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सीरिया के शरणार्थी : ‘बूढ़ों के शहर’ में घिसट रही जिंदगी
गृहयुद्ध से परेशान सीरिया के दो परिवारों को जब स्कॉटलैंड में रहने का अवसर मिला, तो वे खुशी-खुशी तैयार हो गये. उनके लिए यह लॉटरी लगने जैसा था. दोनों परिवारों को स्कॉटलैंड का मौसम सुहाना लगा. वहां के लोग मददगार लगे, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही उन्हें लगने लगा कि वे यहां बेगाने हैं. […]
गृहयुद्ध से परेशान सीरिया के दो परिवारों को जब स्कॉटलैंड में रहने का अवसर मिला, तो वे खुशी-खुशी तैयार हो गये. उनके लिए यह लॉटरी लगने जैसा था. दोनों परिवारों को स्कॉटलैंड का मौसम सुहाना लगा. वहां के लोग मददगार लगे, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही उन्हें लगने लगा कि वे यहां बेगाने हैं. उन्हें जानने वाला कोई नहीं है. संवाद को लेकर भी उन्हें समस्या हो रही थी. उन्हें अंगरेजी नहीं आती थी. सबसे चौंकाने वाली बात इन परिवारों को यह लगी कि जिस शहर में उन्हें रहने की अनुमति दी गयी है, वह बूढ़ों से भरा शहर है. ऐसा लग रहा है कि लोग यहां सिर्फ अपनी मौत कर इंतजार करने आते हैं.
यह दास्तां स्कॉटलैंड के ब्यूट के रोथसे की है. इस शहर में सीरिया से अपनी जान बचा कर आये दो परिवारों को रहने के लिए इंगलैंड के गृह मंत्रालय ने भेजा. स्कॉटलैंड आने पर सभी खुश थे. उन्हें लग रहा था कि सीरिया से अपनी जान बचा कर आने के बाद वह इस शांत देश में चैन से रहेंगे. अपनी रोजी कमायेंगे, लेकिन उनका यह सपना तुरंत ध्वस्त हो गया.
दोनों परिवारों में से एक के मुखिया 42 साल के अब्द ने बताया कि आने पर हम बहुत खुश थे. अब्द को पत्नी रशा और चार बच्चों के साथ स्कॉटलैंड भेजा गया है. अब्द ने बताया कि यहां के लोग अच्छे हैं. मौसम अच्छा है, लेकिन पिछले छह-सात माह से मैं एक ही जगह पर हूं. मैं यहां बोर नहीं हो रहा हूं, मैं डिप्रेशन में हूं. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि यहां मेरे पास सिर्फ एक ऑप्शन है और वह है मरने का.
इस इलाके में गृह मंत्रालय की ‘सीरियन वलनरेबल पर्सन रिसेटलमेंट’ स्कीम के तहत इन परिवारों को यहां भेजा गया है. इन शरणार्थियों को पांच साल के लिए यहां रहने की इजाजत दी गयी है. इस स्कीम के तहत स्कॉटलैंड के एर्गाल और ब्यूट काउंसिल को सौ सीरियन शरणार्थी दिये गये हैं.
अब्द काम के सिलसिले में अक्सर ग्लास्गो जाते हैं. वह कहते हैं कि उन्हें यहां आने की उम्मीद नहीं थी. उन्हें लग रहा था कि वह लंदन या मैनचेस्टर जा रहे हैं. अब्द के अनुसार, अधिकारियों ने कहा कि उनलोगों को इस शहर में लाने के बहुत पैसे खर्च करने पड़े हैं. स्कॉटलैंड के इस शहर में रहते हुए अब्द खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं. वह यहां इसलिए नहीं आया था कि कोई उस पर शासन करे. वह अपने देश के हिंसक माहौल से भाग कर एक अच्छे भविष्य की कल्पना के साथ इस देश में आये थे.
रशा की बहन फातिम भी अपने पति हसन के साथ यहां आयी है. उन्हें दो बेटियां हैं. रशा भी कहती हैं कि यह शहर सिर्फ बूढ़े लोगों से भरा पड़ा है. दोनों परिवार बताते हैं कि ग्लासगो या मैनचेस्टर जाने की बात से वह खुश थे. अब्द कहते हैं कि अगर हम वैसी जगह जाते, जहां अरबी बोलने वालों की संख्या ज्यादा होती तो हमें अंगरेजी सीखने में आसानी होती. इसके बाद हमें काम भी मिल जाता.
ब्यूट अनोखा जगह है, लेकिन यहां के लोगों के पास काम नहीं है. इस शहर का 15 प्रतिशत इलाका किसी काम का नहीं है. अब्द ने बताया कि चार साल पहले यूएन डेटाबेस से जब उसे शरणार्थी के रूप में रजिस्टर किया था, तब ऐसा सोचा था कि हम ऐसी जगह जा रहे हैं जहां सऊदी के लोग मिलेंगे. वह उनसे बात करेगा, उनसे अंगरेजी सीखेगा. कोई अच्छी-सी नौकरी मिलेगी, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं था.
अब्द और हसन को अपने शहर बाबाअमर में कैद कर लिया गया था, जो अब बमबारी से नेस्तनाबूद हो चुका है. इन्होंने अपनी आजादी की भारी कीमत चुकायी है. रशा ने बताया कि अपना देश छोड़ना सबसे कठिन है, लेकिन हमे छोड़ना पड़ा, क्योंकि हमारे पास कोई और रास्ता नहीं था.
रशा और उसके परिवार के लोगों को एक गाड़ी में छिप कर भागना पड़ा था, जिसमें सब्जी और फल लदा हुआ था. वहां न पानी था न बिजली थी और न ही खाना था. बस हेलिकॉप्टर और हवाई जहाज दिखाई देते थे, जो बम बरसाते थे. उस दृश्य को वह अब तक भूल नहीं पाये हैं.
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