देश-दुनिया में रोजाना हजारों स्टार्टअप खुलते और बंद होते हैं, लेकिन पिछले कुछ महीनों में भारत के कुछ अच्छे और बड़े स्टार्टअप बंद हुए हैं. पिछले सप्ताह ही ‘आस्क मी ग्रुप’ 300 करोड़ की देनदारी के साथ बंद हो गया. उसके पहले ‘गो जवास’ नामक कूरियर कंपनी ने अपने तकरीबन सभी कर्मचारियों को निकाल दिया और वह बिकने के कगार पर है. आखिर 2014 और 2016 के बीच ऐसा क्या हुआ, जो अचानक बड़े और सफल स्टार्टअप बंद हो रहे हैं, बता रहे हैं स्टार्टअप, ई-काॅमर्स एवं फाइनेंशियल प्लानिंग के विशेषज्ञ दिव्येंदु शेखर ….
– बिजनेस मॉडल में खामी : शुरू में स्टार्टअप जब छोटा होता है, तो उसे मैनेज करना आसान और कम खर्चीला होता है. उस समय कम संसाधनों की जरूरत होती है. छोटी टीम के साथ काम करने में मार्केटिंग में भी कम खर्च होता है. फैलाव के साथ जरूरतें बढ़ती हैं. कई ऐसे शहरों में भी विस्तार होता है, जहां मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण खर्च बढ़ जाते हैं. उदाहरण के तौर पर ‘ग्रोफर्स’ ने इस साल नौ शहरों में अपनी सुविधाएं बंद कर दी. इन शहरों में सड़कों और बिजली की खराब हालत के कारण डिलीवरी का खर्च मुनाफे से बहुत ज्यादा था. ऐसी ही समस्या से जूझ रहे कुछ दूसरे स्टार्टअप ऐसा करने में असफल होते हैं, जिस कारण भारी नुकसान उठाते हैं और बंद हो जाते हैं. स्टार्टअप के प्रबंधकों को नये बाजार में हमेशा सावधानी से जाना चाहिए. शुरुआत वैसे मार्केट से करें, जहां आपकी जरूरत है. सिर्फ दिखावे के लिए नये मार्केट में न जाएं.
– अनुभव की कमी : ज्यादातर स्टार्टअप युवाओं द्वारा शुरू किये जाते हैं. नये विचारों के कारण उनके उत्पाद काफी आकर्षक होते हैं. व्यापार चलाने के लिए भी ज्यादातर स्टार्टअप युवाओं पर ही भरोसा करते हैं. लेकिन टीम में युवाओं के साथ अनुभवी लोगों की भी जरूरत होती है. अनुभवी कर्मचारी बाजार और उसके बदलावों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और अनुभवों के सहारे मुश्किल हालात का भी सामना कर सकते हैं. उनके संपर्क पुराने और गहरे होते हैं, जिस कारण आपके व्यापार के साथ ज्यादा लोग जुड़ते हैं और आप गलतियां करने से भी बचते हैं.
– लक्ष्य से भटकना : कई स्टार्टअप एक साथ काफी चीजों को करने की कोशिश करते हैं. उदाहरण के तौर पर ‘आस्क मी ग्रुप’ को ही लें. यह एक विज्ञापन कंपनी के रूप में शुरू हुआ था. 2013 तक इसका काम अच्छा और मुनाफेवाला था. लेकिन, 2013 में इसने ऑनलाइन शॉपिंग का काम भी शुरू कर दिया.
इससे प्रबंधकों का ध्यान बंटने लगा. 2014 में इसने किराने का काम भी शुरू कर दिया. प्रबंधक किसी व्यापार पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे थे और न ही ठीक से निवेश कर पा रहे थे. इसी बीच विज्ञापन व्यापार में घाटा बढ़ने लगा. एक साथ अनेक काम करने के बढ़ते दबाव के बीच कइयों ने नौकरी छोड़ दी. मार्केटिंग और अन्य खर्च भी बेतहाशा बढ़ गये और आखिरकार पैसे की कमी के कारण इसे बंद करना पड़ा. इसलिए पहले आप एक बिजनेस को अच्छे से चला कर बड़ा कर लें, ताकि उसके मुनाफे से दूसरे बिजनेस खड़े किये जा सकें, न कि पहले की पूंजी घटा कर दूसरे बिजनेस खड़े किये जायें.
– बेतहाशा नकल : जब कोई अच्छा बिजनेस बाजार में आता है, तो काफी लोग उसकी नकल करने की कोशिश करते हैं. ‘बिग बास्केट’ ने जब ऑनलाइन किराने का काम शुरू किया, तो लोकल बनिया, पेप्परटैप और न जाने कितने ऐसे स्टार्टअप खुल गये. लेकिन इनमें से कोई भी नये तरीके से कुछ नहीं कर रहा था. ये सभी बस नकल कर रहे थे. इस कारण इन्हें ग्राहक नहीं मिले. स्टार्टअप खड़ा करने के लिए नये आइडिया की जरूरत होती है. ग्राहक की एक ऐसी जरूरत का ध्यान रखना पड़ता है, जो कोई और पूरी नहीं कर पा रहा. आप इसी जरूरत के आधार पर ग्राहक का भरोसा जीत पायेंगे. दूसरों की नकल करके नये ग्राहक नहीं बना पायेंगे.
पिछले कुछ दिनों में बंद हुए स्टार्टअप
– आस्क मी : 2010 में ऑनलाइन विज्ञापन के कारोबार से शुरू करके यह एक ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट में तब्दील हुआ. अनेक शहरों में यह ऑनलाइन किराने का काम चला रहा था. निवेशकों से झगड़े के बाद इसके प्रबंधकों ने पिछले सप्ताह इसे बंद कर दिया.
– टाइनी आउल : 2014 में शुरू की गयी यह सेवा आसपास के रेस्टोरेंट से खाना आॅर्डर करने में मदद करती थी. 2015 में यह सेवा 20 से ज्यादा शहरों में फैल गयी. जरूरत से ज्यादा फैलाव और बेतहाशा खर्चों के कारण इसको अपने 60 फीसदी कर्मचारियों को निकालना पड़ा और 2016 में बंद करना पड़ा. आजकल यह एक नये नाम ‘रनर’ के साथ सिर्फ मुंबई और बेंगलुरु में चलती है.
– गो जवास : ऑनलाइन फैशन कंपनी ‘जबोंग’ ने 2012 में अपनी एक कूरियर कंपनी बनायी थी, जिसे इसने ‘गो जवास’ नाम दिया था. 2016 में इसके प्रबंधकों पर घोटाले का आरोप लगा, जिसके बाद इसको अपनी सेवाएं बंद करनी पड़ी.
– गोजूमो : 2014 में शुरू हुए ‘गोजूमो’ का मुख्य व्यापार सेकेंड हैंड कारों को ऑनलाइन बेचना था. 2015 में इसने निवेशकों से 50 करोड़ रुपये भी जुटाये. हालांकि, इसे किसी प्रकार की आर्थिक दिक्कत नहीं थी और इसके पास 40 करोड़ रुपये बचे हुए थे, लेकिन प्रबंधकों को यह लगने लगा कि भारतीय बाजार के अलग स्वरूप के कारण सेकेंड हैंड कारें ऑनलाइन बेचना खर्चीला और मुश्किल है. इसलिए इन्होंने बाकी रकम निवेशकों को लौटा कर इसे बंद कर दिया.
– फैबफर्निश : फैबफर्निश 2011 में शुरू हुई थी और ऑनलाइन फर्नीचर व घरेलू सजावट का सामान बेचती थी. 2013 तक इसने अच्छा काम किया, लेकिन आपसी झगड़े और बुरे प्रबंधन के कारण इसके प्रतिस्पर्धी काफी आगे निकल गये. बिग बाजार ने करीब शून्य कीमत में इस वर्ष इसे खरीद लिया.
कारोबार शुरू करने से पहले खुद से क्या पूछें?
– लिज डिकिंसन
मिओ ग्लोबल के फाउंडर व सीइओ
ज ब आप पहली बार स्टार्टअप शुरू करते हैं, तो इसकी कामयाबी सबसे ज्यादा इस बात पर निर्भर करती है कि लोग आपके आइडिया और आप पर भरोसा कितना जताते हैं. आपको अपने आइडिया और विजन यानी प्रोडक्ट को बेचना होता है. मेरा बैकग्राउंड बिजनेस डेवलपमेंट से जुड़ा था, लिहाजा कारोबारी रिश्ते बनाने की अपनी योग्यता पर भरोसा था. हालांकि, मैं उन चीजों का अंदाजा नहीं लगा पाया, जो आनेवाले समय में चुनौती बन कर उभर सकती है और मेरे स्टार्टअप काे नुकसान पहुंचा सकती है. मैं जानता था कि इसके लिए साहस की जरूरत है, लेकिन जितनी मैंने इसकी कल्पना की थी, उसके कहीं अधिक.
आरंभिक दिनों में चुनौतियों से निबटने और उससे आगे बढ़ने के बारे में नहीं सीखा. बुनियादी तौर पर ज्यादा फोकस यह सीखने में रहा कि खुद को कैसे मजबूत बनायें, जो आगे चल कर मेरी सबसे बड़ी पूंजी बन गयी. स्टार्टअप चलाते वक्त आप संभावित वित्तीय चुनौतियों को मान कर चलते हैं, लेकिन इसे कम करके आंका जाता है. स्टार्टअप चलाने के लिए बड़ी रकम की जरूरत होती है, खासकर प्रोडक्ट निर्माण के क्षेत्र में. यदि आप विश्वस्तरीय कंपनी बनाने की चाहत रखते हैं, तो पर्याप्त फंडिंग मिलना सबसे महत्वपूर्ण चीज है.
जब मैंने कंपनी का संचालन शुरू किया था, तो मेरा ज्यादातर समय फंड एकत्रित करने में जाया होता था. इससे मैंने यह सीखा कि इक्विटी कैपिटल जैसे साधनों से कैसे पूंजी हासिल की जा सकती है.
इस लंबी जद्दोजहद से मेरी फाइनेंशियल स्किल पहले से ज्यादा मजबूत हो गयी. इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह कि मुझे यह बात समझ में आयी कि बतौर उद्यमी आपके समक्ष ऐसी चीजें आ सकती हैं, जिन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता. आपकी कामयाबी देख दूसरों के व्यवहार में बदलाव आता है. अचानक ऐसा होगा कि सप्लायर्स आपको जरूरी माल की सप्लाइ रोक दें.
बिजनेस पार्टनर्स तय एग्रीमेंट की अनदेखी करेंगे, रेगुलेटर्स आपका सामान रोक देंगे, हड़ताल से कभी भी, कहीं भी आपका सामान ठहर सकता है. कई बार चीजें इतनी बिखर जायेंगी कि आप उन सभी को समेटने में अकेला महसूस करेंगे. इसके लिए आपको स्वयं मजबूत बनना होगा. इसलिए उद्यमिता शुरू करने से पहले आप खुद से पूछें कि क्या आप इन सबसे निबटने की क्षमता रखते हैं. आखिरकार यही चीजें निर्धारित करेंगी कि आप कामयाब होंगी या नहीं.
(प्रसिद्ध पत्रिका फॉर्चून से संपादित अंश, साभार )
स्टार्टअप क्लास
स्टार्टअप में बेहतर वित्तीय प्रबंधन के कामयाब नुसखे
प्रत्येक स्टार्टअप अपने प्रबंधकों के साथ शुरुआती दौर में काफी कठिनाइयों से गुजरता है. शुरुआती दौर में यह जरूरी है कि प्रबंधक अपने पैसे और स्टार्टअप के पैसों का सही प्रकार से उपयोग करें. इसके लिए इन पांच नियमों का पालन करना बेहतर हो सकता है :
1. शुरुआती पूंजी का इंतजाम : स्टार्टअप को शुरू करने के लिए शुरुआती पूंजी हमेशा अपने पास से या परिवार और जानकारों से ही जुटाएं. साथ ही रकम लौटाने के लिए आप उनसे कम-से-कम तीन वर्ष का समय जरूर लें. इसका कारण यह है कि शुरुआती पूंजी कुछ हद तक जोखिम भरी होती है. बैंक या दूसरी संस्था से लेने पर आपको ब्याज भी देना होगा. साथ ही असफल होने पर पूंजी चुकाने का काफी दबाव भी होगा. इसके अलावा आरंभिक दौर में आपका पूरा ध्यान व्यवसाय को चलाने में लगाना चाहिए, न कि बैंक और कर्जदारों को संभालने में.
2. फाइनेंसियल मैनेजमेंट : आरंभिक दौर में आप अपने खर्चों को कम-से-कम रखें. छोटी टीम बनायें और कोशिश करें कि ज्यादातर लोग पार्टनर के तौर पर आयें, न कि कर्मचारी के तौर पर. इससे आपकी सैलरी का खर्च कम हो जायेगा. साथ ही शुरुआती पूंजी का आप सही निवेश करें अर्थात थोड़े पैसे चालू खाते में छोड़ कर बाकी को फिक्स्ड डिपाेजिट या म्यूचुअल फंड में रखें, ताकि उस पूंजी पर आपको थोड़ा बहुत मुनाफा मिलता रहे. जैसे-जैसे आपको पूंजी की जरूरत हो, वैसे-वैसे आप उसे निकालें.
3. चेक या ऑनलाइन लेन-देन पर ज्यादा जोर : इस बात का ध्यान रखें कि चेक या ऑनलाइन लेन-देन करने से आपकी बैलेंस शीट ठीक रहेगी और कैश मैनेजमेंट का खर्च भी बचेगा. साथ ही जब आपको लोन या बाहरी निवेश की जरूरत होगी, तो आप अपनी बैलेंस शीट का अच्छा प्रदर्शन कर आसानी से रकम जुटा पायेंगे. इसके अलावा कोशिश यह रखें कि शुरुआती दौर में आप कुछ साथी स्टार्टअप्स के साथ मिल कर खरीदारी करें. काफी स्टार्टअप्स इक्विपमेंट और तकनीकी प्रोडक्ट खरीदने के लिए सहयोगी तलाशते हैं. साथ मिल कर खरीदने से आपको बेहतर कीमत और बेहतर सर्विस मिलेगी.
4. घर या छोटी जगह से करें शुरुआत : शुरू में आप अपना ऑफिस अपने आवास में बना सकते हैं या किसी छोटी जगह में ही रखें. इससे आपका किराया बचेगा. अगर टीम बड़ी होती जा रही है, तो कोशिश करें कि को-वर्किंग स्पेस में कुछ सीटें महीने के हिसाब से लें. इस तरीके से आपको जगह भी मिल जायेगी और खर्च भी ज्यादा नहीं होगा. इसी तरीके से छोटे-छोटे खर्च बचाने की कोशिश करें. कंप्यूटर या लैपटॉप या काफी सारे इलेक्ट्रॉनिक आइटम, जिनकी ऑफिस में जरूरत होती है, नये नहीं खरीदें. आजकल काफी सारे इलेक्ट्रॉनिक आइटम ऑनलाइन रिफर्बिश या ठीक करके दोबारा बेचे जाते हैं. इनकी लागत नये से करीब एक-चौथाई कम होती है. साथ ही इन पर वारंटी भी मिलती है.
5. डेफर्ड टैक्स एसेट बनाएं : टैक्स बचाने का यह बेहतर तरीका है. इस प्रावधान के अंतर्गत आप अपने इस वर्ष हुए नुकसान को चार वर्ष बाद के मुनाफे में लगा कर टैक्स बचा सकते हैं. मान लें कि पहले तीन वर्षों में आप 10 लाख का घाटा सहते हैं और चौथे वर्ष में आपको 15 लाख का मुनाफा होता है.
सामान्यतया पहले तीन वर्ष के दौरान आप कोई टैक्स नहीं देंगे, लेकिन चौथे साल में आपको 15 लाख पर टैक्स देना पड़ेगा. लेकिन अगर आप पहले तीन साल कोई नुकसान नहीं दिखा कर, शून्य मुनाफा दिखायें और नुकसान को एक डेफर्ड टैक्स एसेट अकाउंट में डालें, तो चौथे साल में आपको उसका फायदा मिल सकता है. आपको सिर्फ पांच लाख पर ही टैक्स देना पड़ेगा.
इन नियमों के साथ अगर आप शुरुआत करते हैं, तो आप काफी हद तक कम लागत में ही स्टार्टअप चला कर सफल हो सकते हैं.
मार्केटिंग व टेक्नोलॉजी सपोर्ट मुहैया कराते हैं एक्सेलरेशन प्रोग्राम
स्टार्टअप एक्सेलरेशन प्रोग्राम क्या है? स्टार्टअप शुरू करनेवाले कैसे इससे लाभ उठा सकते हैं?
स्टार्टअप एक्सेलरेशन प्रोग्राम एक तरीके का इंक्यूबेशन प्रोग्राम ही होता है. अलग-अलग तरीके से अलग-अलग प्रोग्राम स्टार्टअप को सपोर्ट देते हैं. कुछ मार्केटिंग सपोर्ट तो कुछ टेक्नोलॉजी सपोर्ट दे कर स्टार्टअप को जल्दी बड़ा करने में सहायता करते हैं. इसका लाभ उठाने के लिए पहले आपको यह जान लेना होगा कि आपकी बड़ी जरूरतें क्या हैं.
इसके बाद अगले एक साल के बाद ही आप अपने तरीके के प्रोग्राम चुन पायेंगे. अगर आप टेक्नोलॉजी बेस्ड स्टार्टअप हैं, तो आपको ऐसे प्रोग्राम चुनने चाहिए, जहां आप कम लागत में अच्छी टेक्नोलॉजी बना पायें! अगर आप मैन्युफैक्चरिंग में हैं, तो आपको ऐसे प्रोग्राम चुनने चाहिए, जो आपको सस्ते से सस्ते दामों पर मशीनें दिला पायें.

