
गुलबर्ग हत्याकांड में 14 साल की लंबी सुनवाई के बाद फैसला तो आया लेकिन फैसले की कई गुत्थियां अभी अनसुलझी हैं.
यही कारण है कि दंगों की जांच करने वाले विशेष जांच दल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं.
विशेष अदालत के 600 पन्नों के फैसले में मोबाइल फोन रिकॉर्ड वाली उस सीडी का कोई जिक्र नहीं है जिसे गुजरात के एक पूर्व आईपीएस अफसर ने तैयार किया था.
इस सीडी में 28 फरवरी, 2002 के दिन के मोबाइल फोन रिकॉर्ड थे. इसी दिन अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड में पूर्व कांग्रेस सांसद अहसान जाफ़री समेत 69 लोग मारे गए थे.
गुजरात के मानव अधिकार कार्यकर्ता और दंगा पीड़ितों की आवाज़ उठाने वाले शमशाद पठान का दावा है कि सीडी में कथित तौर से मौजूदा प्रधानमंत्री और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई भाजपा नेताओं से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां थीं जो जांच दल ने अदालत के सामने नहीं रखीं.

अहमदाबाद पुलिस कंट्रोल रूम के डिप्टी पुलिस कमिशनर राहुल शर्मा ने 28 फरवरी 2002 के दिन का सारा मोबाइल फोन ब्यौरा मोबाइल कंपनी से लेकर उसे एक सीडी में डाला था जिसे उन्होंने अपने आला अधिकारियों को सौंपा था.
इस सीडी में कथित तौर से इस बात की जानकारी थी कि दंगों के वक्त पुलिस अफसर से लेकर राजनेता और कथित दंगाई कहां-कहां थे और किस-किस से बात कर रहे थे.
मामले ने तूल उस वक़्त पकड़ा था जब राहुल शर्मा ने दंगों की जांच कर करे जस्टिस नानावती आयोग के सामने यह सीडी पेश की थी.
हालांकि गुजरात सरकार ने ऐसी किसी भी सीडी अपने पास होने से साफ़ इनकार किया था.

ख़बरों के मुताबिक़ विवाद को बढ़ता देख विशेष जांच दल यानी एसआईटी ने मोबाइल कंपनियों से वह सीडी दोबारा प्राप्त की थी.
विशेष जांच दल के मुखिया और पुलिस अधीक्षक हिमांशु शुक्ल ने बीबीसी से कहा, “हां, यह बात सच है कि हमने मोबाइल कंपनी से दोबारा सीडी प्राप्त की थी. राहुल शर्मा ने जो सीडी पेश की थी उसके सही होने की पुष्टि भी हमने की थी.”
लेकिन शमशाद पठान कहते हैं कि बात सिर्फ़ सीडी सही होने की नहीं है.
शमशाद पठान का आरोप है कि उस सीडी में जिन बडे नेताओ के फोन नंबर थे, उनसे कभी पूछताछ नहीं हुई और जो भी तथ्य सामने आए वह अदालत के सामने नहीं रखे गए.
अहसान जाफ़री के परिवार और वकील लगाता आरोप लगाते रहे हैं कि गुलबर्ग हत्याकांड से पहले जाफ़री ने उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ओर पुलिस कमिशनर पांडे को बार-बार फोन करके मदद मांगी थी लेकिन मदद नहीं मिली.
ऐसे में ये आरोप भी लगने लगे हैं कि क्या यह कांड सोची समझी साजिश के तहत हुआ था?

वरिष्ठ पत्रकार सईद ख़ान ने बीबीसी को बताया कि अदालत के 600 पन्नों वाले फैसले का अध्ययन करने के बाद जो बात सामने आई है उसमें कहीं भी राहुल शर्मा की टेलीफोनिक रिकॉर्ड वाली सीडी का जिक्र नहीं है.
वो कहते हैं कि इसका मतलब यही है कि जांच दल ने अदालत को इस बारे में नहीं बताया. दूसरी बात ये है कि अदालत ने तहलका पत्रिका के अभियुक्तों पर किए गए स्टिंग ऑपरेशन को सबूत के तौर पर मानने से इनकार कर दिया है. हालांकि, नरोडो पाटिया हत्याकांड मामले में अदालत ने तहलका के स्टिंग ऑपरेशन को सबूत मानकर सजा भी सुनाई थी.
यहां उल्लेख करना जरूरी है कि टेलीफ़ोनिक सीडी बनाने की कथित घटना के बाद पुलिस के डीसीपी शर्मा के खिलाफ़ एक डिपार्टमेन्टल जांच भी शुरू हुई थी.
इसके बाद शर्मा ने भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया था.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)