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कल के लिए आज से बचाएं जल
सदा हमें समझाए नानी,नहीं व्यर्थ बहाओ पानी । हुआ समाप्त अगर धरा से, मिट जायेगी ये ज़िंदगानी । नहीं उगेगा दाना-दुनका, हो जायेंगे खेत वीरान । उपजाऊ जो लगती धरती, बन जायेगी रेगिस्तान । हरी-भरी जहां होती धरती, वहीं आते बादल उपकारी । खूब गरजते, खूब चमकते, और करते वर्षा भारी । हरा-भरा रखो इस […]
सदा हमें समझाए नानी,नहीं व्यर्थ बहाओ पानी ।
हुआ समाप्त अगर धरा से, मिट जायेगी ये ज़िंदगानी ।
नहीं उगेगा दाना-दुनका, हो जायेंगे खेत वीरान ।
उपजाऊ जो लगती धरती, बन जायेगी रेगिस्तान ।
हरी-भरी जहां होती धरती, वहीं आते बादल उपकारी ।
खूब गरजते, खूब चमकते, और करते वर्षा भारी ।
हरा-भरा रखो इस जग को, वृक्ष तुम खूब लगाओ ।
पानी है अनमोल रत्न, तुम एक-एक बूंद बचाओ ।
कवि श्याम सुंदर अग्रवाल की यह बाल कविता है. जो हमें जल और उसकी महत्ता के बारे में बताती है. दादी-नानी की उस डांट की याद दिलाती है, जो पानी की बर्बादी पर हमें सुननी पड़ती थी. लेकिन अब हम बड़े हो गए हैं. इसलिए यह कविता भी हमारे जेहन से मिट चुकी है. दूसरी ओर, तेजी से शहरों का विकास हो रहा है. अंधाधुंध विकास. पेड़ों को काटकर कंक्रीट के जंगल खड़े किये जा रहे हैं. तालाबों को पाटकर शॉपिंग मॉल खड़े हो रहे हैं. शहर का सारा कचरा नदियों में बहाया जा रहा है. नदी तटों पर भी अतिक्रमण हो रहा है.
बड़ी-बड़ी गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाला काला धुआं वातावरण को दूषित कर रहा है. इस कारण बादल रूठने से लगे हैं. बारिश कम होने लगी है. नदियों में पानी खत्म होने लगा है. भूजल स्तर भी लगातार गिर रहा है. अगर ऐसे ही हालात रहें तो वो दिन दूर नहीं, जब हमें भी पानी की तलाश में कई-कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा. जैसे हालात राजस्थान में हैं. इसलिए हमें अपने कल के लिए आज से ही जल बचाने के बारे में सोचना होगा, क्योंकि जल है तो कल है. बिना जल के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते है.
राज्य में लगातार नीचे जाता भूजल स्तर
रांची : आज अपना झारखंड भयंकर जल संकट से जूझ रहा है. राज्य के कई जिले में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. भूमिगत जलस्त्रोत में तेजी से गिरावट आ रही है. पिछले 14 सालों में 10 से 12 मीटर तक भूजल स्तर नीचे चला गया है. कई इलाकों में बोरिंग फेल हो रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में जल संकट का मुख्य कारण ग्राउंड वाटर रिचार्ज न कर पाना है. अगर यही स्थिति रही तो आनेवाले सालों में राज्य और भयंकर जल संकट से जूझ सकता है.
बर्बाद होता है बारिश का पानी
जल संसाधन विभाग के भूगर्भ जल निदेशालय द्वारा प्रत्येक वर्ष जलस्तर की मापी करायी जाती है. इसके लिए जिलों में अलग-अलग कुंओं के जलस्तर की मापी करायी जाती है. वर्ष 2002 की तुलना में वर्ष 2015 में कई जिलों में 10-12 मीटर की गिरावट दर्ज की गयी है.
भूमिगत जलस्तर अब 10 से 12 मीटर नीचे चला गया है. राज्य में प्रत्येक वर्ष 1100 से 1400 मिमी वर्षा होती है. इससे लगभग 23 हजार 800 एमसीएम सतही जल और लगभग 5000 एमसीएम भूगर्भ जल की प्राप्ति होती है. लेकिन यहां की भौगोलिक संरचना के कारण लगभग 80 प्रतिशत सतही जल और 74 प्रतिशत भूगर्भ जल बहकर बाहर चला जाता है. यही वजह है कि इस वर्ष भी झारखंड के कई क्षेत्रों में सूखे का प्रभाव रहा.
ड्राइ जोन में कई जिले
भूगर्भ जल निदेशालय के आंकड़ों को देखें तो कई जिले ड्राइ जोन में तब्दील होते जा रहे हैं. इनकी मापी मानसून के पूर्व होती है. जिसमें जमशेदपुर, गिरिडीह, लोहरदगा, चास, धनबाद, मेदिनीनगर, जामताड़ा जैसे जिले शामिल हैं. रांची भी अब ड्राइ जोन की ओर अग्रसर है. सर्वे के अनुसार जामताड़ा जिले के मिहिजाम, कुंडहीत में जलस्तर काफी नीचे चला गया है. जमशेदपुर के मानगो, जुगसलाई, गोलमुरी, नीमडीह, पटमदा आदि इलाकों में जलस्तर में तीन से चार मीटर की गिरावट आयी है.
रांची के जलस्तर में भारी गिरावट
रांची के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां ग्राउंड वाटर की स्थिति बहुत खराब है. राजधानी रांची समेत आठ जिले ऐसे हैं, जो ड्राइ जोन बनने की ओर अग्रसर हैं. राजधानी में कई ऐसे क्षेत्र थे, जहां बोरिंग कराने पर वर्ष 2001-02 में 100 से 125 फीट में पानी मिल जाता था, लेकिन अब 200 से 700 फीट तक बोरिंग कराने के बाद भी पानी नहीं निकलता है.
यदि कहीं निकलता भी है, तो छह माह से एक वर्ष के अंदर बोरिंग फेल हो जाता है. झारखंड में भू-गर्भ जल के अत्यधिक नीचे जाते स्तर पर भूगर्भ जल निदेशालय ने भी चिंता जतायी है. भूगर्भ जल निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, अभी एक से लेकर 10 मीटर तक जलस्तर में गिरावट आयी है. कई इलाके ऐसे हैं, जहां मापी नहीं हो सकी है. पर निदेशालय के अधिकारी भी मानते हैं कि उनका डाटा कुंआ के जलस्तर पर आधारित होता है. जबकि बोरिंग की वजह से जलस्तर में तेजी से गिरावट आयी है. जिसकी मापी नहीं हो पाती. निदेशालय के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में एक से लेकर पांच मीटर तक कमी दर्ज की गयी है.
20 सालों के बाद ऐसी होगी स्थिति
विशेषज्ञों की मानें तो पानी का दोहन इसी तरह होता रहा तो 20 सालों के बाद जलस्तर में 20 से 30 मीटर तक गिरावट आ जाएगी. तब लोगों को ग्राउंड वाटर उपलब्ध नहीं हो पाएगा. अभी जहां 200 से 500 फीट में पानी मिल रहा है. 20 सालों के बाद हजार फीट पर भी पानी की उपलब्धता नहीं रहेगी.
गुप्ता कमेटी के प्लान पर नहीं हुआ काम
वर्ष 2013 में तत्कालीन विकास आयुक्त देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने झारखंड में जलवायु परिवर्तन पर 191 पेज का एक्शन प्लान बनाकर दिया था. जिसपर काम किया जाना था. लेकिन इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. ग्राउंड वाटर झारखंड में सबसे अधिक घरेलू और कृषि कार्यों में उपयोग होता है. यह कुंआ, ट्यूब वेल और बोरिंग से निकाला जाता है.
– पिछले 14 वर्षों में 10 से 12 मीटर नीचे चला गया भूजल स्तर
– राज्य के कई इलाके में बन गयी है ड्राइजोन की स्थिति
– राजधानी रांची के कई क्षेत्र में भी ग्राउंड वाटर की स्थिति खराब
– यही हाल रहा तो हजार फीट पर भी नहीं मिलेगा पानी
क्या है रांची में भूगर्भ जल की स्थिति
क्षेत्र भूगर्भ जल (फीट में)
बरियातू200 से 250
कांके 500 से 800
हरमू 200 से 400
धुर्वा 300 से 700
तुपुदाना300 से 700
रातू रोड 200 से 700
(बोरिंग एजेंटों के अनुसार)
वाटर लेवल की स्थिति (मीटर में)
जिला 2002 2015गिरावट
रांची 7.46 8.4 1.06
खूंटी 8.23 8.89 0.66
गुमला 7.71 11.4 3.69
सिमडेगा 8.68 8.8 0.12
लोहरदगा 6.60 ड्राइ 6.60 मी से अधिक
पू. सिंहभूम (मानगो) 8.81 ड्राइ 9 मी से अधिक
चाईबासा 2.76 5.75 2.99
हजारीबाग 7.54 8.40 0.66
कोडरमा 6.70 6.85 0.15
चतरा 9.38 10.23 0.85
गिरिडीह 7.90 ड्राइ 8 मी से अधिक
बोकारो (चास) 8.14 ड्राइ 8 मी से अधिक
धनबाद (बाघमारा) 9.90 ड्राइ 10 मी से अधिक
लातेहार 5.60 11.35 5.75
मेदिनीनगर (पांकी) 6.25 ड्राइ 6-7 मीटर
गढ़वा 7.39 8.79 1.40
दुमका 7.05 7.8 0.75
जामताड़ा 6.50 ड्राइ
देवघर 6.10 10.2 4.10
गोड्डा (पोड़ैयाहाट) 9.65 ड्राइ 10 मी से अधिक
साहेबगंज 4.37 6.9 2.63
पाकुड़ 7.05 11 3.95
(िगरावट मीटर में)
पानी से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
एक जानकारी के मुताबिक धरती पर 2,94,000,000 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है, जिसमें से मात्र 3% पानी ही शुद्ध और पीने लायक है.
पृथ्वी पर पानी अधिकतर तरल अवस्था में उपलब्ध होता है, क्योंकि हमारी धरती (सौर व्यवस्था) सोलर सिस्टम की सीध में स्थित है, अतः यहां तापमान न तो इतना अधिक होता है कि पानी उबलने लगे, न ही तापमान इतना कम होता है कि वह बर्फ में बदल जाये.
अधिकतर पानी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वाष्पीकरण के जरिये वातावरण में पहुंचता है.
पृथ्वी के उत्तरी गरम इलाके में शुद्ध पानी के अधिकतर स्रोत मौजूद हैं.
इस धरती के शुद्ध जल में से 20% मुक्त जल कनाडा में पाया जाता है. रूस की बैकाल झील में 20% जल है.
बाकी का शुद्ध जल विभिन्न नदियों, झीलों, तालाबों, आदि में उपलब्ध है.
भूमध्यरेखा के 20 डिग्री उत्तर और दक्षिण में उष्णकटिबंधीय वर्षा वन (रेन फॉरेस्ट) हैं.
जबकि भूमध्यरेखा के 20 से 35 डिग्री उत्तर-दक्षिण में विभिन्न रेगिस्तान हैं.
इस डिग्री से उत्तर-दक्षिण में बढ़ने पर रेगिस्तान में भी प्रचुर मात्रा में नमी मिलती है.
क्या है जल-चक्र
पानी का वातावरण में वाष्पीकरण होता है. पुनः यही पानी धरती पर बारिश के पानी के रूप में गिरता है.
बहता हुआ पानी नदियों में जाता है और फिर अलग-अलग रास्तों से होते हुए समुद्र में जाकर मिलता है.
पानी के विभिन्न उपयोग
नहाने के लिये
कपड़े धोने के लिये
खाना बनाने, पीने के लिये
साफ-सफाई करने के लिये
तैरने व अन्य आनन्द लेने के लिये
बदलता मौसम, घटती औसत बारिश
रांची : पर्यावरण में हो रहे बदलाव से झारखंड का मौसम भी लगातार बदल रहा है. इससे राज्य में औसत बारिश में भी गिरावट दर्ज की जा रही है. पिछले 10 वर्षों में राज्य में छह वर्ष सूखा पड़ा है. कई जिले में तो पिछले 10 वर्ष में एक-दो साल ही अच्छी बारिश हुई है. मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 1956 से 2015 तक औसतन करीब 1149 मिमी बारिश मानसून (साउथ-वेस्ट मानसून) के सीजन में होती है. यह पूरे साल की कुल बारिश का करीब 83 फीसदी है. इसकी अवधि जून से सितंबर तक होती है. अक्टूबर से दिसंबर (नार्थ इस्ट मानसून) तक करीब 6.5 फीसदी बारिश होती है.
जनवरी से फरवरी तक करीब 7.5 फीसदी बारिश होती है. इसका मतलब है कि केवल 17 फीसदी के आसपास ही बारिश राज्य में मानसून के अतिरिक्त मिलती है. 1956 से 2008 तक मानसून की बारिश में लगातार वृद्धि हुई. यह करीब-करीब नियमित था. 1991 से 2000 के बीच औसतन करीब 1623 मिमी बारिश हुई.
2001 से लेकर 2015 के बीच औसत बारिश में काफी गिरावट आयी. इस कारण कई वर्ष लगातार सूखा पड़ता रहा. मौसम विभाग के आकड़े बताते हैं कि जून से सितंबर वाले मानसून की बारिश में बहुत बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन मानसून की वापसी के समय बारिश में कमी आयी है.
बारिश का आंकड़ा (मिमी में)
माह 1956-60 1961-70 1971-80 1981-90 1991-2000 2001-2010
जनवरी 21.2 20.1 19.89 19.5 23.2 11.5
फरवरी 23.1 24.2 41.45 38.5 31.5 33.2
मार्च 25 24.1 24 23.5 23.2 30.1
अप्रैल 25.5 26.2 26.2 26.4 23.2 27
मई 26 49.8 83.7 46.2 44 41
जून 150 152 198 248.5 263.5 280
जुलाई 320 380 420 300 270 240
अगस्त 285 280 320 301.1 380 252
सितंबर 200 260 265 263.5 210 200
अक्तूबर 98 92.5 54.5 56.5 60 130
नवंबर 5.4 8.4 9.5 12.5 8.2 3.4
दिसंबर 2 3 4 6 2 1.4
गाजियाबाद के जगत प्रकाश से सीख सकते हैं
उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद जिले के जगत प्रकश गर्ग हर किसी के प्रेरणास्त्रोत बन सकते हैं. जल संरक्षण के लिए उनकी पहचान है. इस काम के प्रति उनका जुनून भी देखते ही बनता है. उन्हें रास्ते में जाते वक्त कहीं भी टोटी से पानी बहता दिखाई देता है तो अपनी गाड़ी रोककर उसे बंद कर देते हैं. स्कूलों व शिक्षण संस्थानों में घूम-घूमकर छात्रों व शिक्षकों को जल संरक्षण के बारे में बताते हैं. बारिश के पानी के इस्तेमाल करने और उसे संरक्षित करने के उपाय भी बताते हैं.
गाजियाबाद के राजनगर में रहनेवाले जगत प्रकाश का कहना है कि वर्ष 2003 में वे जल संरक्षण के लिए मुहिम चलाने के काम में लगे हैं. इलाके में जल संकट को देखते हुए उन्होंने इस मुहिम को शुरू किया. वे अपना आदर्श जलपुरुष के नाम से विख्यात राजेन्द्र सिंह को मानते हैं. उनका कहना है कि शुरुआत में उनके मुहिम को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन वे निरंतर अपने काम में लगे रहे. यही कारण है कि अब इलाके में ही नहीं पूरे गाजियाबाद के लोग उनकी बातों को समझने लगे हैं और जल संरक्षण के लिए कदम उठाने लगे हैं.
5.28 बीसीएम ही ग्राउंड वाटर उपलब्ध
गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पूरे देश की तुलना में काफी कमग्राउंड वाटर की उपब्धता है. पूरे देश में 399.25 बीसीएम ग्राउंड वाटर है, तो झारखंड में केवल 5.28 बीसीएम ही उपलब्ध है.
स्लो है ग्राउंड वाटर रिचार्ज सिस्टम
गुप्ता कमेटी ने लिखा है कि राज्य में प्राकृतिक रूप से ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग स्लो है. मानव द्वारा भी ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने की समुचित व्यवस्था नहीं है. कमेटी ने ग्राउंड वाटर के अत्याधिक दोहन पर भी चिंता जतायी है. कमेटी ने 2050 तक पानी के भारी मांग की बात कहते हुए कहा कि यदि जल्द ही समुचित व्यवस्था नहीं की गयी तो भयावह स्थिति उत्पन्न होनी तय है.
जो सुझाव दिये गये हैं
ग्रामीण इलाकों में भी ग्राउंड वाटर प्रबंधन के लिए पंचायतों की भूमिका निर्धारित की जाय, ताकि कितना पानी घरेलू खपत के लिए, कितना कृषि के लिए और कितना उद्योगों को मिले, यह तय करने में आसानी हो. साथ ही ग्राउंड वाटर के लिए भी अनिवार्य रूप से मीटरिंग की सलाह दी गयी है. साथ ही समेकित रूप से जल प्रबंधन पर एक नीति बनाने का सुझाव दिया गया है. कमेटी ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग का भी सुझाव दिया है.
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