दक्षा वैदकर
जी मराठी पर एक सीरियल आता है. इसकी नायिका उर्मी अौर उसका परिवार नास्तिक है. वहीं नायक वसु का परिवार धार्मिक है. उसके पिताजी मठ चलाते हैं. कुंडली देखे बिना उनके घर का पत्ता नहीं हिलता. वसु और उर्मी उन्हें बिना बताये शादी कर लेते हैं और वह उनके घर भी रहने लगती है.
कई कठिनाइयों के बाद वह सबका दिल जीत लेती है. इस दौरान वसु के पिता अपनी आंखों के सामने अपने बड़े बेटे और बेटी का संसार उजड़ता देखते हैं, जबकि उन दोनों की शादी उन्होंने कुंडली देख कर की थी. उन्हें एहसास होता है कि कुंडली देखना ही सिर्फ जरूरी नहीं, मन जुड़ना भी जरूरी है. अब जबकि सीरियल खत्म होने को है, वसु के पिताजी उर्मी से कहते हैं, ‘तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारी परवरिश किस तरह की है कि तुम्हारे अंदर इतना आत्मविश्वास है, तुम अपने निर्णय को लेकर एकदम स्पष्ट हो. और नास्तिक होने के बावजूद धार्मिक परिवार में शादी के लिए तुम्हारे पिता कैसे राजी हो गये?’
उर्मी कहती है कि जब बाबा को एहसास हुआ कि मेरी खुशी वसु के साथ है और उनकी खुशी मेरे साथ है, तो उन्होंने हां कह दी. बाबा ने मुझे यही सिखाया कि ‘कोई भी मुसीबत आये, भगवान तुझे बचाने नहीं आयेगा. तुझे तेरे संकट से खुद ही निकलना है.’ इसलिए भगवान सब करेगा, ये ऑप्शन ही मेरे पास नहीं था. यही कारण है कि मैं हर निर्णय सोच-समझ कर लेती हूं.
बाबा के मुताबिक मेरा शादी का निर्णय गलत था, लेकिन उन्होंने सपोर्ट किया. मैं अब भी विश्वास के साथ कह सकती हूं कि अगर मेरा यह निर्णय गलत निकलता, तो भी बाबा मुझे सपोर्ट करते. मुझे दोबारा खड़े होने के लिए मदद करते. यही कारण है कि मैं अपने बाबा से कुछ नहीं छिपाती. मुझे उनसे डर नहीं लगता. हमारे बीच प्रेम व विश्वास का रिश्ता है.
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