अनुज कुमार सिन्हा
राज्यसभा चुनाव खत्म हाे गया. परिणाम निकल गया. इस चुनाव परिणाम ने झारखंड की वर्तमान राजनीति-भावी राजनीति, यहां के राजनेता, राजनीतिक मर्यादा-आचरण, दलीय प्रतिबद्धता, अच्छी आैर खराब रणनीति, बेहतर आैर खराब मैनेजमेंट अादि के बारे में बहुत कुछ कह दिया है. राज्यसभा चुुनाव काे लेकर झारखंड पहले से देश में बदनाम रहा है.
दाे साल पहले जब आपसी सहमति से झारखंड से राज्यसभा के लिए सांसदाें का चयन हाे गया था, तब ऐसा जरूर लगा था कि झारखंड की राजनीति में साफ-सुथरापन अा गया है. आज झारखंड फिर वहीं खड़ा है, जहां दाे साल पहले (यहां सिर्फ राज्यसभा चुनाव के ताैर-तरीके, विधायकाें की प्रतिबद्धता की बात हाे रही है) खड़ा था. चुनाव में क्राॅस वाेटिंग हुई, इतना ताे तय है, लेकिन किसने की, यह अब तक पता नहीं चला, शायद चले भी नहीं. ऐसी घटनाआें से जनता की नजर में, देश में झारखंड की प्रतिष्ठा गिरेगी ही. बिना किसी प्रलाेभन (चल रहे मामलाें में सहयाेग का आश्वासन या कुछ अन्य), भय (आज की राजनीति में यह भी संभव है) के यह कतई संभव नहीं है. आज की राजनीति में काेई विधायक शायद यह नहीं कर सकता कि अंतर आत्मा की आवाज पर उसने क्राॅस वाेटिंग की है, यह उनमें नैतिक बल भी नहीं है.
अगर काेई विधायक अनुपस्थित रहा, अपने दल के आदेश काे नहीं माना आैर वाेट देने नहीं आया. इसके बाद वह तर्क देते रहे, उसके तर्क काे काेई पचा नहीं पायेगा. आराेप ताे यही लगेगा, लग रहा है कि इन सबके पीछे काेई न काेई खेल है. अगर पुलिस ने किसी काे राेका, तंग किया, किसी काे विधानसभा नहीं पहुंचने दिया, ताे यह लाेकतंत्र का मजाक है. सत्ता का दुरूपयाेग है. अगर ऐसा नहीं हुआ आैर विधायक अपनी मर्जी से (कारण ताे वे ही बतायेंगे) गायब रहें या क्राॅस वाेटिंग की ताे यह लाेक मर्यादा के खिलाफ है. इससे राजनीति का स्तर गिरता है.
दाे सीटें थीं आैर तीन प्रत्याशी थे. जाहिर था कि किसी एक काे हारना है. भाजपा के दाे प्रत्याशी थे आैर दाेनाें जीते. झामुमाे एक सीट पर लड़ा था आैर हार गया. केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की जीत पर कभी भी किसी काे संशय नहीं था. भाजपा के पास 47 मत (आजसू लेकर) थे. इसलिए नकवी की आसान जीत तय थी. वे जीते भी. पर, भाजपा के दूसरे प्रत्याशी महेश पाेद्दार के पास जीतने लायक अपने समर्थक दल के पर्याप्त मत नहीं थे.
कुछ मत घट रहे थे. लेकिन वे जीत गये. वाेट का जुगाड़ हाे गया. उधर विपक्ष की बात करें, ताे उसके पास 30 मत थे. जीत के लिए सिर्फ 28 मत (अगर सभी मत दें ताे) चाहिए थे. यानी विपक्ष के पास जादुई आंकड़ा से दो मत अधिक थे, इसलिए चिंता की काेई बात नहीं दिख रही थी. विपक्ष (यहां झामुमाे के बसंत साेरेन) की जीत भी तय लग रही थी. चुनाव के एक दिन पहले से नजारा बदल गया. चुनाव हाेते-हाेते सारा समीकरण बिगड़ गया. किसी ने क्राॅस वाेटिंग की, काेई गायब रहा आैर भाजपा के दाेनाें प्रत्याशी जीत गये. जाहिर है कि अगर 30 विधायकाें के समर्थन वाला प्रत्याशी (विपक्ष) हार जाये, ताे इसका साफ-साफ अर्थ है कि किसी ने पलटा मारा है. यह हार तब तक नहीं हाे सकती, जब तक काेई क्राॅस वाेटिंग न करे, काेई अनुपस्थित न हाे. यह दाेनाें हुआ. अब लाख हल्ला मचे, एक-दूसरे पर आराेप लगे कि आपके दल के विधायकाें ने क्राॅस वाेटिंग की, लेकिन इसका प्रमाण नहीं मिलनेवाला. लेकिन इस चुनाव परिणाम का झारखंड की भविष्य की राजनीति पर गहरा असर पड़ सकता है. ट्रस्ट (विश्वास) का नया संकट पैदा हुआ है.
पहले उन विधायकाें पर जाे अनुपस्थित रहे. ये हैं चमरा लिंडा (झामुमाे) आैर दूसरा देवेंद्र सिंह बिट्टू. चमरा लिंडा के खिलाफ वारंट जारी था, पुलिस ने नजरबंद किया था, यही बात प्रचारित हुई. सवाल ताे उठेगा ही. अगर चमरा लिंडा के खिलाफ पुराने मामले थे, ताे ठीक चुनाव के वक्त वारंट क्याें जारी कराया गया. विधायकाें (चाहें वे चमरा लिंडा हाें या काेई अन्य) के खिलाफ अगर मामले दर्ज हैं आैर ठीक चुनाव के वक्त उन मामलाें पर पुलिस कार्रवाई करेगी, ताे इससे राज्य-देश में गलत संदेश ही जायेगा. चमरा लिंडा के खिलाफ अगर उसी समय कार्रवाई की गयी हाेती, जिस समय उनके खिलाफ मामले आये थे, ताे पुलिस काे जनता का समर्थन मिलता. चमरा लिंडा की गिरफ्तारी की खबर निर्धारित समय के भीतर पुलिस ने अदालत काे नहीं दी, सात घंटे विलंब से काेर्ट काे बताया.
काेर्ट ने थाना प्रभारी काे कारण बताआे नाेटिस तक जारी किया. यह हुई बात चमरा लिंडा की गिरफ्तारी की, पर परदे के पीछे की कहानी कुछ अलग भी हाे सकती है. हल्ला हाे गया कि चमरा लिंडा बीमार हैं. सवाल ताे यह भी उठ रहा है कि क्याें नहीं चमरा लिंडा ने वाेट देने के लिए निकलने का प्रयास किया. क्या उनकी बीमारी इतनी गंभीर थी कि वे बेड से उठ नहीं सकते थे या पुलिस ने दबाव में उन्हें राेक दिया था . यह ताे चमरा लिंडा ही बता सकते हैं.
अगर चमरा लिंडा (जाे झामुमाे के ही विधायक हैं) ने वाेट दिया हाेता, ताे उनका यानी विपक्ष का प्रत्याशी नहीं हारता, यह वे भी जानते थे. अगर चमरा लिंडा अस्पताल से निकलते आैर पुलिस उन्हें राेकती ताे पूरा विपक्ष उनके साथ हाेता, हंगामा करता,चमरा लिंडा का कद आैर बढ़ गया हाेता. दूसरे विधायक, जाे चर्चा में हैं, वे हैं कांग्रेस के विधायक देवेंद्र सिंह बिट्टू. पता नहीं कहां हैं. चुनाव के दिन गायब हाे गये. कांग्रेस के दिग्गज उन्हें खाेजते रहे. खबर है कि उनके खिलाफ भी मुकदमे हैं. क्या उन्हें पुलिस ने धमकाया, क्या वे पुलिस के डर से गायब रहे या इसी की आड़ में उन्हाेंने अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की मदद कर दी. यह ताे वे ही बता सकते हैं.
हर विधायक यह कह रहा है कि उसने क्राॅस वाेटिंग नहीं की, ताे ये विधायक बतायें कि विपक्ष के दाे वाेट कम (जितने वाेट पड़े थे) कैसे हाे गये. सच ताे यह है कि राजनीतिक गद्दारी किसी ने ताे की ही है. किन्हीं दाे विधायकाें (विपक्ष के) ने बसंत साेरेन की जगह भाजपा काे वाेट दिया ही है. ये दाेनाें किसी भी दल के हाे सकते हैं. सवाल यह उठता है कि जब वहां हर दल के एजेंट माैजूद थे, उन्हें दिखा कर वाेट दिया जा रहा था, ताे इतना बड़ा जाेखिम किन दाे विधायक ने लिया. एजेंट ने अगर आपत्ति नहीं की, ताे क्या इतने बड़े खेल में वे भी शामिल हैं, ये सारे सवाल उठ रहे हैं.