।। दक्षा वैदकर।।
मेरे एक सहकर्मी हैं, जो फैमिली को दूसरे शहर में रख कर पटना में जॉब कर रहे हैं. उनकी छोटी-सी बच्ची है, जो बार-बार पूछती है कि पापा आप कब आओगे. पिछले महीने जब उन्होंने ट्रेन का टिकट करवा लिया था, अचानक कोई काम आ जाने की वजह से उन्हें छुट्टी कैंसिल करनी पड़ी थी. तभी से वे छुट्टी मिलने का इंतजार कर रहे थे. शनिवार शाम जब उन्होंने मुझसे डरते-डरते पूछा कि ‘क्या अब मैं छुट्टी ले सकता हूं? सिर्फ चार दिन की छुट्टी में मेरा काम हो जायेगा.’ मैंने उन्हें कहा कि चार नहीं, आप हफ्तेभर की छुट्टी लें और परिवार से मिल आयें. कुछ ही दिनों बाद वैलेंटाइन डे है, बेहतर होगा कि आप अपनी वाइफ के लिए एक गुलाब, चॉकलेट और कोई छोटा-सा गिफ्ट ले जायें. सबसे बड़ी बात कि अभी उन्हें बिल्कुल मत बताइये कि आपकी छुट्टी मंजूर हो गयी है. उन्हें सीधे घर की डोर बेल बजा कर सरप्राइज देना. उन्हें बहुत अच्छा लगेगा.
मेरी यह बात सुन कर सहकर्मी बहुत भावुक हो गये. उन्होंने कहा, ‘आपको किस तरह थैंक्यू कहूं, मुङो समझ नहीं आ रहा.’ मैंने जवाब दिया, ‘थैंक्यू मत बोलिये, बस जब भी आपको मौका मिले, आप तीन लोगों की मदद कर देना और उनको कहना कि वे भी तीन लोगों की मदद करें.’ सहकर्मी ने पूछा, ‘ये कहां से सीखा आपने?’ मैंने बताया कि पिछले दिनों मैंने सलमान खान की ‘जय हो’ फिल्म देखी. फिल्म भले ही बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा कामयाब नहीं रही हो, लेकिन उसकी थीम लाजवाब है. हालांकि, फिल्म देख कर मुङो भी लगा था कि ये सिर्फ फिल्मों में होता है, लेकिन आज आपकी मदद कर के ऐसा लगा कि नहीं, फिल्म की चीजें रियल लाइफ में भी ट्राइ की जा सकती हैं. सच में दूसरों की मदद कर के बहुत आनंद मिलता है.
आप सभी सोचेंगे कि मैं यहां फिल्म का प्रोमोशन कर रही हूं या खुद की तारीफ कर रही हूं, लेकिन ऐसा नहीं है. इस किस्से को बताने का केवल यही मकसद है कि आप भी किसी की मदद कर के देखें. सामनेवाले को खुश देख कर आपको जो आनंद मिलेगा, उसकी तुलना रुपयों से नहीं की जा सकती.
बात पते की..
जब भी मौका मिले, किसी की मदद करें. ये न सोचें कि हमें बदले में क्या मिलेगा? या सामनेवाला हमारा कौन लगता है? बस मदद कर दें.
किसी को रास्ता पार करवाना हो या किसी बच्चे की फीस भरनी हो. हर तरह की मदद खुद आगे बढ़ कर करें. ये हेल्प चेन बीच में टूटने न दें.