28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अत्याधुनिक तकनीक : दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है वर्चुअल रियलिटी का क्रेज

आधुनिक सूचना तकनीक की अनोखी दुनिया में वर्चुअल रियलिटी एक नया आयाम गढ़ने जा रही है, जो चीजों को देखने के तरीके को बदल देगी. हालांकि, वर्चुअल रियलिटी तकनीक की शुरुआत कई साल पहले हो चुकी है, लेकिन इस वर्ष कई कंपनियां इस तकनीक से जुड़े नये प्रोडक्ट लॉन्च कर रही हैं, जिस कारण लोगों […]

आधुनिक सूचना तकनीक की अनोखी दुनिया में वर्चुअल रियलिटी एक नया आयाम गढ़ने जा रही है, जो चीजों को देखने के तरीके को बदल देगी. हालांकि, वर्चुअल रियलिटी तकनीक की शुरुआत कई साल पहले हो चुकी है, लेकिन इस वर्ष कई कंपनियां इस तकनीक से जुड़े नये प्रोडक्ट लॉन्च कर रही हैं, जिस कारण लोगों में इसके प्रति उत्सुकता लगातार बढ़ रही है. क्या है वर्चुअल रियलिटी और यह किस तरह बदल रही है चीजों को देखने का तरीका आदि समेत इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है यह आलेख …
क्रिकेट मैच के दौरान किसी खिलाड़ी के रन आउट होने या कैच लपकने जैसे संदेहास्पद हालात में उसे आउट या नॉट-आउट करार देने से पहले नजदीकी मामलों में टीवी अंपायर उस क्षण के चंद सेकेंड के वीडियाे को कई बार देखते हैं. उस समय आपकी दिलचस्पी उस वीडियो को प्रत्येक एंगल से देखने में होती है. शायद आपने यह भी कल्पना की हो कि यदि इसकी 3डी वीडियो बनती, तो इसे और बेहतर तरीके से देखा जा सकता था.
आपकी यह कल्पना अब हकीकत बन सकती है. ऐसी तकनीक आ चुकी है, जिसके जरिये भविष्य में आप इस तरह की घटनाओं को वर्चुअल रियलिटी हेडसेट के जरिये 360 डिग्री तक देख पायेंगे. इसके जरिये आप जब घर में बैठ कर क्रिकेट मैच देखेंगे, तो आपको स्टेडियम में बैठे होने का एहसास होगा. इसी तरह फिल्म देखते समय स्क्रीन पर तसवीरें चलती-बोलती नजर आती हैं. घरों में आप टीवी में इसे महसूस करते हैं.
लेकिन वर्चुअल रियलिटी में हेडसेट लगा कर मोबाइल पर या किसी स्टूडियो में आप ऐसा महसूस करेंगे कि आप जो तसवीरें देख रहे हैं, उन्हीं के आसपास हैं. कई कंपनियां वर्चुअल रियलिटी के लिए फिल्में, टीवी शो या गेम बना रही हैं. इनका एहसास आप खास स्टूडियो में वीआर हेडसेट के जरिये कर सकते हैं.
क्या है वर्चुअल रियलिटी?
वर्चुअल रियलिटी वाकई में कंप्यूटर द्वारा सृजित एक तकनीक है, जिसमें आप संबंधित डिस्प्ले के माध्यम से 3डी दुनिया के साथ एकाकार हो सकते हैं. यह डिस्प्ले स्टीरियोसाउंड के जरिये एक स्टीरियोस्कॉपिक 3डी इफेक्ट का सृजन करता है, जिससे कंप्यूटर द्वारा गढ़े गये 3डी प्रारूप में दिखनेवाली वर्चुअल दुनिया के भरोसेमंद अनुभव का एहसास होता है. वर्चुअल रियलिटी यानी वीआर की एक बड़ी खासियत है कि यह आपको मानसिक और शारीरिक रूप से उस जगह पर होने का एहसास करायेगा, जहां के दृश्य आप उसमें देख रहे हैं. यानी आपको एक अनोखे किस्म की मायावी दुनिया में खो जाने का एहसास होगा.
परदे पर भूकंप का एहसास
कई बार सिनेमा हॉल में परदे पर दिखाये जा रहे भूकंप के विनाशक दृश्यों के बीच आप घबरा जाते हैं, लेकिन सिर हिलाते ही यानी बगल में बैठे व्यक्ति पर नजर पड़ते ही सहज हो जाते हैं. फिल्में और किताबें आपको एक अलग तरह के काल्पनिकता की दुनिया में ले जाती हैं, लेकिन यह वह दुनिया नहीं होती, जिसमें आप अपने एक्शन से बदलाव ला सकें.
मंगल पर भ्रमण
वर्चुअल रियलिटी अनेक तरह की है. इसमें सबसे अनोखा है पूर्णतया-इमर्सिव यानी 3डी कंप्यूटर को विस्तार देकर गढ़ी गयी ऐसे दुनिया के साथ आपका इंटरेक्शन, जिसमें आपको उन जगहों पर होने का एहसास होगा, जहां आप वास्तविक तौर पर नहीं हैं. जैसे- आप यह महसूस कर सकते हैं कि आप मंगल ग्रह पर भ्रमण कर रहे हैं या किसी पहाड़ पर ड्राइविंग कर रहे हैं.
लंबे समय से हो रहा इस्तेमाल
विज्ञान की कई विधाओं से लेकर मेडिसिन तक इस तकनीक का इस्तेमाल लंबे समय से हो रहा है. पायलटों को ट्रेनिंग देने के अलावा ऊंची इमारतों के निर्माण में ईंटों को जोड़ने के लिए समुचित स्थान तक पहुंचने में आर्किटेक्ट इस तकनीक का इस्तेमाल करते रहे हैं.
नये युग का डॉन
डिजिटल दुनिया में उभर रहे वर्चुअल रियलिटी को नये दौर का डॉन भी कहा जा सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे एक नये तरह की तकनीकी क्रांति शुरू हो सकती है. माना जा रहा है कि यह तकनीक न केवल अनेक उद्योगों को बदल देगी, बल्कि वे मुख्यधारा के बाजार का हिस्सा भी बनेंगे. तीन सेक्टर- रीयल इस्टेट, ट्रैवल और गेमिंग- में इस क्रांति का व्यापक असर होगा.
– रीयल इस्टेट : मकान खरीदार या विक्रेता को किसी भी रीयल इस्टेट को पसंद करने के लिए उसे देखने जाना हाेता है, लेकिन इस तकनीक के माध्यम से रीयल इस्टेट से जुड़े सभी साझेदार संबंधित चीजों को कहीं से भी समग्रता से देख और समझ पायेंगे. यह लोगों को फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के दौर से आगे ले जायेगा और एक नया अनुभव देगा.
– ट्रैवल : कहीं घूमने के लिए जानेवाले लोग वास्तविक में यह नहीं जानते कि उन्हें उस जगह पर कहां-कहां जाना है. इसके लिए उन्हें विश्वसनीय स्रोतों से दी गयी जानकारियों पर भरोसा करना होता है, लेकिन कई बार वे जानकारियां उनके शौक के मुताबिक नहीं होती हैं, लिहाजा वे अपने शौक को सही से पूरा नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वीआर उनके लिए मददगार साबित हो सकता है. इससे वे वास्तविक रूप में उस इलाके को देखने और जानने के बाद खुद यह निर्धारित करते हैं कि उन्हें कहां-कहां जाना है और क्या-क्या देखना है.
– गेमिंग : हालांकि, गेमिंग पुरानी चीज हो चुकी है, लेकिन ज्यादातर लोग अब ऐसे गेम पसंद करते हैं, जिससे उन्हें उसमें वास्तविक रूप से मशगूल होने का एहसास हो. खबरों के मुताबिक, अगले माह प्लेस्टेशंस का पीएस4 वीआर लॉन्च हो सकता है, जो बाजार में गेमिंग को नये तरीके से बदल सकता है.
वीआर का तेजी से बढ़ता कारोबार
इसका बाजार दिन-ब-दिन बढ़ रहा है. ‘गोल्डमैन सैच्स’ की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक वर्चुअल रियलिटी और ऑगमेंटेड रियलिटी का कारोबार 80 बिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा. इन दोनों में फर्क यह है कि वर्चुअल रियलिटी जहां यूजर्स को वास्तविक दुनिया को स्पेशल ग्लास के जरिये सीमित रूप से दिखाता है, वहीं ऑगमेंटेड रियलिटी एक तरह से वास्तविक जीवन और वीआर का मिश्रण है. ऑप्टिकल संबंधी जर्मनी की एक बड़ी कंपनी के सीनियर प्रोडक्ट मैनेजर का कहना है कि लोगों को धीरे-धीरे वीआर के बारे में समझ विकसित हो रही है और यही कारण है कि अब इसका कारोबार बढ़ता दिख रहा है. मौजूदा समय में अनेक कंपनियां इससे जुड़े प्रोडक्ट बनाने में जुटी हैं, लिहाजा वर्ष 2017 और 2018 में इसका बाजार बेहद तेजी से बढ़ेगा.
बदल सकती है स्क्रीन की दुनिया
आनेवाले पांच से आठ सालों में अापके टीवी देखने का तरीका भी बदल सकता है. चीन के टीवी निर्माता टीसीएल के प्रोडक्ट डेवलपमेंट डायरेक्टर मर्क मेसीजेव्स्की के हवाले से टेक फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यह तकनीक आपके टीवी को भी बदल देगा. इस तकनीक के जरिये भविष्य में आप यह आसानी से समझ नहीं पायेंगे कि आपके घर में दीवार पर लगी टीवी की है या फिर कोई वास्तविक दुनिया.
लोगों में कायम है दिलचस्पी
मौजूदा दौर में वर्चुअल रियलिटी तकनीक फिर से उत्सुकता और चर्चा के केंद्र में है. पिछले वर्षों में विकसित किये गये ज्यादातर डिवाइस कुछ महीनों से ज्यादा चर्चा में नहीं रहे, लेकिन वीआर की खूब चर्चा हो रही है और नये-नये प्रारूप में कई कंपनियां इसे लॉन्च करने की तैयारी में जुटी हैं. यानी बाजार में इसका हाइप बरकरार है. आज बाजार में इसके कई विकल्प मौजूद हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
– सोनी प्लेस्टेशन वीआर
– ओकुलस रिफ्ट
– एचटीसी वाइव
– गूगल कार्डबोर्ड
– सैमसंग गीयर वीआर
गूगल का कैमरा रिग
गूगल का एक वीआर प्रोजेक्ट है- 360 कैमरा रिग. इसमें 16 कैमरों की मदद से वीडियो बनाया जाता है. फिर इसमें ग्राफिक्स आदि डाल कर वीआर तकनीक से देखने के लिए तैयार किया जाता है. इसके लिए एक स्मार्टफोन और एक वीआर हेडसेट की जरूरत होती है. इसमें आप खुद से ही तसवीरों का एंगल बदल सकते हैं और उन्हें ऊपर या नीचे कर सकते हैं.
प्रस्तुित – कन्हैया झा
वीआर कार्डबोर्ड एप्स
वीआर कार्डबोर्ड एप्स के माध्यम से स्मार्टफोन पर इसका लुत्फ उठाया जा सकता है. इसे खास तौर पर गूगल कार्डबोर्ड के लिए डिजाइन किया गया है. इसके लिए गूगल कार्डबोर्ड डाउनलोड करना होता है.
सर्वे रिपोर्ट
हाइ टेक मैन्यूफैक्चरिंग का केंद्र बनेगा भारत
उ त्पादन संबंधी गतिविधियों में कम वित्तीय मदद मिलने के कारण इस वर्ष मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि की रफ्तार दुनियाभर में बेहद धीमी है. लेकिन, इस बीच एक हालिया रिपोर्ट में भारत के लिए कुछ अच्छी उम्मीद जतायी गयी है. यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन द्वारा हाल में जारी वर्ल्ड मैन्यूफैक्चरिंग प्रोडक्शन रिपोर्ट (त्रैमासिक) में कहा गया है कि भारत आनेवाले समय में हाइ-टेक मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का केंद्र बिंदु बन सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट में महज 2.8 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है. हालांकि, 2016 की दूसरी तिमाही में एशियाई देशों में ग्रोथ परफॉरमेंस 6.5 फीसदी रही थी, जो दुनिया में सबसे ज्यादा रही. इस दौरान भारत का मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट इससे ठीक पिछली तिमाही के मुकाबले कुछ कम जरूर रहा, लेकिन भारत में इस क्षेत्र में मिला-जुला नतीजा रहा और एक बड़ी उम्मीद उभर कर सामने आयी कि भारत हाइ-टेक मैन्यूफैक्चरिंग की दुनिया का बादशाह बनने की क्षमता रखता है.
भारत में हाइ- टेक मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री में असीम संभावनाएं
देश में हाइ- टेक मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री में पिछले एक-डेढ़ दशक में ज्यादा बदलाव नहीं आया है. ‘द डॉलर्स बिजनेस डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट में इसका बड़ा कारण भारत में लुंज-पुंज नीतियों और प्रोत्साहन की कमी बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नयी विदेश व्यापार नीति का हिस्सा बनते हुए भारत में कम-से-कम पांच क्षेत्रों में हाइ-टेक वस्तुओं के उत्पादन और उसके निर्यात की क्षमता इस प्रकार हैं :
– एयरक्राफ्ट कंपोनेंट : भारत ने सबसे कम लागत में मंगल तक अपना यान भेजने में कामयाबी पायी है, जो हाइ टेक सेक्टर के लिए बड़ी उपलब्धि है. भारत कम लागत में स्पेस टेक्नोलॉजी से संबंधित चीजों का निर्माण करने में सक्षम रहा है. यहां एयरोस्पेस इंडस्ट्री में बड़ी संभावनाएं हैं.
– फार्मास्यूटिकल्स : भारत में यह उद्योग लंबे अरसे से जेनेरिक्स संबंधी अवसरों को देश-विदेश में भुना रहा है, लेकिन टेक्नोलॉजी पर फोकस करके में धाक जमायी जा सकती है.
– इलेक्ट्रॉनिक्स : भारत से निर्यात होनेवाली हाइ-टेक वस्तुओं में इलेक्ट्रॉनिक सामानों का योगदान बढ़ता जा रहा है. मांग-आधारित ग्रोथ के बजाय डिजाइन-आधारित ग्रोथ पर ध्यान देकर भारत इस क्षेत्र का अगुआ बनने की क्षमता रखता है.
– टेलीकॉम इक्विपमेंट : भारत में बहुत कम ही रेडियो फ्रिक्वेंसी एंड वायरलेस रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर हैं, जो मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं
हाइ-टेक प्रोडक्ट का निर्यात करनेवाले टॉप 10 देश
देश हिस्सेदारी
अमेरिका 17.6
यूएइ 4.8
यूके 4.2
नीदरलैंड 4.1
रूस 4.0
जर्मनी 3.7
सिंगापुर 3.6
नाइजीरिया 3.0
फ्रांस 2.4
दक्षिण अफ्रीका 2.4
नोट : हिस्सेदारी फीसदी में.
(स्रोत : एक्सपोर्ट- इंपोर्ट बैंक ऑफ इंडिया, 2014 की रिपोर्ट)
फ्यूचर प्रोडक्ट
20 मिनट में पानी साफ करेगा यह डिवाइस
वैज्ञानिकों ने पोस्टल स्टाम्प जितने छोटे आकार का एक ऐसा डिवाइस विकसित किया है, जो केवल 20 मिनट में पानी में मौजूद 99.99 फीसदी हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करेगा. हालांकि, एक अन्य सिस्टम के तहत पानी को प्राकृतिक रूप से सूर्य की किरणों के जरिये साफ किया जा सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया में कम-से-कम 48 घंटों का समय लगता है, जिस दौरान अल्ट्रावायलेट किरणें जर्म्स को खत्म करती हैं.
लेकिन, यह नया डिवाइस सूर्य की किरणों को हासिल करने के लिए व्यापक दायरे का इस्तेमाल करता है, लिहाजा इसकी क्षमता बहुत अधिक है. इस डिवाइस के प्रमुख शोधकर्ता व स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के चोंग लुइ ने ‘साइंस रिपोर्ट’ के हवाले से कहा है कि देखने में यह एक छोटे आयताकार काले शीशे के टुकड़े की तरह है.
इसे पानी में डाल कर सूर्य की किरणों के सामने रखना होता है और शेष काम यह खुद करता है. इस डिवाइस पर लगायी गयी मोलीब्डेनम डाइसल्फाइड की कोटिंग में विजिबल सनलाइट से इलेक्ट्रॉन्स आकर्षित होते हैं, जिससे पानी में रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं, नतीजन हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें