
बौद्ध धर्मावलंबियों का तीर्थ माने जाने वाले बोधगया में विदेशी बौद्ध मठों पर निगरानी बढ़ा दी गई है. कारण है मठों के परिसर का व्यवसायिक इस्तेमाल और पर्यटकों का सही ब्यौरा नहीं रखना.
बीते कई साल से बोधगया होटल एसोसिएशन ये मसला उठाता रहा है कि विदेशी बौद्ध मठ अपने परिसर में अवैध तरीके से होटल और अतिथिशाला चला रहे हैं जिसका असर स्थानीय होटल कारोबारियों पर पड़ रहा है.
एसोसिएशन के महासचिव सुदामा प्रसाद कहते हैं, "नियमानुसार मठों को 10 कमरे बनाने की इजाज़त है लेकिन उन्होंने अपने यहां 300-400 कमरे बना लिए है जिनमें होटल, रिसार्ट जैसी सभी सुविधाएं हैं. ऐसे में पर्य़टक उनके मठों में ठहरते हैं और हमारा होटल कारोबार ठप हो रहा है."
होटल कारोबारियों की इस नाराज़गी पर बीती एक जुलाई को उच्च स्तरीय प्रशासनिक बैठक बुलाई गई. इसके बाद प्रशासन ने विदेशी मठों की जांच करवाई.

जांच में होटल एसोसिएशन के आरोपों को कुछ हद तक सही पाया गया.
गया के जिलाधिकारी कुमार रवि जो बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भी हैं.
वो बताते है, "अभी तक प्रशासन ने तीन मठों की जांच की है और वहां पर मठ के व्यवसायिक इस्तेमाल की बात को सही पाया है. साथ ही इन मठों में आने-जाने वालों का ब्यौरा भी नहीं रखा गया था."
उन्होंने कहा "इन मठों को नोटिस जारी किया गया है."
बौधगया में आधिकारिक तौर पर 55 बौद्ध मठ है. होटल एसोसिएशन के आंक़ड़ों के मुताबिक यहां 150 होटल, रिसार्ट और अतिथिशालाएं है.

सुदामा प्रसाद कहते है, "हम लोग सभी तरह के टैक्स चुकाते है वहीं धर्म की आड़ में ये मठ टैक्स से भी बच जाते है. हम लोग सवाल करते है तो कहते है दूतावास से बात कीजिए. उनको होटल चलाना है तो वो लाइसेंस लें."
मठ से जुड़े लोगों का कहना है कि कुछ लोगों की ग़लती के कारण सभी मठों को शक़ की नजर से न देखा जाए.
ज़िलाधिकारी कुमार रवि भी कहते हैं, "मठ प्रबंधकों के साथ भी हमने बैठक की. उन्होंने कहा कि जो मठ कानून के विरुद्ध काम कर रहे है, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई किए जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है."
ये पहली बार नहीं है जब बोधगया का होटल उद्योग ख़बरों में है. श्राद्ध कर्म के लिए प्रसिद्ध फल्गू नदी पर अतिक्रमण के आरोपों को लेकर पहले भी बोधगया की होटल इंडस्ट्री चर्चा में रह चुकी है.
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