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कश्मीर मसले पर बातचीत के लिए यूपीए सरकार में गठित मध्यस्थ टीम के सदस्य रहे एमएम अंसारी का मानना है कि ग़लतबयानी से हालात और ख़राब हो रहे हैं.
सोमवार को जम्मू और कश्मीर के हालात को लेकर प्रदेश के विपक्षी दलों को लेकर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला प्रधानमंत्री से मिले.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कश्मीर के हालात पर चिंता जताई और संवाद शुरू करने की ज़रूरत पर जोर दिया.
बीबीसी से बातचीत में एमएम अंसारी ने कहा, "इसमें कोई नई बात नहीं है. हमारे तमाम नेताओं ने कहा है कि कश्मीर द्विपक्षीय मसला है भारत और पाकिस्तान के बीच. साथ ही कश्मीरी आवाम से बात कर ही इस मामले का हल निकल सकता है."
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वो कहते हैं, "हमने शिमला समझौते में भी यही कहा कि दोनों देश मिलजुल कर इस मसले को सुलझाएंगे. इसके बाद पीडीपी और भाजपा के समझौते में भी सभी पक्षों से संवाद के जरिए मसले को सुलझाने की बात कही गई थी.
पीडीपी-बीजेपी समझौते में एक पक्ष के तौर पर पाकिस्तान को जगह दी गई है. इसमें यहां तक कहा गया कि बिना किसी विचारधारा को देखते हुए संवाद होगा, यानी हुर्रियत से भी संवाद करने की बात कही गई थी.
वो कहते हैं, "हालांकि उनसे बात पहले भी हुई थी. अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने भी बात की, लेकिन मैं देख रहा हूं कि इस मसले पर वर्तमान केंद्र सरकार के नज़रिए में एक बड़ा बदलाव आया है."
अंसारी कहते हैं, "अभी सभी दलों की मीटिंग हुई, जिसे लेकर उम्मीद थी कि कोई रास्ता निकलेगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका."
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भारत प्रशासित कश्मीर के कई हिस्सों में कर्फ्यू के 45 दिन होने को हैं और घाटी शांत होने का नाम नहीं ले रही है.
इस बीच सोमवार को प्रधानमंत्री से मिलने के बाद उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि कश्मीर की समस्या विकास से नहीं सियासत से हल होगी.
हालांकि अंसारी इससे सहमति जताते हैं लेकिन उनका कहना है कि अगर विकास, सामाजिक कल्याण और मानवाधिकार उल्लंघन के सवालों पर तवज्जो के माध्यम से विकास की राजनीति करते हैं तो ये भी एक रास्ता हो सकता है.
उनके अनुसार, "विकास और सियासत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. पिछले 30 सालों में प्रदर्शनों और कर्फ्यू से बेकारी और बेरोज़गारी बढ़ी है. जो नौजवान कश्मीर से बाहर पढ़ने गए उनके वजीफ़े बंद हो गए. अब उनके सामने संकट खड़ा हो गया कि वो जाएं तो कहां जाएं. इधर असहिष्णुता के माहौल के कारण हज़ारों कश्मीरी नौजवानों को वापस आना पड़ा."
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वो इसे कश्मीरी नौजवानों में ग़म और गुस्से की बड़ी वजह मानते हैं.
अंसारी कहते हैं, "अगर कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और ऐसे ही बनाए रखना है तो वहां विकास की बातें और जोर शोर से होनी चाहिए. लेकिन जब कश्मीर में माहौल बेहद खराब है तो ऐसे समय इसकी बलूचिस्तान से नहीं करना चाहिए."
अंसारी का कहना है कि लोगों में गुस्सा इसलिए भी बढ़ा कि कश्मीर की तुलना बलूचिस्तान से नहीं की जा सकती. इसलिए कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मामला है जिसे हमने संयुक्त राष्ट्र और शिमा समझौते में भी माना है.
पीडीपी-बीजेपी समझौते में भी माना है. ऐसे में हाल ही में जो बढ़चढ़ कर बयान आए हैं वो अच्छे नहीं हैं.
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वो कहते हैं कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (पीओके) को वापस करने बात किस आधार पर की गई?
उनके मुताबिक़, "1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत ने जो हिस्सा क़ब्जा किया था उसे ताशकंद समझौते में वापस कर दिया. फिर 1971 के युद्ध के बाद भी भारत ने पीओके के हिस्से को शिमला समझौते में वापस कर दिया. जो हिस्सा हमने वापस कर दिया तो आखिर हम मांग क्या रहे हैं."
वो कहते हैं, "जब पाकिस्तान ने पीओके का एक बहुत बड़ा हिस्सा चीन को लीज़ पर दिया तो उस समय कोई आवाज़ नहीं उठाई गई."
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अंसारी का कहना है कि दोनों तरह की बयानबाज़ियों का कोई मतलब है नहीं, इससे माहौल और उलझता जा रहा है.
वो कहते हैं, "अभी दो दिन पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जम्मू में कह दिया कि जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो उनके मां बाप उनके झोलों में पत्थर रखकर भेजते हैं. ये तो एक बहुत बड़ी ग़लतबयानी है. मैं समझता हूं कि अबतक जितनी भी बयानबाजी हुई है उससे माहौल और खराब ही हुआ है."
कश्मीरी जनता में पैलेट गन के इस्तेमाल को लेकर भी गुस्सा है.
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वो कहते हैं, "हालात इसलिए भी ख़राब हुए क्योंकि सुरक्षा बलों ने पैलेट गन का इस्तेमाल किया. जब 2010-11 में हमने पूरे कश्मीर का दौरा किया तो हमारे सामने एक भी पैलेट गन का केस नहीं आया. वो कह रहे हैं कि इसका इस्तेमाल 2010 से ही हो रहा है. ये भी ग़लत बयानी है."
उनका कहना है, "मेरी जानकारी में इससे पहले कभी नहीं इसका इस्तेमाल हुआ है. इज़राइल जैसे देश भी इसका इस्तेमाल नहीं करते. संसद सदस्य सीताराम येचुरी ने भी सवाल उठाया कि पैलेट गन का कहीं भी इस्तेमाल नहीं हो रहा है, सिर्फ हिंदुस्तान के कश्मीर में छोड़कर."
अंसारी कहते हैं कि इन बयानबाजियों से हालात सुधरने की उम्मीद नहीं है क्योंकि हालात सामान्य करने की कोशिशों के पहले भी कुछ ज़रूरी क़दम उठाने होते हैं.
( बीबीसी संवाददाता अमरेश द्विवेदी से बातचीत के आधार पर. )
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