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कलर थेरेपिस्ट जो रंगों से सुधारे सेहत

रचनात्मक आधार पर यदि आप अलग-अलग रंगों को न केवल प्यार करते हैं, बल्कि उसके वैज्ञानिक पहलुओं से भी वाकिफ हैं, तो आपके लिए क्रोमोथेरेपी यानी कलरथेरेपी से बेहतर कैरियर क्या हो सकता है. इस क्षेत्र में आने के बाद आप बिल्कुल अलग प्रकार के कैरियर की ओर मजबूती से कदम बढ़ा सकते हैं, जहां […]

रचनात्मक आधार पर यदि आप अलग-अलग रंगों को न केवल प्यार करते हैं, बल्कि उसके वैज्ञानिक पहलुओं से भी वाकिफ हैं, तो आपके लिए क्रोमोथेरेपी यानी कलरथेरेपी से बेहतर कैरियर क्या हो सकता है. इस क्षेत्र में आने के बाद आप बिल्कुल अलग प्रकार के कैरियर की ओर मजबूती से कदम बढ़ा सकते हैं, जहां जॉब के साथ-साथ एंटरप्रेन्योरशिप के क्षेत्र में भी पहचान बनाने के ढेर सारे मौके हैं…

क्रोमोथेरेपी या कलरथेरेपी एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है, जिसमें इनसान की मानसिक और शारीरिक सेहत को दुरुस्त रखने के लिए सातों प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है.

क्रोमोथेरेपिस्ट मेडिकल प्रैक्टिशनर होते हैं, जो रंगों के प्रारूप में प्रकाश आरोपित करते हैं, जिससे इंसान के शरीर के खास हिस्सों में ऊर्जा पैदा की जाती है. डिप्रेशन, एग्जीमा, हाइ ब्लड प्रेशर, मेंस्ट्रुअल समस्याओं समेत अनेक बीमारियों के इलाज में हजारों सालों से कलरथेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके अलावा यह थेरेपी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने, याददाश्त बढ़ाने, क्रिएटिव चीजों को सीखने, तनाव दूर करने और खुश रखने में इनसान की मदद करता है.

रंगों से होता है इलाज

कलरथेरेपी के विशेषज्ञों के मुताबिक, इनसान के शरीर में पैदा होनेवाले अनेक विकारों और बीमारियों का कारण शरीर के ऊर्जा केेंद्र या चक्रों में असंतुलन कायम होना है.

इस थेरेपी में विविध रंगों के प्रकाश के जरिये इनसान के फिजिकल, इमोशनल, स्पिरिचुअल और मेंटल लेवल को संतुलित किया जाता है. इससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, जो ऊर्जा केंद्र का संतुलन बनाये रखता है. अथर्ववेद के अंतिम अध्याय- सूर्य किरण चिकित्सा- में इस चिकित्सा पद्धति का उल्लेख किया गया है. प्राचीन काल में मंदिरों को खास रंगों से रंगने का यह भी एक कारण था.

कैसे बन सकते हैं क्रोमोथेरेपिस्ट

क्रोमोथेरेपिस्ट या कलर थेरेपिस्ट प्रैक्टिशनर बनने के लिए क्रोमोथेरेपी में डिप्लोमा या बैचलर डिग्री की जरूरत होती है. इस क्षेत्र में आने के लिए आपके पास बायोलॉजी, केमिस्ट्री और फिजिक्स की बेसिक जानकारी होनी चाहिए.

जॉब के मौके

भारत में क्रोमोथेरेपी ट्रीटमेंट की विधा बहुत पुरानी मानी जाती है, फिर भी मौजूदा समय में इस क्षेत्र में संगठित रूप से जॉब के मौके ज्यादा नहीं हैं. लेकिन संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह शहरी जीवन में लोगों में तनाव बढ़ रहा है, इसे देखते हुए इस क्षेत्र में असीमित मौके मुहैया हो रहे हैं.

मौजूदा समय में ज्यादातर लोग स्ट्रेस में जीते हैं और उसके निदान के लिए इन वैकल्पिक तरीकों की ओर रुख करते हैं.

देशभर में बहुत से हॉस्पिटल, नेचुरोपैथी क्लीनिक्स, नेचर केयर हेल्थ सेंटर आदि में क्रोमोथेरेपी ट्रीटमेंट से मरीजों का इलाज किया जाता है, जहां इन प्रोफेशनल्स की जरूरत होती है. इस क्षेत्र में पर्याप्त सफलता अर्जित करने के बाद आप अपना एक बड़ा क्लाइंट-आधार तैयार कर सकते हैं. क्रोमोथेरेपिस्ट के तौर पर आप किसी प्रतिष्ठित संस्थान में शोधकार्य या अध्यापन भी कर सकते हैं.

कहां-कहां होती है पढ़ाई

भारत में कुछ ही ऐसे संस्थान हैं, जहां इस विषय की पढ़ाई एक अलग विषय के तौर पर होती है. ज्यादातर कॉलेज में साढ़े पांच वर्षीय बैचलर ऑफ नेचुरोपेथी एंड योगिक साइंस कोर्स में क्रोमोथेरेपी को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है. कोलकाता स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिंस (आइएएमके) और इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिंस एंड रिसर्च (आइएएमआर) में कलरथेरेपी में डिप्लोमा और बैचलर कोर्स उपलब्ध हैं. इसके अलावा कुछ अन्य संगठन भी हैं :

– महेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन, जयपुर.

– एक्यूप्रेशर रिसर्च, ट्रेनिंग एंड ट्रीटमेंट इंस्टीट्यूट, जोधपुर.

– ओपेन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी फॉर अल्टरनेटिव मेडिसिन, कोलकाता.

न्यूनतम योग्यता और कोर्स की अवधि

इस कोर्स के लिए न्यूनतम योग्यता 12वीं उत्तीर्ण है. डिप्लोमा कोर्स की अवधि छह माह से एक वर्ष तक है, जबकि बैचलर कोर्स की दो साल है. कुछ प्रमुख कोर्स इस प्रकार हैं.

– बैचलर ऑफ क्रोमोथेरेपी.

– बैचलर ऑफ जेम-टेली-क्रोमोथेरेपी (बीजीटीसीटी)

– सर्टिफिकेट इन क्रोमोथेरेपी

– डिप्लोमा इन कलरथेरेपी

– डिप्लोमा इन जेम-टेली क्रोमोथेरेपी

किस तरह की कुशलता की जरूरत

– पूरक मेडिसिन में वास्तविक रुचि.

– रंगों के प्रति लगाव.

– प्रत्येक रंग के प्रभाव के बारे में जागरूकता.

– रंगों के संभावित शोध के प्रति दिलचस्पी होना.

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