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नॉन-लीथल वीपन : भीड़ पर नियंत्रण के कारगर हथियार!

उग्र भीड़ पर नियंत्रण और अपराधियों को जिंदा पकड़ने के मकसद से ऐसे हथियार दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहे हैं, जिनसे जान जाने का जोखिम कम से कम हो. अभी कश्मीर में रबर की गोली चलानेवाली पैलेट गन के स्थान पर मिर्ची बम के प्रयोग की तैयारी सुर्खियां बन रही हैं. इसी बीच उत्तर प्रदेश […]

उग्र भीड़ पर नियंत्रण और अपराधियों को जिंदा पकड़ने के मकसद से ऐसे हथियार दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहे हैं, जिनसे जान जाने का जोखिम कम से कम हो. अभी कश्मीर में रबर की गोली चलानेवाली पैलेट गन के स्थान पर मिर्ची बम के प्रयोग की तैयारी सुर्खियां बन रही हैं. इसी बीच उत्तर प्रदेश से खबर आयी है कि राज्य सरकार अपने एटीएस कमांडो के लिए सुई के साथ करंट छोड़नेवाली टेजर गन खरीदने की तैयारी कर रही है.

इस गन का प्रेजेंटेशन देखने के बाद यूपी के डीजीपी जावीद अहमद ने रविवार को इसका ट्रायल खुद के ऊपर ही कराने की पेशकश की. इस गन से चली करंटवाली सुई लगते ही डीजीपी कुछ क्षण के लिए खुद पर नियंत्रण खो बैठे और संभलने पर कहा कि ‘तारे नजर आ गये’. आज भारत सहित कई देशों में सरकारें कम-घातक हथियारों के बेहतर विकल्पों के इस्तेमाल पर जोर दे रही हैं. इसी कड़ी में जानते हैं कुछ ऐसे हथियारों के बारे में, जिनसे जान लेनेवाली गोली की जगह कुछ ऐसी चीजें निकलती हैं, जो किसी अपराधी या भीड़ पर काबू पाने में मददगार साबित हो रही हैं.

टेजर गन

– यह पिस्टल की तरह एक गन है. इससे पतली पिन की तरह के इलेक्ट्रॉड्स (इसे करंटवाली सुई भी कह सकते हैं) का फायर किया जाता है, जो कम घातक होती है.

– यह पांच मीटर तक ज्यादा असरदार होती है, लेकिन इसकी रेंज करीब 50 मीटर तक है.

– शरीर पर लगने के बाद इससे बिजली का झटका लगने की तरह महसूस होता है, जिससे इनसान करीब दो मिनट के लिए बेहोश हो जाता है. फिर सामान्य हो जाता है.

– शरीर पर करीब दो इंच मोटे कपड़े के भीतर तक यह घुसने में सक्षम पाया गया है.

– कई देशों में महिलाएं सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं.

– एक बार ट्रिगर दबाने से एक फायर होता है और तुरंत बिजली का झटका लगता है और कुछ देर के लिए मांसपेशियां सुन्न हो जाती हैं.

– इसका कोई खास साइड इफेक्ट नहीं पाया गया है. शरीर के जिस हिस्से में यह लगती है, वहां कोई नुकसान नहीं होता है.

पैलेट गन

पैलेट गन का इस्तेमाल कई देशों में भीड़ को काबू में करने के लिए किया जाता है. इसका असर 500 गज तक होता है. हालांकि ज्यादा नजदीक से लगने पर यह खतरनाक साबित होता है और आंखों में लगने पर रोशनी तक जा सकती है. इस गन की खासियतें

– पैलेट में लेड, रबर और प्लास्टिक आदि भरे होते हैं, जिस कारण यह शरीर में जहां घुसता है, वहां के उतकों को पूरी तरह खत्म कर देता है. घायल व्यक्ति को सामान्य होने में कई दिन लग जाते हैं.

– यह कारट्रिज आधारित गन है, जिसके एक कारट्रिज में करीब 100 पैलेट होते हैं. ज्यादातर ये बॉल-बेयरिंग्स की तरह होते हैं. फायर करते ही कारट्रिज करीब 100 मीटर की दूरी तक सभी पैलेट की बौछार करता है.

– फौजी भाषा में इसे पंप एक्शन गन कहा जाता है. सुरक्षाकर्मियों की कोशिश होती है कि इसे कमर से नीचे फायर किया जाये, ताकि पीड़ित को कम-से-कम नुकसान पहुंचे. हालांकि, कश्मीर में हाल के दिनों में इसके इस्तेमाल से लोगों को ज्यादा पीड़ा झेलनी पड़ी है.

टीयर गैस

टीयर गैस शब्द आम तौर पर सीएस गैस यानी लेक्रीमेटरी एजेंट्स के तौर पर गैर-घातक हथियारों को कहा जाता है. इसमें मिर्च स्प्रे, सीआर गैस, फेनेसिल क्लोराइड गैस, नोनीवेमिड, ब्रोमोएसिटोन, जाइलिल ब्रोमाइड आदि केमिकल मिश्रित गैसों को शामिल किया जाता है, जिसका त्वचा पर गंभीर असर होने के साथ दर्द, वोमिटिंग और यहां तक कि आंखों में ज्यादा असर होने पर दृष्टिहिनता भी हो सकती है. आम तौर पर इसका इस्तेमाल दंगाइयों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. हालांकि, इसके दुष्प्रभावों के कारण अनेक देशों में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है.

पावा शेल या िमर्ची बम

पावा का पूरा नाम पेलागॉर्निक एसिड वेनीलिल एमाइड है. यह एक ऑर्गेनिक कम्पाउंड है, जो प्राकृतिक रूप से लाल मिर्च में पाया जाता है. मिर्च से बनी ‘पावा’ शेल्स को पैलेट गन के मुकाबले कम घातक माना गया है और जिसे यह लगता है उसे अस्थायी रूप से अक्षम बनाता है. इसकी खासियतें और जोखिम इस प्रकार हैं :

– मिर्च की क्षमता को मापनेवाले स्कोविले स्केल पर पावा को ‘अत्यधिक से ऊपर’ की श्रेणी में रखा गया है.

– इसे दागने के बाद गोला फटता है और लगनेवालों को कुछ देर के लिए सुन्न, जड़ और लकवाग्रस्त कर देता है.

– प्रभावित व्यक्ति को कई बार यह अस्थायी रूप से लकवाग्रस्त भी कर सकता है.

– आंसू गैस और पेपर-स्प्रे के मुकाबले इसका असर तेजी से कम होता है.

– पिछले करीब एक साल के दौरान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च, लखनऊ में किया गया है इन शेल्स को विकसित.

– देश के पूर्वोत्तर हिस्सों में पायी जानेवाली दुनिया की सबसे तीखी मिर्ची भूत-झोलोकिया के इस्तेमाल से इस हथियार को किया गया है विकसित, जिसमें कुछ केमिकल भी मिलाये गये हैं.

मोबाइल यूजर को सबसे ज्यादा भाते हैं न्यूज एंड इन्फॉर्मेशन एप्प

स्मार्टफोन टेक्नोलॉजी

मोबाइल एप्प आज हर आयु वर्ग के बीच लोकप्रिय है. लेकिन इसे इंस्टॉल या अनइंस्टाल करने को लेकर लोगों की सोच अलग-अलग है. एप्प को लेकर यूजर्स के व्यवहार पर याहू एडवर्टाइजिंग द्वारा किये गये एक अध्ययन से यह बात सामने आयी है कि वैसे स्मार्टफोन यूजर्स, जिन्होंने डेस्कटॉप के बदले मोबाइल डिवाइस को प्राथमिकता दी है, में से 50 प्रतिशत यूजर्स हर महीने, जबकि 34 प्रतिशत यूजर्स हर हफ्ते अपने एप्प बदल देते हैं.

वहीं 36 प्रतिशत सामान्य स्मार्टफोन यूजर्स अपने पुराने एप्प को नये एप्प से बदल देते हैं, जबकि 73 प्रतिशत यूजर्स स्टोरेज कम होने के चलते अपने एप्प डिलीट करते हैं. यह दिलचस्प है कि किसी भी एप्प को अनइंस्टॉल करने से कुछ समय पहले ही यूजर्स उसका प्रयोग बंद कर देते हैं. कॉन्टेंट एप्प का प्रयोग तो अनइंस्टॉल होने से 11 सप्ताह पहले, जबकि सोशल नेटर्किंग व मैसेजिंग जैसे कनेक्शन एप्प डिलीट होने के 13 सप्ताह पहले से ही बिना इस्तेमाल किये पड़े रहते हैं.

किस सेक्टर के एप्प सबसे पसंदीदा

यूएस स्थित विश्व के सबसे बड़े मोबाइल एडवर्टाइजिंग प्लेटफॉर्म, ओपेरा मीडियावर्क्स के मुताबिक, न्यूज व इन्फॉर्मेशन श्रेणी के एप्प को यूजर्स सबसे ज्यादा (लगभग 28 प्रतिशत) पसंद करते हैं. इसके बाद नंबर आता है गेम्स से जुड़े एप्प का. इसे लगभग 24 प्रतिशत यूजर्स पसंद करते हैं. तीसरे नंबर पर आनेवाले सोशल नेटवर्किंग एप्प काे लगभग 13 प्रतिशत यूजर्स पसंद करते हैं. कम्युनिकेशन सर्विसेज को लगभग 12 प्रतिशत तो स्पोर्ट्स से जुड़े एप्प को लगभग नौ प्रतिशत लोग पसंद करते हैं. ये दोनों चौथे और पांचवे नंबर पर आते हैं.

छठे नंबर पर आर्ट्स व एंटरटेनमेंट एप्प है. वहीं सातवें नंबर पर म्युजिक, वीडियोज व मीडिया एप्प आते हैं. टेलीविजन एंड कंप्यूटिंग के एप्प आठवें तो हेल्थ व फिटनेस एप्प नौवें नंबर पर हैं. 10वें नंबर पर लाइफस्टाइल एप्प है. इस प्रकार ये 10 एप्प पूरे विश्व में सबसे ज्यादा पसंद किये जाते हैं. इसके बाद शॉपिंग, ट्रैवल, प्रोडक्टिविटी, एजुकेशन, बिजनेस, फाइनेंस व इन्वेस्टमेंट, फूड व ड्रिंक एप्प भी यूजर्स द्वारा पसंद किये जाते हैं.

किस एप्प को सबसे ज्यादा समय देते हैं यूजर

वेब पोर्टल डेवलपमेंट कंपनी, गो-ग्लोब द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, गेम्स से जुड़े एप्प पर यूजर्स सबसे ज्यादा समय खर्च करते हैं. उसके बाद क्रमश: सोशल नेटवर्किंग एप्प फेसबुक, एंटरटेनमेंट, यूटिलिटीज, न्यूज, प्रोडक्टिविटी, हेल्थ व फिटनेस, लाइफस्टाइल आदि से जुड़े एप्प पर यूजर समय खर्च करते हैं.

उम्र के हिसाब से एप्प का यूज

उपयोग करने एप्प की प्रतिमहीना खर्च

वाले की उम्र संख्या किया गया समय

18-24 वर्ष 28 37.06 घंटे

25-34 वर्ष 29.5 35.40 घंटे

35-44 वर्ष 29.3 33.57 घंटे

45-54 वर्ष 25.8 25.26 घंटे

55+ वर्ष 22.0 21.21 घंटे

स्रोत : गो-ग्लोब

जानें, किस देश में कौन सा एप्प लोकप्रिय

यूएस में जहां फेसबुक सबसे ज्यादा लोकप्रिय मोबाइल एप्प हैं, वहीं भारत व एशिया के अन्य देश सहित रूस, मेक्सिको, ब्राजील व दक्षिणी अमेरिकी देश, यूरोप के कई देश आदि में मैसेजिंग एप्प व्हाट्सएप्प सर्वाधिक लोकप्रिय है. नॉर्डिक देशाें (नॉर्वे, फिनलैंड, आइसलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, ग्रीनलैंड, फराओलैंड आदि) में सबसे ज्यादा लोकप्रिय एप्प फेसबुक है. पूर्वी यूरोपीय देशों, जैसे बेलारूस, मालडोवा, यूक्रेन आदि, में मैसेजिंग एप्प वाइबर सबसे ज्यादा लोकप्रिय मोबाइल एप्प है. प्रस्तुति – आरती श्रीवास्तव

सेंट-आधारित हथियार

इस्राइली सैन्य बलों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए वर्ष 2008 में मेलोडोरेंट नामक एक केमिकल कंपाउंड को विकसित किया. यह कुछ हद तक वाटर कैनन यानी पानी की तेज बौछारें मारनेवाली फायर ब्रिगेड सदृश गाड़ी की तरह होती है, जिसमें मेलोडोरेंट मिला दिया जाता है. इससे सीवेज से निकलनेवाली भयानक दुर्गंध की तरह गैस निकलती है और लोगों को वहां सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है और वे वहां से भाग जाते हैं.

स्लीप गैस

वर्ष 2002 में रूस में मास्को थिएटर में कुछ आतंकियों ने दर्शकों को बंधक बना लिया था, जिन्हें छुड़ाने के लिए सुरक्षाबलों ने इस गैस का इस्तेमाल किया था.

समझा जाता है कि यह ‘3- मिथाइलफेंटेनाइल गैस’ थी, जिससे सभी को बेहोश करने की कोशिश की गयी. हालांकि, कुछ आतंकियों ने गैस मास्क पहन रखे थे, लिहाजा उन पर इसका असर

नहीं हुआ.

पेन रे

एक्टिव डेनियल सिस्टम को आम तौर पर पेन लेजर कहा जाता है, लेकिन वाकई में इसमें लक्षित त्वचा के भीतर गर्म पानी से पीड़ा पहुंचाने के लिए मिलिमीटर वेव्स का इस्तेमाल किया जाता है. इससे त्वचा के भीतर जलन महसूस होती है. इस पेन रे के सामने चंद सेकेंड से ज्यादा देर तक कोई इंसान टिक नहीं सकता. बताया जाता है कि इसे चीन ने विकसित किया है.

स्पोंज ग्रेनेड्स

40 एमएम राउंड स्पोंज वाकई में कोई घातक ग्रेनेड नहीं है. यह सघन स्पोंजों का एक समूह है, जिसे लक्षित किये गये स्थान से करीब 75 मीटर दूरी से ग्रेनेड के जरिये फायर किया जाता है. स्पोंज लगनेवाले व्यक्ति को इससे जोर का आघात पहुंचता है, लेकिन किसी तरह का स्थायी नुकसान नहीं होता है.

रबर बॉल हैंड ग्रेनेड

इसे सामान्य ग्रेनेड के इस्तेमाल से या हाथ से जोर से फेंका जाता है. इसमें छोटी-छोटी करीब 100 रबर की गोलियां होती हैं, जो इनसान के शरीर को कुछ देर के लिए निष्क्रिय कर देती हैं. हालांकि, इससे भी किसी की जान को खतरा नहीं होता, लेकिन कई बार इसके फटने की आवाज से इंसान को भविष्य में कम सुनाई देने का जोखिम कायम रहता है.

पीएचएएसआर

यह एक सामान्य राइफल के आकार का हथियार है, जो पूरी तरह से स्व-नियंत्रित है. इसमें से लेजर वेवलेंथ निकलती है और टारगेट किये गये व्यक्ति की आंखों को निशाना बनाती है. इसकी चपेट में आनेवाले व्यक्ति को अस्थायी रूप से कुछ भी नहीं दिखाई देता है. सामान्य लेजर के घातक नतीजों को देखते हुए इसे विकसित किया गया था, ताकि इनसान की आंख पर इसका स्थायी असर न हो.

फ्यूचर प्रोडक्ट

सूती कपड़ों से ज्यादा ठंडक प्रदान करता है नैनोपोरस पॉलीइथिलीन

सूती कपड़े बेहद आरामदायक और ठंडक प्रदान करनेवाले होते हैं, लेकिन नैनोपोरस पॉलीइथिलीन सूती कपड़ों के मुकाबले कहीं ज्यादा ठंडक प्रदान कर सकते हैं. साइंस डेली में इस संबंध में एक पेपर प्रकाशित हुआ है, जिसके मुताबिक एक नये प्रकार के फैब्रिक को बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने आेपेक पॉलीइथिलीन का इस्तेमाल किया है.

आेपेक पॉलीइथिलीन अभी बैटरी में इस्तेमाल किया जाता है और इसकी खासियत यह होती है कि इससे इंफ्रारेड रेडिशन आर-पार हो जाती हैं. यह विशेषता कॉटन फैब्रिक में नहीं पायी जाती है. इस पेपर के मुख्य लेखक यी चुइ और उनके सहयोगियों ने आेपेक पॉलीइथिलीन की विशेषता को जानने के बाद उसे पोरस यानी छिद्रदार बनाया, ताकि पसीना इस फ्रब्रिक से बने कपड़ाें के पार जा सके.

अपने प्रयोगों द्वारा वैज्ञानिकों ने ओपेक पॉलीइथिलीन को तीन लेयर का बनाया, जिसमें से दो लेयर ट्रीटेड पॉलीइथिलीन का था, जिसमें कुछ मात्रा में कपास भी मिलाया गया था. वैज्ञानिकों ने पाया कि इस विकसित पॉलीइथिलीन के तापमान में मात्र 1.4 डिग्री फॉरेनहाइट ही वृद्धि होती है, जो कि सूती वस्त्रों की तुलना में कम है.

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