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अमेरिकी सांसदों ने मांगी भारत को अमेरिकी उपग्रह निर्यात करने के संबंध में जानकारी

वॉशिंगटन : अमेरिका के दो प्रभावशाली सांसदों ने ओबामा प्रशासन से उस नीति के बारे में बताने के लिए कहा है जिसके तहत देश में भारतीय अंतरिक्ष वाहनों के जरिये व्यावसायिक उपग्रहों के प्रक्षेपण की अनुमति है. गौरतलब है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो सप्ताह पहले ही 20 उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए […]

वॉशिंगटन : अमेरिका के दो प्रभावशाली सांसदों ने ओबामा प्रशासन से उस नीति के बारे में बताने के लिए कहा है जिसके तहत देश में भारतीय अंतरिक्ष वाहनों के जरिये व्यावसायिक उपग्रहों के प्रक्षेपण की अनुमति है. गौरतलब है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो सप्ताह पहले ही 20 उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए हैं.

इनमें से 13 उपग्रह अमेरिका से हैं. प्रशासन को लिखे पत्रों में दोनों सांसदों, लामार स्मिथ और ब्रायन बाबिन ने भारतीय प्रक्षेपक वाहनों से प्रक्षेपण के लिए वाणिज्यिक उपग्रहों के निर्यात की अनुमति देने वाली वर्तमान अमेरिकी नीति के बारे में जानकारी मांगी है.
स्मिथ विज्ञान, अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकी समिति के अध्यक्ष और बाबिन अंतरिक्ष उपसमिति के अध्यक्ष हैं. चारों पत्र अंतरिक्ष एवं विज्ञान नीति कार्यालय के निदेशक जॉन होल्ड्रेन, विदेश मंत्री जॉन केरी, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि माइकल फ्रोमेन को तथा वाणिज्य मंत्री पेनी प्रिट्जकर के पास भेजे गए हैं.
सदन की विज्ञान, अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकी मामलों की समिति ने एक बयान में कहा है कि यह घटनाक्रम भारत की प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था :एमटीसीआर: की हालिया सदस्यता के बाद का है तथा नीति को लागू करने के लिए वैधानिक प्राधिकार एवं प्रशासनिक प्रक्रिया को लेकर विरोधाभासी खबरें भी हैं.
दोनों सांसदों के पत्रों में कहा गया है ‘‘23 अक्तूबर 2015 को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) के कार्यालय के अंतर्गत आने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं विकास कार्यालय के एक अधिकारी को यह कहते हुए बताया गया है कि वाणिज्यिक प्रक्षेपण सेवाओं के लिए अमेरिकी कंपनियों की मांग के चलते कार्यालय ने उस नीति की समीक्षा शुरु की है जो 2005 से लागू है. निर्यात नियंत्रण लाइसेंस के जरिये कार्यान्यवित होने वाली यह नीति भारतीय प्रक्षेपण कंपनियों से प्रक्षेपण सेवाओं की खरीद से अमेरिकी व्यावसायिक उपग्रह ऑपरेटरों को हतोत्साहित करती है.”
पत्रों में आगे कहा गया है ‘‘एक अन्य लेख में एक औद्योगिक सूत्र ने कहा है कि असली कमी सरकार की ओर से है. एक ओर तो आपके पास नीति है जिसमें इसके लिए कोई एजेंसी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती लेकिन फिर भी, नीति है. दूसरी ओर, सरकारी एजेंसियां बडी छूट पाने वालों के आगे बेबस हैं.
समिति की दिलचस्पी इस नीति को समझने में है.” इन पत्रों में, लागू प्रशासनिक नीति की भारतीय प्रक्षेपण सेवाओं तक पहुंच के बारे में लिखित प्रति का अनुरोध किया गया है. यह स्पष्टीकरण मांगा गया है कि यह नीतिक कब और कैसे लागू की गई। उन लाइसेंसों की भी एक प्रति मांगी गई है जिनमें अमेरिका की उपग्रह प्रणाली का भारतीय प्रक्षेपक वाहनों से प्रक्षेपण करने का अधिकार दिया गया है. इनसे संबद्ध रेकार्ड भी मांगे गए हैं.
भारत ने 22 जून को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में कीर्तिमान स्थापित करते हुए एक ही मिशन में 17 विदेशी और एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह समेत 20 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था. तब कहा गया था कि यह महत्वपूर्ण कदम अरबों डॉलर के अंतरिक्ष प्रक्षेपण बाजार में भारत की प्रमुखता बढाएगा.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसलएवी-सी34) ने चेन्नई से करीब 110 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर दूसरे लांचपैड से उडान भरी और इसने नयी पीढी के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (कार्टोसैट-2 सीरीज) और 19 अन्य उपग्रहों को ‘सन सिंक्रोनस ऑर्बिट’ (एसएसओ) या सूर्य स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया. प्रक्षेपित किये गये उपग्रहों में से 13 अमेरिका के थे जिनमें 12 प्लेनेट लैब्स संस्थान के अर्थ इमेजिंग डव उपग्रह थे.
इनमें से प्रत्येक का वजन केवल 4.7 किलोग्राम था और 110 किलोग्राम वजनी अर्थ इमेजिंग उपग्रह स्काईसैट जेन-2 भी था जिसका निर्माण गूगल के स्वामित्व वाली कंपनी ने किया था। इनमें से दो उपग्रह कनाडा के और एक-एक जर्मनी तथा इंडोनेशिया के थे.

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