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बच्चों को पसंद का जीवनसाथी चुनने में खुशी से दें रजामंदी

युवा बच्चों के साथ विवाह को लेकर अक्सर टकराव होते हैं. बच्चे अपनी पसंद से विवाह करना चाहते हैं. वह जात-पात नहीं देखते. प्यार जात-बिरादरी देख कर होता भी नहीं. इसलिए वे हर बंधन से ऊपर होते हैं. उनकी दोस्ती भी तमाम बंधनों से ऊपर होती है. जब दोस्ती में सारे बंधन खुल जाते हैं, […]

युवा बच्चों के साथ विवाह को लेकर अक्सर टकराव होते हैं. बच्चे अपनी पसंद से विवाह करना चाहते हैं. वह जात-पात नहीं देखते. प्यार जात-बिरादरी देख कर होता भी नहीं. इसलिए वे हर बंधन से ऊपर होते हैं. उनकी दोस्ती भी तमाम बंधनों से ऊपर होती है.
जब दोस्ती में सारे बंधन खुल जाते हैं, तो प्यार में तो खुलेंगे ही. यह अक्सर होता है कि पहले माता-पिता तैयार नहीं होते.
इंतजार के बाद बच्चे भी बिना पेरेंट्स के विवाह कर लेते हैं, मगर विवाह के कुछ समय बाद सब ठीक हो जाता है. यह प्रेम विवाह के 10 में से 8 मामलों में होता है. शायद दो विवाह ऐसे हों, जहां घरवाले देर से मानें और शायद एक ही ऐसा मामला होगा जहां पेरेंट्स बच्चों से कभी वास्ता नहीं रखते, क्योंकि मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जहां बच्चे कॉलेज पहुंच गये, मगर उनके ग्रैंड पेरेंट्स ने कोई वास्ता नहीं रखा.
अमूमन यही होता है कि विवाह के बाद माता-पिता मान जाते हैं. ऐसे माता-पिता से मैं पूछना चाहती हूं जब आपको बाद में मानना ही है, तो क्यों नहीं बच्चों की खुशी में शरीक होकर उनकी खुशियों को कई गुना बढ़ाते ? आप जानते हैं कि आपके बच्चे अपनी मरजी से विवाह करेंगे तो समझदारी तो इसी में है कि आप उन्हें न केवल स्वीकृति दें, बल्कि खुशी-खुशी उनकी शादी भी करवाएं. बच्चों के सामने पूरा जीवन है. कोशिश होनी चाहिए कि वे अपना जीवन खुशी से अपने पसंद के जीवनसाथी के साथ गुजारें.
साथ में पढ़नेवाले बच्चे एक-दूसरे के बारे में जानने-समझने लगते हैं. धीरे-धीरे अच्छे दोस्त बन जाते हैं. यही दोस्ती प्यार में बदल जाती है. यह स्वाभाविक है. वे भी किशोरवय उम्र से गुजर चुके होते हैं. अपना कैरियर चुनकर वहां पढ़ने आते हैं. एक साथ पढ़ने के कारण दोनों एक-दूसरे के प्रोफेशन की डिमांड समझते हैं. एक-दूसरे की अच्छाइयों, कमियों व बुराइयों को जानते हैं. अगर वे एक साथ जीवन जीना चाहते हैं, तो इसमें बुराई क्या है ? अब तक आप सभी माता-पिताओं ने बच्चों पर अपनी खुशियां न्यौछावर की हैं. उनकी भोली-सी मुस्कान पर अपना सब वार दिया. उनकी एक हल्की-सी चोट पर आपका दिल दुखा और आप रोए, तो जीवन भर रोने के लिए क्यों आप बच्चों को छोड़ रहे हैं ?
जब मनपसंद जीवनसाथी नहीं होगा, तो हो सकता है उसका मन भटके, जो जीवन में नहीं आ सकी, उसकी कमी खले. जब भी कोई परेशानी आये तो बच्चे आपस में सुलझाने की बजाय यह सोचें कि काश हमें वह मिली होती या मिला होता, तो वो मुझे या मेरी परेशानी को समझता. सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं. मगर उनमें हिम्मत बनाये रखने के लिए पति-पत्नी दोनों का हौसले के साथ बढ़ना जरूरी है. यह जज्बा घरवालों द्वारा तय किये हुए विवाह में भी मिलता है. पहले तो प्रेम विवाह बहुत कम होते थे. हम सभी के माता-पिता ने एक-दूसरे के साथ चलकर, समझकर और एक-दूसरे का साथ देकर पूरा जीवन गुजार दिया और अब भी माता-पिता द्वारा तय किये हुए विवाह सफल होते हैं.
बात केवल इतनी-सी है कि अगर आपके बच्चे किसी को चाहते हैं, तो केवल इस आधार पर कि लड़का या लड़की स्वजातीय नहीं है, नौकरी ढूंढ़ रहा है, गरीब परिवार से है, लड़के या लड़की का परिवार बहुत पढ़ा-लिखा नहीं है या लड़की के पिता आप ही के ऑफिस में फोर्थ क्लास एंप्लाइ हैं, बच्चों की खुशियों को उनसे दूर करना उचित नहीं. इन सबके जवाब हैं. लड़का-लड़की सजातीय नहीं हैं, तो क्या हुआ, आपके बच्चे एक-दूसरे को बहुत चाहते हैं.
क्या हमें बच्चों की खुशियां छीनने का हक है? लड़का नौकरी ढूंढ़ रहा है, तो क्या हुआ? सभी को ढूंढ़नी ही पड़ती है. उसे भी मिल जायेगी, उसे समय तो दीजिए. अगर वह गरीब घर से है, तो क्या हुआ? घरवालों ने उसे पढ़ाया-लिखाया. गरीबी की मजबूरियां बच्चों की पढ़ाई पर हावी नहीं होने दीं. वे खुद भूखे रह कर, अभावों में जीकर फर्ज निभा रहे हैं. इसका मतलब वे आत्म सम्मान से जीना जानते हैं. इससे बेहतर और संस्कारी घर आपकी बेटी को और कहां मिलेगा? परिवार पढ़ा-लिखा नहीं तो क्या हुआ? अपने बच्चों को तो पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बनाया कि वे अपने पैरों पर खड़े हैं. किसी के पिता एक ही ऑफिस में बॉस और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं, तो भी क्या हुआ? वे आत्म सम्मान से कमाते हुए अपने बच्चों को तो पढ़ा रहे हैं.
खुद भले ही ऑर्डली हों, मगर बच्चों को स्वाभिमान के साथ अच्छी शिक्षा दे रहे हैं. इसकी तो तारीफ होनी चाहिए. ऐसे कितने ही फिल्म स्टार, सफल लोग मिल जायेंगे, जो कभी होटल में काम करते थे, ठेला लगाते थे, सब्जी बेचते थे, रिक्शा चलाते थे, मगर मेहनत ने उन्हें बुलंदी पर पहुंचा दिया. कोई भी काम छोटा नहीं होता. खुद्दारी से झाड़ू लगाना भीख मांगने से कहीं बेहतर है.
अभी तो हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ही उदाहरण हैं, जिन्होंने चाय भी बेची. खुद्दारी और आत्म सम्मान तो होना ही चाहिए. हरेक वह शख्स, जो भी मेहनत-मजदूरी करक अपने बच्चों को पढ़ा रहा है, अपने हाथों से कमाकर खा रहा है, सम्मान का हकदार है. किस्मत कब-कहां करवट ले, कोई नहीं जानता.
इसलिए सबसे कह रही हूं कि आपके बच्चे किसी को पसंद करते हैं, तो एक बार उनसे जरूर मिलिए. उन्हें देखिए और समझिए. आश्वस्त हो जाइए. लड़के-लड़की के बारे में जानकारी जरूर हासिल करें. कभी-कभी धोखा भी मिलता है. बच्चे तो बच्चे हैं. आप अभिभावक हैं. इसलिए आप अपने स्तर से पता जरूर लगाएं, लेकिन कोई अवधारणा बना कर, पूर्वाग्रही होकर कोई फैसला न लें.
क्रमश:

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