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भारत ने बलूचिस्तान में अत्याचार और उत्पीडन का मामला UN में उठाया

जिनिवा : बेहद स्पष्ट और कडे संदेश में भारत ने सोमवार को पाकिस्तान से आतंकवाद का समर्थन बंद करने तथा अवैध तरीके से कब्जा किए गए पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को खाली करने को कहा. साथ ही भारत ने बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा और सिंध में मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों […]

जिनिवा : बेहद स्पष्ट और कडे संदेश में भारत ने सोमवार को पाकिस्तान से आतंकवाद का समर्थन बंद करने तथा अवैध तरीके से कब्जा किए गए पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को खाली करने को कहा. साथ ही भारत ने बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा और सिंध में मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों के मुद्दे को भी उठाया.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (एचआरसी) के 33वें सत्र में उत्तर देने के अधिकार के तहत भारत ने कहा, ‘‘हम, एक बार फिर, पाकिस्तान से कहते हैं कि वह भारत के किसी भी हिस्से में हिंसा तथा आतंकवाद को उकसाना और समर्थन देना बंद करे तथा किसी भी रुप में हमारे अंदरुनी मामलों में दखलअंदाजी बंद करे. हम परिषद से अनुरोध करते हैं कि वह पाकिस्तान से अवैध तरीके से कब्जा किए गए पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के क्षेत्र को खाली करने को कहे.” भारत ने कहा कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के बारे में झूठे तथ्यों तथा आंकड़ों के आधार पर झूठी बातें बताकर लगातार परिषद के धैर्य तथा बुद्धिमतता की परीक्षा ले रहा है.

उसने कहा, पाकिस्तान का 1947 से ही कश्मीर की सीमा पर नजर है और उसका पुख्ता सबूत 1947, 1965 और 1999 में उसकी ओर से दिखायी आक्रामकता है. वर्तमान में पाकिस्तान ने अवैध तरीके से और जबरन जम्मू-कश्मीर में 78,000 वर्ग किलोमीटर (लगभग) भारतीय भूमि पर कब्जा किया हुआ है. भारत ने कहा कि कश्मीर में अशांति का मूल कारण पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित सीमापार का आतंकवाद है. पाकिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा उठाते हुए भारत ने कहा, ‘‘अन्य प्रांतों सहित बलूचिस्तान के लोग रोजाना के अपमान और प्रताडना को दशकों से झेल रहे हैं.” उसने कहा, ‘‘हिन्दुओं, ईसाई, शिया, अहमदिया, इस्माइली और अन्य धार्मिक तथा पंथिक अल्पसंख्यक समुदायों को भेदभाव, प्रताडना का सामना करना पडा है और पाकिस्तान में उनपर निशाना लगाकर हमला किया जाता है. अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को तोडा जा रहा है. ईशनिंदा कानून लागू है और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ खूब प्रयुक्त होता है.”

वहीं कल दिन में भारत ने अपने भाषण में कहा था कि उसका दृढता से यह मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ ‘‘बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने” की नीति अपने लोगों से की गई प्रतिबद्धता के साथ ही एक अंतरराष्ट्रीय दायित्व भी है. भारत ने यह बात अपनी सेना पर एक भीषण आतंकवादी हमला होने के एक दिन बाद कही जिसमें 18 सैनिक शहीद हो गए. भारत ने यहां संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 33वें सत्र में बयान देते हुए परिषद का आह्वान भी किया कि वह पाकिस्तान से कहे कि वह सीमापार घुसपैठ पर रोक लगाये, आतंकवाद के ढांचे को नष्ट करे और आतंकवाद के केंद्र के तौर पर काम करना बंद करे.

भारत ने कहा, ‘‘समय आ गया है कि भारत की धरती पर यह जघन्य हिंसा जारी रखने वालों को पाकिस्तान की ओर से दिये जाने वाले नैतिक और साजोसामान समर्थन पर यह परिषद ध्यान दे.” भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान सहित पाकिस्तान के अन्य हिस्सों में उत्पीडन एवं मानवाधिकार के खुलेआम उल्लंघन का मुद्दा एक बार फिर उठाते हुए कहा कि इसका पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है. भारत ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा अपने लोगों के एक बडे हिस्से से दुर्व्यवहार करने से एक अशांति उत्पन्न हुई है जिसने अपने पडोसी देशों की सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न करना शुरूकर दिया है.

भारत की ओर से बयान में कहा गया, ‘‘भारत का दृढता से यह मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपने लोगों से की गई प्रतिबद्धता के साथ ही एक अंतरराष्ट्रीय दायित्व भी है.” भारत ने जोर देकर कहा कि आतंकवादी कृत्य मानवाधिकार का सबसे बडा उल्लंघन हैं क्योंकि यह पीडितों से सबसे मूल मानवाधिकार….जीवन जीने का अधिकार छीन लेता है. भारत ने कहा कि यह मुद्दे के किसी भी निष्पक्ष पर्यवेक्षक को स्पष्ट होना चाहिए.

भारत ने कहा कि भारत अपने पडोस से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद से लंबे समय से प्रभावित रहा है. कश्मीर में गडबडी का मूल कारण पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित सीमापार आतंकवाद है जो कि इतना निष्ठुर है कि वह नागरिकों और यहां तक कि बच्चों को हिंसक भीड के आगे खडा करके खतरे में डालकर उनका इस्तेमाल करने से संकोच नहीं करता. भारत ने कहा कि हम इस परिषद से आग्रह करते हैं कि वह इस खतरे पर समग्र दृष्टिकोण अपनाये और आतंकवाद का इस्तेमाल मानवाधिकार का बहाना बनाकर देश की नीति के तौर पर नहीं करने दे.

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