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उत्तर प्रदेश: राजपूत वोट पर किसका कब्जा?

बद्री नारायण समाजशास्त्री, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए ऐसा माना जा रहा है कि अगले साल उत्तर प्रदेश के चुनाव में जातीय गोलबंदी की बड़ी भूमिका रहेगी. विकास, सुशासन, कानून व्यवस्था जैसे नारों के पीछे चुनाव में जातीय प्रतिनिधित्व के माध्यम से जातियों को जोड़ने का खेल चलता रहेगा. ऐसे में राजनीतिक दलों और विश्लेषकों […]

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ऐसा माना जा रहा है कि अगले साल उत्तर प्रदेश के चुनाव में जातीय गोलबंदी की बड़ी भूमिका रहेगी.

विकास, सुशासन, कानून व्यवस्था जैसे नारों के पीछे चुनाव में जातीय प्रतिनिधित्व के माध्यम से जातियों को जोड़ने का खेल चलता रहेगा.

ऐसे में राजनीतिक दलों और विश्लेषकों का ध्यान चुनाव में राजपूत मतों की भूमिका पर भी है.

उत्तर प्रदेश में राजपूत आठ फ़ीसदी के आस-पास है. उत्तर प्रदेश में संख्या के हिसाब से यह बड़ी जाति नहीं है लेकिन राजनीतिक रुप से 90 के दशक तक बहुत महत्वपूर्ण रही है.

वीर बहादुर सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश एवं केंद्र की राजनीति में प्रभावी रहे हैं.

इसका मुख्य कारण है कि राजपूत सामाजिक रूप से दबदबे वाले, ग्रामीण उच्च वर्ग के प्रतिनिधि, लाठी से मज़बूत एवं ओपिनियन बनाने वाले माने जाते हैं.

चुनावों में लाठी से मज़बूत होने के कारण बूथ मैनेजमेंट में यह प्रभावी जाति मानी जाती रही है. इसीलिए पार्टियों के प्रभावी राजनीतिक नेतृत्व के रूप में यह जाति छाई रही है.

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बाद में यादव, कुर्मी, चमार जैसी बड़ी संख्या वाली जातियां जब धन, लाठी और बोली से सशक्त होकर चुनावी राजनीति में प्रभावी हुईं तो राजपूत जाति का महत्व थोड़ा कम हो गया.

नेतृत्व के स्तर पर सवर्ण प्रभाव वाली कांग्रेस के कमजोर होने पर दूसरी सवर्ण प्रभाव वाली पार्टी भाजपा में इसके कई नेता महत्वपूर्ण पदों पर हैं.

उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीति में राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, संगीत सोम वगैरह अनेक राजपूत चेहरे हैं.

उधर समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की फिर से वापसी हुई है. राजाभैया समाजवादी पार्टी के प्रभावी राजपूत चेहरा हैं.

ऐसे में राजपूत मतों का विभाजन समाजवादी पार्टी और भाजपा में हो सकता है.

समाजवादी पार्टी में राजपूत मतों के एक हिस्से का जाना भी इस बात पर निर्भर करता है कि ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद अमर सिंह और राजा भैया कितनी चुनावी सभाएं कर पाते हैं.

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राजनाथ सिंह अगर उत्तर प्रदेश के चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होते हैं तो राजपूत बड़ी संख्या में भाजपा की ओर जा सकते हैं.

अगर उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया, तो राजपूत मत वहाँ जाएंगे जहां उनकी जाति का उम्मीदवार जीतने की स्थिति में होगा, फिर वो चाहे किसी भी दल का हो.

पहले की ही तरह, वोट देते वक्त पार्टी से ज्यादा जाति देखी जाएगी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह और संगीत सोम सक्रिय होंगे और पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह के साथ-साथ योगी आदित्यनाथ के कारण राजपूत जाति का वोट भाजपा से जुड़ सकता है.

अमर सिंह एवं राजा भैया के कारण सामाजवादी पार्टी के पक्ष में सेंट्रल उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वाचंल के कई हिस्सों में राजपूत आएंगे.

अमर सिंह मीडिया को अपनी ओर खींचते हैं, ऐसे में वे न केवल उपरोक्त क्षेत्रों में बल्कि दूसरे इलाकों के राजपूतों के एक हिस्से को भी आकर्षित कर पाएंगे.

बुंदेलखंड में कांग्रेस के नेतृत्व में भी अनेक राजपूत नेता हैं. इसलिए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भी बुंदेलखंड में राजपूत मतों में अपनी हिस्सेदारी ले पाएगी.

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बुंदेलखंड में राजपूत सामाजिक रुप से दबदबे वाली जाति है. इसलिए वे चुनाव को अपने ढंग से प्रभावित करेंगे.

सेंट्रल यूपी में भी राजपूतों का एक हिस्सा कांग्रेस की ओर झुका रहेगा. खास तौर पर रायबरेली, अमेठी, लखनऊ जैसे क्षेत्रों में.

राजपूत जाति का उत्तर प्रदेश की राजनीति में अभी भी प्रभाव बचा हुआ है. सामाजिक रुप से ये प्रभाव घटने के बावजूद, कई क्षेत्रों में ये अब भी कायम है.

खेती, नौकरी-पेशा और ठेकेदारी जैसे कामों में प्रभावी होने के कारण वे चुनावी मतों की गोलबंदी में आकर्षण एवं विकर्षण दोनों पैदा करते हैं.

उनके प्रभाव के कारण कई बार दूसरी जातियों के मत भी उनके साथ और उनके राजनीतिक दलों की ओर झुकते हैं.

कई बार इनके दबदबे से दुखी दूसरी जातियों का मत भी, उनकी उपस्थिति के कारण, उनकी पार्टियों के विरुद्ध जाता है.

यह भी देखना होगा कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी राजपूत मतों को मोहने के लिए क्या रणनीति अपनाती है?

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