पर्वतीय क्षेत्रों पर युद्ध के लिए विकसित सुपरसोनिक ‘ब्रह्मोस’ क्रूज मिसाइल को अरुणाचल प्रदेश में तैनात करने के भारत के फैसले से चीन बेचैन हो उठा है. खबरों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षतावाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मोस के आधुनिक संस्करण से लैस एक नयी रेजिमेंट की स्थापना को मंजूरी दी है. इस रेजिमेंट में करीब 100 मिसाइल, 5 मोबाइल ऑटोनोमस लॉन्चर्स और मोबाइल कमांड पोस्ट शामिल हैं. इसकी लागत 4,300 करोड़ रुपये से अधिक होगी. इस फैसले पर चाइनीज लिबरेशन आर्मी ने अपने माउथपीस ‘पीएलए डेली’ में चेतावनी भरे लहजे में लिखा है कि भारत के इस कदम से दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और गतिरोध बढ़ेगा, साथ ही क्षेत्र की शांति भंग होगी. साथ ही आरोप लगाया गया है कि इससे चीन के तिब्बत और युन्नान प्रांत को गंभीर खतरा उत्पन्न हो जायेगा. हालांकि, चीन की इस चेतावनी का कड़े शब्दों में उत्तर देते हुए भारतीय सेना ने कहा है कि भारत अपनी सीमा को किस तरह सुरक्षित करेगा, यह उसका निजी मामला है और किसी दूसरे को इसमें दखल देने की जरूरत नहीं है. भारत की यह स्पष्ट नीति रही है कि वह परमाणु हमले की शुरुआत नहीं करेगा, न ही रिहायशी इलाके को निशाना बनायेगा. इसके बावजूद चीन की आपत्ति के क्या हैं मायने, इसी की एक पड़ताल कर रहा है संडे इश्यू.
दुनिया की सबसे तेज एंटी शिप क्रूज मिसाइल
ब्रह्मोस मिसाइल देश की सबसे आधुनिक और दुनिया की सबसे तेज एंटी शिप क्रूज मिसाइल है. इसकी गति 3,675 किलोमीटर प्रति घंटे है, जो किसी भी चीनी मिसाइल से करीब तीन गुना ज्यादा तेज है. पूरी फ्लाइट में इसकी सुपरसोनिक स्पीड बरकरार रहती है. इतना ही नहीं, यह मिसाइल न्यूक्लियर वारहेड तकनीक से लैस है. यह 290 किलोमीटर दूरी तक के लक्ष्य को भेदने की क्षमता रखती है और चीन के पास इसका कोई तोड़ नहीं है. यह मिसाइल जमीन से, पनडुब्बी से, पानी के जहाज और विमान से भी छोड़ी जा सकता है. यह मनुवरेबल तकनीक से लैस है यानी, इस मिसाइल के दागे जाने के बाद यदि लक्ष्य अपना रास्ता बदल लेता है, तो मिसाइल भी अपना रास्ता बदल लेती है और लक्ष्य को निशाना बना लेती है.
अरुणाचल में तैनाती का उद्देश्य
अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मोस रेजिमेंट की तैनाती के फैसले के पीछे भारत सरकार का उद्देश्य पूर्वोत्तर में सामरिक शक्ति संतुलन बनाये रखना है. दरअसल, चीन अरुणाचल की सीमा से सटे इलाके पर दावा ठोकता रहा है. इसी क्रम में हालिया वर्षों में अरुणाचल की भारत-चीन सीमा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर घुसपैठ की चीनी कोशिशों के चलते दोनों देश के जवानों के बीच झड़पें होती रही हैं.
भारत और चीन की सैन्य शक्ति
भारत चीन
सक्रिय सैनिक 13,25,000 23,35,000
सक्रिय सैन्य रिजर्व 21,43,000 23,00,000
एयरक्राफ्ट (सभी प्रकार) 2,086 2,942
हेलीकाॅप्टर 646 802
अटैक हेलीकाॅप्टर 19 200
अटैक एयरक्राफ्ट
(फिक्स्ड विंग) 809 1,385
फाइटर एयरक्राफ्ट 679 1,230
ट्रेनर एयरक्राफ्ट 318 352
ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट 857 782
टैंक शक्ति 6,464 9,150
सशस्त्र लड़ाकू वाहन 6,704 4,788
रस्सी से खींचनेवाले
तोप (टोड आर्टिलरी) 7,414 6,246
पनडुब्बी 14 68
परमाणु हथियार 100-120 260
सालाना रक्षा बजट $ 40,000,000,000 $ 155,600,000,000
स्रोत: ग्लोबल फायर पावर डॉट काॅम, सीआइए वर्ल्ड फैक्टबुक
2015 में सर्वािधक सैन्य खर्च करनेवाले दस देश
रैंक देश सैन्य खर्च बदलाव िवश्व में जीडीपी में
2015 2014 2015 2006-15 िहस्सेदारी िहस्सेदारी
(अरब $) (%) 2015 (%) 2015 20061 1 यूएसए 596 -3.9 36 3.3 3.8
2 2 चीन 215* 132 13* 1.9* 2.0*
3 4 सऊदी अरब 87.2 97 5.2 13.7 7.8
4 3 रूस 66.4 91 4.0 5.4 3.5
5 6 यूके 55.5 -7.2 3.3 2.0 2.2
6 7 भारत 51.3 43 3.1 2.3 2.5
7 5 फ्रांस 50.9 -5.9 3.0 2.1 2.3
8 9 जापान 40.9 -0.5 2.4 1.0 1.0
9 8 जर्मनी 39.4 2.8 2.4 1.2 1.3
10 10 द.कोरिया 36.4 37 2.2 2.6 2.5
विश्व का कुल योग 1676 19 100 2.3 2.3
(* िसपरी का अनुमान, क्योंिक चीन आंकड़े सार्वजनिक नहीं करता है.)
स्रोत : स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस िरसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी)
भारत के पास अन्य
प्रमुख मिसाइल
आकाश- मारक क्षमता 30 किलोमीटर
त्रिशूल – मारक क्षमता नौ किलोमीटर
नाग – मारक क्षमता सात से 10 किमी (एयर लॉन्च्ड)
पृथ्वी सीरीज
पृथ्वी I – मारक क्षमता 150 किलोमीटर
पृथ्वी II – मारक क्षमता 250-350 किलोमीटर
पृथ्वी III – मारक क्षमता 350 – 600 किलोमीटर
अग्नि मिसाइल सीरीज
अग्नि I – मारक क्षमता 700- 1200 किलोमीटर
अग्नि II – मारक क्षमता 2000-2500 किलोमीटर
अग्नि III – मारक क्षमता 3000-5000 किलोमीटर
अग्नि IV – मारक क्षमता 2500-3700 किलोमीटर
अग्नि V – मारक क्षमता 5000-8000 किलोमीटर
अग्नि VI – मारक क्षमता 10,000-12,000 किलोमीटर
के सीरीज मिसाइल
के-15 – मारक क्षमता 750 किलोमीटर
के-4 – मारक क्षमता 3500 से 5000 किलोमीटर
के-5 – मारक क्षमता 6000 किलोमीटर
प्रस्तुित : आरती श्रीवास्तव
आपत्तियों की आड़ में अरुणाचल पर अपनी दावेदारी
बढ़ा रहा है चीन
चीन ने अपनी सीमा पर कई सारी मिसाइलें तैनात कर रखी हैं, जिनका मुंह भारत की तरफ ही है. लेकिन, अब जब भारत ने अपनी सीमा पर ब्रह्मोस मिसाइल तैनात करने का फैसला लिया है, तो उसे तकलीफ हो रही है. ब्रह्मोस की रेंज (मारक दूरी) महज 290 किलोमीटर ही है. इस मिसाइल से चीन को कोई नुकसान नहीं होनेवाला है, क्योंकि यह कुछ बाहरी क्षेत्रों के अलावा बहुत दूर तक मार नहीं कर सकता.
ब्रह्मोस मिसाइल की तैनाती की खबर के बाद मीडिया के जरिये चीन ने इस पर आपत्ति जतायी कि इससे सीमा पर अशांति का माहौल बनेगा. सच्चाई यह है कि चीन की यह आपत्ति सिर्फ अरुणाचल प्रदेश को लेकर है, न कि भारत की सैन्य क्षमता को लेकर है. चीन हमसे बहुत ताकतवर है, उसकी सैन्य क्षमता हमसे बहुत ज्यादा है. दरअसल, अपने इस ऐतराज के जरिये चीन सीधे-सीधे यह बताना चाहता है कि भारत विवादित अरुणाचल क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकता है. इस ऐतराज के पीछे चीन का सिर्फ एक ही मकसद है कि वह अरुणाचल पर अपनी दावेदारी को मानता है, इसलिए वह चाहता है कि वहां भारत कोई सैन्य गतिविधि न करे.
इस दावेदारी के पीछे के तथ्यों पर गौर करें, चीन कहता है कि यह सीमा विवाद 2,000 किलोमीटर क्षेत्र को लेकर है, जो अरुणाचल के पूर्वी क्षेत्र में है. लेकिन, भारत का कहना है कि यह विवाद पूरे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एएलसी) का है, जिसमें अक्साई चिन भी शामिल है, और इस पूरे क्षेत्र पर चीन ने 1962 के युद्ध के दौरान कब्जा कर लिया था.
पिछले साल फरवरी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर गये थे, तब चीन ने पुरजोर विराेध दर्ज कराया था. चीन ने तब अपने विरोध में कहा था कि विवादित सीमा क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता और हितों की अनदेखी हुई है. इससे पहले अक्तूबर 2009 में जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर गये थे, तब भी चीन ने कड़ी आपत्ति जाहिर की थी और कहा था कि विवादित क्षेत्र में भारतीय प्रधानमंत्री का दौरा उचित नहीं था. हालांकि, इन दोनों प्रधानमंत्रियों के दौरों पर चीन की आपत्तियों को देखें, तो मोदी की यात्रा पर चीन की आपत्ति ज्यादा मजबूत थी. इस ऐतबार यह समझा जा सकता है कि धीरे-धीरे चीन की नीति अरुणाचल प्रदेश पर अपनी दावेदारी मजबूत करने की ओर बढ़ रही है.
दूसरी बात यह है कि चीन की यह आपत्ति सिर्फ एक बार आयी है, वह भी अखबार के जरिये आयी है. जाहिर है, अखबार की प्रतिक्रिया और सरकारी आधिकारिक प्रतिक्रिया में अंतर होता है. इसे हम सबको समझना चाहिए. इसलिए बिना किसी ठोस प्रतिक्रिया के हमें कुछ भी नकारात्मक नहीं सोच लेना चाहिए. साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय में अरुणाचल प्रदेश को लेकर दावे हुए थे कि यह हिस्सा हमारा है और यह हिस्सा आपका है. उस वक्त ऐसा कुछ नहीं हुआ था, जिससे कि हम कह सकें कि 1962 के पहले सीमा पर भारत की सैन्य गतिविधियां बढ़ गयी थीं. मैं तो यह मानता हूं कि अगर ऐसा हुआ होता और नेहरू ने अच्छी सैन्य तैयारी की होती, तो भारत-चीन युद्ध में हमारी हालत इतनी खराब नहीं हुई होती.
प्रो एसडी मुनी
विदेश मामलों के जानकार