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क्या आपने समझा पिज्जा का दूसरा बाजू?

दक्षा वैदकर पत्नी ने कहा- आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना. अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आयेगी. गणपति के लिए अपनी बेटी के यहां जा रही है. पति- ठीक है. पत्नी-पांच सौ रुपये दे दूं उसे? त्योहार का बोनस. पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे. पत्नी- […]

दक्षा वैदकर
पत्नी ने कहा- आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना. अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आयेगी. गणपति के लिए अपनी बेटी के यहां जा रही है. पति- ठीक है. पत्नी-पांच सौ रुपये दे दूं उसे? त्योहार का बोनस. पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे. पत्नी- अरे नहीं. गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहां जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा. महंगाई के दौर में उसकी पगार से त्योहार कैसे मनायेगी बेचारी. पति- तुम भी ना, जरूरत से ज्यादा भावुक हो जाती हो. पत्नी- चिंता मत करो. मैं आज का पिज्जा का कार्यक्रम कैंसिल कर देती हूं.
फालतू में पांच सौ रुपये उड़ जायेंगे. पति- वाह, हमारे मुंह से पिज्जा छीन कर बाई की थाली में? तीन दिन बाद पोंछा लगाती हुई बाई से पति ने पूछा- बाई, कैसी रही छुट्टी? बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब. दीदी ने पांच सौ रुपये दिये थे ना. सब दो दिन में खर्च कर दिये. पति- अच्छा. क्या किया उनका? बाई- नाती के लिए 150 रुपये का शर्ट, 40 रुपये की गुड़िया, बेटी को 50 रुपये के पेढे दिये, 50 रुपये के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रुपये किराये के लगे. 25 रुपये की चूड़ियां बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रुपये का बेल्ट लिया. बचे हुए 75 रुपये नाती को दे दिये कॉपी-पेंसिल खरीदने के लिए. पति- 500 रुपये में इतना कुछ?
वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा. उसकी आंखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा-सा पिज्जा घूमने लगा. अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्योहारी खर्च से करने लगा. आज तक उसने हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी, लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दी थी. पिज्जा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गये थे.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

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