
लंबे समय के बाद अभय देओल ‘हैप्पी भाग जाएगी’ के साथ वापसी कर रहे हैं. इस फ़िल्म में वो ‘बिलाल अहमद’ का किरदार निभा रहे हैं.
ये फ़िल्म भी अभय की बाकी फ़िल्मों से अलग नज़र आ रही है. साथ ही उनके आलोचक इस फ़िल्म को अभय का ‘कमबैक’ करार दे रहे हैं. पर अभय बड़े ही अल्हड़ अंदाज़ में सभी को जवाब दे रहे हैं कि इतने लंबे समय बाद फ़िल्म आ रही है, तो लोग इसे कमबैक तो कहेंगे ही, पर फ़िर नहीं चली तो लोग क्या ‘गो-बैक कह देंगे ?
‘ओए लकी लकी ओए’ और ‘शंघाई’ जैसी फ़िल्में बना चुके फ़िल्मकार दिबाकर बैनर्जी ‘ओए लकी लकी ओए’ के हीरो अभय देओल के बारे में कहते हैं कि अभय देओल इंटेलीजेंट सवाल पूछते हैं.
शंघाई में दिबाकर के असिस्टेंट रह चुके रणदीप झा का भी यही मानना है.
वो बताते हैं कि कैसे अभय देओल अपने किरदार को लेकर ढेरों सवाल पूछते हैं और सभी को सेट पर हैरान कर देते हैं.
दिबाकर ख़ास तौर पर इस बात कि सरहाना करते हैं कि अभय के सवालों से किरदार को समझना और आसान हो जाता था. लिखे हुए किरदार की परतें और खुलती जाती थीं.

रणदीप शंघाई में निभाए अभय के किरदार को याद करते हुए कहते हैं, "एक पंजाबी लड़का…अपने कल्चर से बिल्कुल अलग…जब साउथ इंडियन एक्सेंट में बात करता है…इतनी बखूबी से अपने किरदार को निभाता है…तो देखकर अच्छा लगता है. उनके अभिनय का मैं पहले से ही कायल रहा हूँ, पर उनके साथ काम करना एक अलग ही अनुभव था."
वो आगे कहते हैं, "बहुत ही शांत स्वभाव है. ट्रीटमेंट से बिल्कुल दूर. यहाँ तक कि लातूर में 45 डिग्री में भी उन्होंने समय की पाबंदी और अनुशासन बनाए रखा."
अभय देओल ख़ुद भी मानते हैं कि बाकी लोगों की नज़रों में उनकी फ़िल्मों के चुनाव शुरुआत से ही आत्मघातक रहे हैं.
उनकी पहली फ़िल्म ‘सोचा न था’ ही के बाद से आलोचकों ने उनसे कह दिया कि उनमें वो ‘हीरो’ वाली बात नहीं है.
शायद उनका तर्क रहा हो, "पूत के पाँव…डांस फ्लोर पर दिख जाते हैं." जैसे ऋतिक रोशन से लेकर वरुण धवन और आजकल टाइगर श्रॉफ तक, सभी ने नाचते-गाते सिक्स पैक एब्स की नुमाइश करते अपना हुनर दिखाने की शुरुआत की.

पर दूसरी तरफ़ अभय देओल अपनी पहली ही फ़िल्म में ‘विरेन ओब्रोई’ जैसा कन्फ्यूज्ड किरदार निभाते हैं, जो प्यार को समझने में उलझा रहता है और अंत में दुल्हनिया (आयशा टाकिया) ख़ुद ही उसे भगा ले जाती है.
पर कुछ उनके ऐसे चुनावों के प्रशंसक भी रहे हैं. ‘रमन राघव’ के लेखक और ‘देव डी’ फ़िल्मों में अनुराग कश्यप के असिस्टेंट रह चुके वासन बाला कहते हैं, "अभय भावुकता और आईक्यू के संतुलन का बेजोड़ उदाहरण हैं. अभय ने अपनी फ़िल्में ख़ुद सोच समझकर चुनी हैं. देव डी में उनके साथ काम कर के लगा कि वो अलग हैं. बॉलीवुड हीरो से बिल्कुल अलग. थोड़ा हट कर ‘क्वर्की’ मिजाज़ के.”
वासन बाला ये भी बताते हैं कि ‘देव डी’ असल में अभय देओल के ही दिमाग की उपज है. हुआ यूँ कि बातों बातों में अभय ने अनुराग को एक कांसेप्ट सुनाया कि कैसा हो अगर एक शराब में चूर, हारा हुआ प्रेमी स्ट्रिप क्लब में जाये, और वहां उसे फ़िर से प्यार हो जाये! अनुराग को कांसेप्ट पसंद आया. तब अभय ने तुरंत कहा कि ‘यही तो है आज की देवदास.’
और आगे जो हुआ, वो हम सब जानते हैं. ‘देव डी’ बनी एक कल्ट फ़िल्म और अनुराग जो अपना लोहा पहले भी मनवा चुके थे, उनके निर्देशन को एक नया मुकाम भी मिला.

वासन बाला एक क़िस्सा सुनाते हुए बताते हैं कि कैसे वो एक सीन के लिए वोदका की बोतल खाली कर उसमें पानी भरना भूल गए थे, और कैसे अभय ने सीन करते हुए वोदका मुँह में लेते ही झट से थूक दिया, पर उसके बाद भी उन्होंने कुछ नहीं कहा. ज़रा भी ‘ओवर-रियेक्ट’ नहीं किया. वो बात और थी कि वासन ख़ुद ‘क्राइम सीन’ से फ़रार हो चुके थे.
वासन का मानना है कि अभय बाकी अभिनेताओं से ही नहीं बल्कि अपने परिवार की विरासत से भी अलग हटकर काम कर रहे हैं. जहाँ सनी देओल बहुत सी फ़िल्मों में ‘बेताब’ के ‘सनी कपूर’ ही बने रहे, और बॉबी देओल ‘बरसात’ के ‘बादल’, वहीं अभय देओल कभी ‘प्रेमी’ बने ( सोचा न था), कभी चोर ( ओये लकी, लकी ओये), कभी भगोड़े ( रोड, मूवी), कभी सुपर-हीरो (हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड) और यहाँ तक आते आते वो अब सह-निर्माता भी बन गए हैं.
ख़बर है कि यूके के स्पेशल ट्रीट्स प्रोडक्शन के साथ मिलकर ‘बाउन्टी हंटर’ नाम की फ़िल्म उनके प्रोडक्शन कंपनी के बैनर तले बन रही है. इससे पहले भी ‘वन बाय टू’ जैसी रोमांटिक कॉमेडी में वो सह निर्माता रह चुके हैं, जिसमें वो ‘प्रीती देसाई’ के साथ अभिनय करते नज़र आए.
उनका अभिनय भी परिधानों की परतों से ज़्यादा किरदार की परतें ओढ़ता नज़र आता है.

राशी वर्मा जो फ़िल्मों में स्टाइलिस्ट हैं, बताती हैं कि जब 2014 में मिन्त्रा के दिनों में जब उन्होनें अभय देओल को पहली बार देखा तो उनकी सादगी और विनम्रता ने उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया था.
वो ये भी मानती हैं कि अभय फैशन के मामले में ‘लेड-बैक’ हैं, बेहद कैजुअल और स्मार्ट, जो उन्हें भारतीय फैशन के और करीब रखता है. वो कहती हैं कि फ़िल्मों में उनके परिधान कभी भी किरदार पर हावी नहीं होते.
अभय देओल को फ़िल्मफ़ेयर नॉमिनेशन ( बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर) के अलावा, बहुत ही कम नॉमिनेशन और अवॉर्ड मिले हैं ( बल्कि न के बराबर). और शायद उन्हें इसकी आशा भी नहीं है.
पर हो सकता है आने वाले समय में लियोनार्डो डिकैप्रियो की तरह ही उनके प्रशंसकों का इंतज़ार ख़त्म हो, और उनके कठिन, अप्रतिम अभिनय को सिर्फ़ सरहाया ही नहीं बल्कि नवाज़ा भी जाए.
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