ट और मुख्य युद्धक टैंक चीन से लिये गये हैं. चीन ने उसे 400 से ज्यादा मिलिटरी एयरक्राफ्ट, 1,600 मुख्य युद्धक टैंक और 40 से ज्यादा नेवी शिप
दिये हैं.
चीन की मदद से विकसित किये हथियार
चीन ने न केवल पाकिस्तानी सेना को आधुनिक बनाया है, बल्कि पाकिस्तान में संयुक्त रूप से अनेक हथियार भी विकसित किये हैं. जे-10 और जेएफ- 17 रूसी एयरक्राफ्ट एसयू-27 और मिग-29 के हालिया चीनी संस्करण हैं. जेएफ- 17 थंडर एयरक्राफ्ट को पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स, कामरा में चीन और पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से विकसित किया था.
इसके अलावा चीनी मदद से विकसित कुछ अन्य हथियार हैं :
– एडवांस ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट के-8
– अल खालिद टैंक
– बाबर क्रूज मिसाइल
– एफ-22 नेवल फ्रिगेट्स
– अवाक्स (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम)
चीन की मदद से कई बड़े निर्माण
– ग्वाद डीप सी पोर्ट -पाकिस्तान स्पेस एंड अपर एटमॉस्फेयर रिसर्च कमीशन – हेवी रिब्यूल्ड फैक्टरी
परमाणु कार्यक्रम के विकास में भी सहयोग
यूएस इंटेलिजेंस एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने पाक को परमाणु हथियारों के डिजाइन समेत इतना यूरेनियम दिया है, जिससे वह दो परमाणु बम बना सकता है. चीन ने चश्मा में दो परमाणु रिएक्टर बनाये हैं व दो और बनाना चाहता है.
मिलिटरी बेस भी बनाना चाहता है चीन
चीन दुनिया के अन्य देशों में भी अपना मिलिटरी बेस स्थापित करना चाहता है. कम-से-कम एक मिलिटरी बेस वह पाकिस्तान में भी स्थापित करना चाहता है, ताकि भारत पर दबाव बना सके और पाकिस्तान व अफगानिस्तान में कायम अमेरिकी वर्चस्व को नियंत्रित कर सके. इसके अलावा इस मिलिटरी बेस के जरिये चीन उइगर समुदाय को उभरने से रोकने में पाकिस्तान की मदद ले सकता है, जो शिनजियांग प्रांत में एक अलग राष्ट्र की मांग कर रहे हैं. चीन में उइगर एक मुसलिम समुदाय है. (ऊपर के सभी तथ्य पाकिस्तान डिफेंस की वेबसाइट डिफेंस डॉट पीके पर प्रकाशित आलेख ‘चाइनीज मिलिटरी असिस्टेंस टू पाकिस्तान एंड इंप्लीकेशंस फॉर इंडिया’ पर आधारित.)
पाकिस्तान को आठ नयी पनडुब्बी देगा चीन
चीन अगले एक दशक में पाकिस्तान को आठ मोडिफाइड डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक सबमरीन देगा. ‘ट्रिब्यून डॉट कॉम डॉट पीके’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के नेक्स्ट-जेनरेशन सबमरीन प्रोग्राम के मुखिया और सीनियर नेवल अधिकारियों ने बीते माह नेशनल एसेंबली की संबंधित स्टैंडिंग कमेटी को यह जानकारी मुहैया करायी है.
हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है कि दोनों देशों की ओर से संबंधित करार पर हस्ताक्षर हुए हैं या नहीं, लेकिन पाकिस्तानी नौसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अप्रैल में यह घोषणा की थी कि आठ में से चार पनडुब्बियां चीन से बन कर आयेंगे, जबकि शेष चार का निर्माण कराची शिपयार्ड एंड इंजीनियरिंग वर्क्स में किया जायेगा. चार से पांच बिलियन डॉलर में यह सौदा हुआ है और अनुमान है कि चीन इसे कम ब्याज दरों पर लंबी अवधि के लोन के रूप में मुहैया करायेगा.
मोस्ट वांटेड आतंकी का चीन ने िकया बचाव
इस वर्ष पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर और उसके संगठन जैश-ए-मोहम्मद पर पाबंदी लगाने के लिए भारत ने कई स्तरों पर पहल की, लेकिन चीन उसमें अड़ंगा लगाता रहा.
संबंधित भारतीय तकनीकी दल ने अमेरिका, यूके और फ्रांस को इस संबंध में साक्ष्य मुहैया कराये, जिसके आधार पर इन देशों ने इस आतंकी समूह पर पाबंदी की सहमति जतायी, लेकिन ‘यूनाइटेड नेशंस सेंक्शंस कमिटी’ द्वारा मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने की इस मुहिम को चीन ने यह कहते हुए समर्थन नहीं दिया कि यह मसला सुरक्षा परिषद द्वारा ‘तय मानदंडों’ के अनुरूप नहीं है.
बीते दिनों मास्को में रूस-इंडिया-चाइना (आरआइसी) के बीच हुई त्रि-पक्षीय वार्ता के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन के विदेश मंत्री के समझ पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर और जैश-ए-मोहम्मद को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित करने की भारत की मुहिम का समर्थन करने का मसला उठाया, लेकिन अब तक इसका सार्थक समाधान नहीं हो पाया है. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र द्वारा पाकिस्तान-आधारित आतंकी समूहों का बहिष्कार करने की मुहिम को चीन पहले भी कई बार नकार चुका है.
पाकिस्तान के समर्थन में उसने ‘वीटो’ तक का इस्तेमाल किया है. पिछले वर्ष जुलाई में यूएन में भारत की ऐसी ही एक अन्य मुहिम को चीन ने कामयाब नहीं होने दिया, जिसमें मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड जकी-उर-रहमान-लखवी पर पाकिस्तान में कार्रवाई की मांग की गयी थी.