दक्षा वैदकर
एक कहानी व्हॉट्सएप्प पर आयी, आप भी पढ़ें- जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गये. 2-3 नौकरियां छोड़ते हुए एक तय हुई. फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक. वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल. 2-3 वर्ष और निकल गये.
उम्र 25 हो गयी और शादी हो गयी. शुरू के 1-2 साल हाथों में हाथ डाल कर घूमना फिरना, रंग-बिरंगे सपने. लेकिन, ये दिन जल्दी उड़ गये. बच्चा हुआ और सारा ध्यान बच्चे पर केंद्रित हो गया. इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, घूमना-फिरना बंद हो गया, पता नहीं चला. घर और गाड़ी की किस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, बैंक में शून्य बढ़ाने की चिंता. दोनों ही 40-42 के हो गये.
एक दिन मैंने उस से कहा ‘चलो हाथ में हाथ डाल कर कहीं घूम आते हैं’. उसने कहा ‘यहां ढेर सारा काम पड़ा है, तुम्हें बातों की सूझ रही है’. फिर आया 45वां साल. बेटा पढ़ाई कर विदेश चला गया. हम दोनों 60 की ओर बढ़ने लगे. एक दिन यूं ही सोफे पर बैठा था. तभी बेटे का फोन आया. बोला, उसने शादी कर ली और अब परदेस में ही रहेगा. मैं पुन: सोफे पर आकर बैठ गया.
मैंने आवाज दी ‘चलो आज फिर हाथों में हाथ ले के बात करते हैं’. वो बोली ‘अभी आयी’. मेरा चेहरा खुशी से चमक उठा, लेकिन तभी आंखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया. वह पास आ कर बैठी. उसने देखा, मेरा शरीर ठंडा पड़ चुका था. मेरा सिर उसके कंधों पर गिर गया. ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था. क्या यही जिंदगी है? नहीं?
सब अपना नसीब साथ ले कर आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो. जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो. शुरुआत आज से करो, क्योंकि कल कभी नहीं आयेगा.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in