दक्षा वैदकर
बात उन दिनों की है, जब साबरमती के आश्रम में गांधीजी रहते थे. वह हर काम समय से करते थे. आश्रम में रहने वाले व्यक्ति को समय की महत्ता का विशेष पाठ गांधीजी दिया करते थे.
वहां दोपहर और रात के भोजन के लिए दो घंटी बजायी जाती थी. उसी दौरान आकर भोजन करना अनिवार्य था. जो लोग दूसरी घंटी बजने पर भी नहीं पहुंच पाते थे, उन्हें भोजन के लिए फिर इंतजार करना होता था. एक दिन की बात है, दो घंटी बजने के बाद भी गांधीजी समय पर भोजन के लिए उपस्थित नहीं हो सके. दरअसल वो अपने लेखन कार्य में इतना तल्लीन थे कि उन्हें घंटी की आवाज का पता ही नहीं चला.
थोड़ी देर बाद जब वो आये तो आश्रम में पहली पंक्ति का भोजन शुरू हो चुका था. तब उन्हें दूसरी पंक्ति में बैठने के लिए लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ी. गांधीजी इस बात से परेशान नहीं हुए बल्कि सहजता से पंक्ति में खड़े हो गये. तभी लाइन में खड़ा एक व्यक्ति बोला, बापू आप तो स्वयं इस आश्रम के मुखिया हैं और आप ही पंक्ति में लग रहे हैं. तब गांधी जी बोले, बंधु नियम सभी के लिए होते हैं फिर चाहे वो नौकर हो या मालिक.
आज के समय में इस घटना से हम सभी को सीख लेने की जरूरत है, क्योंकि आज का समय ही कुछ ऐसा है कि लोग अमीर आदमी, बॉस, बड़े पद पर बैठे लोगों के साथ अलग व्यवहार करते हैं और गरीब, छोटे कर्मचारी के साथ अलग. यहां तक कि बॉस जिस गलती के लिए कर्मचारियों को डांटता है, सजा देता है, वही गलती खुद करता है, तो उसे उसमें कोई गलती ही नजर नहीं आती. खुद के लिए एक नियम और दूसरों के लिए दूसरा नियम, ऐसा करना ठीक नहीं. इससे आपकी छवि भी लोगों में खराब होती है. बेहतर है कि सजा सभी के लिए बराबर रखें.
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