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मन की आंखों से सुर की रोशनी फैला रही हैं शालू अरोड़ा
गौतम राणा क हते हैं कि मंजिल वही पाते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों में उड़ान होती है. इस कहावत को चरितार्थ किया है नेत्रहीन शालू अरोड़ा ने. कोडरमा जिला मुख्यालय स्थित बिजली आॅफिस निवासी करतार सिंह अरोड़ा की पुत्री शालू (32) जन्म से नेत्रहीन हैं. आंखें […]
गौतम राणा
क हते हैं कि मंजिल वही पाते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों में उड़ान होती है. इस कहावत को चरितार्थ किया है नेत्रहीन शालू अरोड़ा ने. कोडरमा जिला मुख्यालय स्थित बिजली आॅफिस निवासी करतार सिंह अरोड़ा की पुत्री शालू (32) जन्म से नेत्रहीन हैं. आंखें भले न हों, लेकिन गाती ऐसा हैं कि लोग उन्हें कोडरमा की लता मंगेशकर कहते हैं. संगीत और तबला वादन की शिक्षा देकर सैकड़ों बच्चों की जिंदगी में रोशनी भी भर रही हैं. उनके संगीत का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है. जिले में प्रशासनिक आयोजन हो या निजी, शालू के बिना पूरा नहीं होता. चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी शालू के मन में तब गानेकी इच्छा जगी, जब वह आठ साल की उम्र में जब अपनी बहनों के साथ पहली बार स्कूल गयी. मौका मिला, तो भक्ति गीत गाकर सबका मन मोह लिया. फिर वर्ष 1996 में झुमरीतिलैया के पूर्णिमा टाॅकीज में एक गीत गाकर प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया.
शालू कहती हैं, ‘उस दिन दर्शकों के द्वारा मेरे लिए बजायी गयी तालियों की आवाज आज भी सुनाई देती है. पहले तो अपने भविष्य को लेकर काफी चिंतित रहती थी. लेकिन, कार्यक्रमों के दौरान लोगों से मिले स्नेह और समर्थन ने जीने और कुछ कर गुजरने का जज्बा भर दिया. उसके बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.’
वर्ष 1996 से लेकर अब तक शालू को वो सब मिला, जिसकी ख्वाहिश किसी कलाकार को होती है. फिर भी सच्चाई है कि तालियों, दर्शकों/श्रोताओं के प्यार से पेट की आग नहीं बुझती. शालू की शिकायत झारखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन से है. वह सरकारी स्कूल में संगीत की शिक्षिका बनना चाहती है. शालू में शिक्षक बनने की योग्यता है. उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक और चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी से एमएड (शास्त्रीय संगीत) तथा दो वर्ष का तबला वादन का कोर्स भी किया है. अभी वह झुमरीतिलैया के इंडियन पब्लिक स्कूल, सेक्रेड हार्ट, ग्रिजली विद्यालय समेत कई निजी स्कूलों में संगीत सिखा रही हैं. अपने घर पर भी दर्जनों लोगों को संगीत की शिक्षा दे रही हैं.
अब तक दर्जनों पुरस्कार पा चुकीं शालू का वर्ष 2009 में सोनी टीवी के ‘इंडियन आइडियल’ में सेलेक्शन हुआ था, लेकिन पैसे के अभाव में वह सेकेंड राउंड में शामिल न हो पायीं. झारखंड राज्य स्थापना दिवस पर रांची में आयोजित कार्यक्रम में तीन बार प्रस्तुति दी और सम्मानित हुईं. जिला स्तर पर स्वर संगम म्युजिकल ग्रुप के कार्यक्रमों में भी अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेर चुकी हैं. वह एक बार मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिलना चाहती हैं. शालू को भरोसा है कि उनकी काबलियत और जरूरत को देखते हुए सीएम जरूर उनकी शिक्षिका बनने की तमन्ना पूरी करेंगे. शालू की मां कहती हैं कि शुरू में उसके लालन-पालन की चिंता थी. ताने भी सुनने को मिले, लेकिन अपने निरंतर प्रयास से शालू आज अपने पैरों पर खड़ी है. पुरानी कार के किराये से किसी तरह परिवार का गुजारा होता है.
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