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इस बार संसद का मॉनसून सत्र कई वजहों से काफी महत्वपूर्ण है. पिछले साल का मॉनसून सत्र विवादों और हंगामे में धुल गया था.
इसको दो तरह से देखा जाना चाहिए. एक तो जो राजनीतिक मसले हैं, यानी पूरी राजनीति जिनके इर्द-गिर्द रहेगी. ये देखना दिलचस्प होगा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों की राजनीति किस प्रकार से संसद में नज़र आती है.
दूसरा ये है कि जो संसदीय कार्य हैं, ख़ासतौर पर विधेयकों का पारित होना, जो प्रशासनिक व्यवस्था और राज व्यवस्था के लिए ज़रूरी हैं, वो हो पाएगा या नहीं.
राजनीति के लिहाज़ से देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी की फिलहाल अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में जो वापसी हुई है उससे उसमें काफी उत्साह है.
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उन दोनों राज्यों में कांग्रेस सरकारों की वापसी होने के साथ-साथ राज्यपालों की भूमिका, केंद्र सरकार के हस्तक्षेप और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लेकर भाजपा सरकार को काफी फजीहत का सामना करना पड़ रहा है.
दोनों सदनों में किसी ना किसी रूप में ये बात ज़रूर उठेगी. कांग्रेस पार्टी इसके राजनीतिक निहितार्थ को देश की जनता के सामने रखना चाहेगी.
दूसरा ये है कि समान नागरिक संहिता को लेकर केंद्र सरकार कुछ पहल कर रही है.
सायरा बानो का जो तीन तलाक वाला मामला था, उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कुछ सवाल किए हैं.
तीसरा मसला भारत प्रशासित कश्मीर में चल रहे घटनाक्रम का है. कांग्रेस पार्टी, भाजपा की गलतियों को उभारना ज़रूर चाहेगी.
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एक और मसला जो उठेगा, वो है एनएसजी में इस बार भारत को सदस्यता नहीं मिल पाना.
एनएसजी को लेकर जो ‘हाइप’ हुआ था, उसको लेकर कांग्रेस, भाजपा सरकार की आलोचना ज़रूर करेगी.
एक-दो और मसले हैं. टेलीकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी को लेकर भी सरकार को घेरा जा सकता है.
करीब 11 विधेयक लोकसभा में और 43 राज्यसभा में पहले से पड़े हुए हैं, यानी बहुत समय से चीज़ें अधूरी पड़ी हुई हैं.
फिलहाल मोटे तौर पर 9 विधेयकों को पारित करने का काम सरकार के पास है जिसमें से ख़ासतौर से छह को पेश करने और उनको पास कराने की ज़रूरत सरकार महसूस करती है.
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इनमें सबसे महत्वपूर्ण विधेयक है जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स विधेयक.
एक लंबे अर्से से इस पर राजनीति चल रही है और कांग्रेस पार्टी ने इसको पास नहीं होने दिया है.
लोकसभा से तो ये पास हो गया है, राज्यसभा में उसे पेश करने में ही दिक्कतें पेश आती रही हैं.
इसके अलावा इस सत्र में व्हिसिल ब्लोवर प्रोटेक्शन महत्वपूर्ण है, इसके तहत भारत सरकार चाहती है कि लोकहित के लिए महत्वपूर्ण जानकारी को सार्वजनिक तौर पर देने वाले लोगों को किस प्रकार से संरक्षण दिया जाए.
इसको अगर पास किया गया या पेश किया गया तो इस पर देश की निगाहें होंगी.
एक डेट रिकवरी संशोधन विधेयक भी है, यानी कर्ज़ की रकम को कैसे वापस लिया जाए.
देश में कुछ समय से बैंकों और तमाम ऐसी वित्तीय संस्थाओं के काफी पैसे अटके पड़े हैं.
लोकसभा में सरकार की अच्छी-ख़ासी बहुमत है, लेकिन 245 सदस्यों की राज्यसभा में जो क्षेत्रीय दल हैं वो एक बैलेंसिंग भूमिका में आ गए हैं.
उनकी अलग अलग मसलों पर क्या भूमिका रहती है, ये इस सत्र के दौरान पता चलेगा.
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सवाल उठ रहा है कि राज्यों के जिस को-ऑपरेटिव फेडरलिज्म (सहकारी संघवाद) की बात सरकार कह रही है, उसमें कैसे मामले चलेंगे?
जो क्षेत्रीय दल हैं वो केंद्र सरकार के साथ किस प्रकार के रिश्ते रखेंगे?
ख़ासतौर पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐसे सवाल उठाए हैं.
(बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत पर आधारित)
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