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आध्यात्मिक त्योहार है ईद
डॉ हसन रजा इसलाम में मुख्यत: दो त्योहार हैं. एक को ईद-उल-फित्र और दूसरे को ईद-उल-अजहा कहते हैं. आम जबान में पहले को ईद और दूसरे को बकरीद भी कहते हैं. ईद का त्योहार रमजान के एक महीना रोजा के बाद मनाया जाता है, इसलिए लोग समझते हैं कि एक महीना रोजा जैसी कड़ी उपासना […]
डॉ हसन रजा
इसलाम में मुख्यत: दो त्योहार हैं. एक को ईद-उल-फित्र और दूसरे को ईद-उल-अजहा कहते हैं. आम जबान में पहले को ईद और दूसरे को बकरीद भी कहते हैं. ईद का त्योहार रमजान के एक महीना रोजा के बाद मनाया जाता है, इसलिए लोग समझते हैं कि एक महीना रोजा जैसी कड़ी उपासना और तपस्या के बाद ईद पुण्य कमाने की खुशी के रूप में मनाया जाता है.
अंशत: यह बात सही है, परंतु पूर्ण रूप से यह बात काफी नहीं है. इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि रमजान का महीना क्या है, रोजा इसी महीने में क्यों रखा जाता है और रोजा जिसको अरबी में स्याम कहते हैं, वह क्या है? तब आसानी से समझा जा सकता है कि ईद क्या है और इसको किस तरह मनाया जाता है?
वह महीना जिसमें कुरआन अवतरित हुआ
रमजान का महीना कुरआन के अनुसार वह महीना है, जिसमें कुरआन अवतरित हुआ है. कुरआन ही नहीं बल्कि सभी धार्मिक पुस्तकें अवतरित हुई हैं. तारीख बताती है कि कुरआन की पहली पंक्तियां रमजान के महीने में उतरीं जब ही मुहम्मद(स) गारे हिरा में तपस्या कर रहे थे, वह आयत यह है- “पढ़ अल्लाह के नाम से जिसने सृष्टि का निर्माण किया और मनुष्य बनाया खून के लोथड़े से- पढ़ अपने पालनहार के नाम से जिसने इंसान को श्रेष्ठ किया और उसको कलम से विद्या दी.”(सूरे अलक) अर्थात रमजान कुरआन के अवतरित होने का महीना है.
कुरआन के अनुसार ढलने की तैयारी का नाम है रोजा : इस रोजे का दो मकसद बताया- (1) तकवा – अर्थात पाप से बच-बच कर चलना, कुरआन को ग्रहण करने की क्षमता पैदा करना, दुनिया में सच्चाई के मार्ग पर संभल-संभल कर चलने की ताकत प्राप्त करना. (2) शुक्र कि उसने जीवन व्यवस्था और मार्गदर्शन के रूप में कुरआन दिया, ताकि कुरआन की सीख सिर्फ पुस्तक में ही न रह जाय, बल्कि मुसलिम समुदाय के आचरण का हिस्सा बने.
अपनी हर तरह की भूख पर नियंत्रण किये बिना कुरआन के मार्ग पर नहीं चला जा सकता है, इसलिए रोजा फर्ज किया गया. अरब अपने घोड़े और ऊंट को जवान होनेे के बाद भूखा-प्यासा रख कर उसको बड़े काम के लिए तैयार करते थे, तो उसके लिए अरबी में स्याम शब्द का प्रयोग करते थे. अर्थात मुसलिम समुदाय को कुरआन के अनुसार ढलने की तैयारी का नाम रोजा है और रमजान का महीना उसमें ढलने की तैयारी का नाम है. इस महीने में मुसलिम दिन में रोजा रखते हैं और रात में तरावीह की नमाज में कुरआन सुनते हैं. एक महीने में पूरा कुरआन सुन लेते हैं और रमजान का महीना जश्न-ए-कुरआन का महीना बन जाता है.
अगर बढ़ी हुई भूख मिट जाये
दुनिया में अगर इंसानों की बढ़ी हुई भूख मिट जाये और अपनी बड़ाई को खुदा के आगे समर्पित कर दें तो दुनिया में बराबरी और इंसाफ कायम हो जाये- यही दो चीजें (1) बढ़ी हुई भूख (2) और अहंंकार खत्म हो जाये तो इंसानियत की ईद हो जाये. ईद कुरआनी मिशन का त्योहार है. यह खुशी खुदा और बंदे के दरम्यान एक सच्चा रिश्ता कायम होनेे की खुशी है.
(लेखक इसलामी एकेडमी, दिल्ली के चेयरमैन हैं और पेेश-ए-रफ्त मासिक पत्रिका के संपादक हैं. )
ईद के रूप में दोहरी खुशी मनाते हैं
ईद के रूप में दोहरी खुशी मनाते हैं, कि उसने उन्हें कुरआन जैसी पुस्तक दी, जो इससे पहले सारी धार्मिक पुस्तकों की पुष्टि करती है- और ब्रह्म की आखिरी वाणी है. साथ-साथ उस पुस्तक पर चलने की क्षमता और नैतिक गुणों को अपनाने की शक्ति के लिए रोजा(स्याम) रखने का मौका भी दिया. इसी जजबा-ए-शुक्र(कृतज्ञता) की खुशी का नाम ईद है. इसीलिए मुसलिम समुदाय ईद के दिन मैदान या मसजिद में जाकर दो रिकत नमाज-ए-शुक्र पढ़ते हैं.
कोई इस खुशी से महरूम न हो इसलिए सदका-ए-फित्र देेते हैं. और एक मंत्र पढ़ते रहते हैं कि बड़ाई-प्रशंसा और शुक्र केवल प्रभु और अल्लाह के लिए हैं. अल्लाह अकबर अल्लाह लाईलाहै इललाह व लिला हिल हम्द.
हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
नजीर अकबराबादी
है आबिदों को त’अत-ओ-तजरीद की खुशी
और जाहिदों को जुहाद की तमहीद की खुशी
रिन्द आशिकों को है कई उम्मीद की खुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की खुशी
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
पिछले पहर से उठ के नहाने की धूम है
शीर-ओ-शकर सेवईयां पकाने की धूम है
पीर-ओ-जवान को नेम’ तें खाने की धूम है
लड़कों को ईदगाह के जाने की धूम है
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
कोई तो मस्त फिरता है जाम-ए-शराब से
कोई पुकारता है कि छूटे अजाब से
कल्ला किसी का फूला है लड्डू की चाब से
चटकारें जी में भरते हैं नान-ओ-कबाब से
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
क्या है मुआन्के की मची है उलट-पलट
मिलते हैं दौड़-दौड़ के बाहम झपट-झपट
फिरते हैं दिलबरों के भी गलियों में गट के गट
आशिक मजे उड़ाते हैं हर दम लिपट-लिपट
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
काजल हिना गजब मसी-ओ-पान की धड़ी
पिशवाजें सुर्ख सौसनी लाही की फुलझड़ी
कुर्ती कभी दिखा कभी अंगिया कसी कड़ी
कह ‘ईद-ईद’ लूटें हैं दिल को घड़ी-घड़ी
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
रोजे की खुश्कियों से जो हैं जर्द-जर्द गाल
खुश हो गये वो देखते ही ईद का हिलाल
पोशाकें तन में जर्द, सुनहरी सफेद लाल
दिल क्या कि हंस रहा है पड़ा तन का बाल-बाल
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
जो-जो कि उन के हुस्न की रखते हैं दिल से चाह
जाते हैं उन के साथ ताबा-ईदगाह
तोपों के शोर और दोगानों की रस्म-ओ-राह
मयाने, खिलौने, सैर, मजे, ऐश, वाह-वाह
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
रोजों की सख्तियों में न होते अगर अमीर
तो ऐसी ईद की न खुशी होती दिल-पजीर
सब शाद हैं गदा से लगा शाह ता वजीर
देखा जो हम ने खूब तो सच है मियां ‘नजीर‘
ऐसी न शब-ए-बरात न बकरीद की खुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
चराग दिल के जलाओ कि ईद का दिन है
कतील
चराग दिल के जलाओ कि ईद का दिन है
तराने झूम के गाओ कि ईद का दिन है
गमों को दिल से भुलाओ कि ईद का दिन है
खुशी से बज्म सजाओ कि ईद का दिन है
हुजूर उसकी करो अब सलामती की दुआ
सर-ए-नमाज झुकाओ कि ईद का दिन है
सभी मुराद हो पूरी हर एक सवाली की
दुआ को हाथ उठाओ कि ईद का दिन है
ईद का संदेश
मुसलमान वह है, जिसे दूसरों की फिक्र तड़पाती है
ईद हमें याद दिलाती है कि जिस खुशी में पूरे समाज को शामिल न किया जाये, वह सच्ची खुशी नहीं है़ एक आदमी के घर में खुशी का दीया जले और पड़ोस के घर में गम का अंधेरा हो, तो इससे बढ़ कर नामुबारक खुशी नहीं हो सकती़ वह खुशी नाकाम है जो अपने घर तक सीमित रहे और जिसमें गरीब पड़ोसियों को सम्मिलित न किया जाये़
यदि हमारी बहन-बेटियां महंगे व कीमती कपड़ों में हों और गरीब की बेटी के सर में दुपट्टा भी न हो, हमारे बच्चे अच्छे व स्वादिष्ट भोजन कर रहे हों और मुहल्ला के किसी बच्चे को रोटी का टुकड़ा भी नसीब न हो या हम ईद के दिन आपस में गले मिल मिल कर खुशी प्रकट कर रहे हों, वहीं हमारे मोहल्ले के गरीब भूख व बीमारी की वजह से मौत गले लग रही हों, तो इसको सही ईद नहीं समझा जा सकता है.
इसलाम की शिक्षा है कि उसके मानने वाले अपनी खुशी में समाज के गरीबों को भी शामिल करेे़ं मुसलमान वह है जिसे दूसरों की फिक्र तड़पाती है और परेशानी बेकरार कर देती है़ जिसके लिए दूसरों का गम अपना गम बन जाता है़ ईद यही पैगाम देती है कि काश हम इसे अपने दिल में जगह दे सके़
देखा जाता है कि खुशी के अवसर पर लोगों में घमंड आ जाता है, लेकिन ईद हो या खुशी का कोई और अवसर, इसलाम अपने मानने वालों को इतराने से मना करता है़ घमंड की गरदन ऊंची न हो, बल्कि अल्लाह के सामने झुकी रहे़मुफ्ती मुहम्मद अनवर कासमी, काजी शरीयत, दारूल कजा इमारत शरिया रांची
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