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एक रेस्तरां जहां पेट्स भी करते हैं मज़े

चिरंतना भट्ट मुंबई से, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए मुंबई में ऐसे रेस्तरां और कैफ़े का चलन बढ़ रहा है, जहां पालतू जानवरों की सुविधा के साथ उनके खाने-पीने का भी ध्यान रखा जा रहा है. घर में जब एक पालतू जानवर आता है, तब वह महज़ जानवर न रहकर परिवार का सदस्य बन […]

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मुंबई में ऐसे रेस्तरां और कैफ़े का चलन बढ़ रहा है, जहां पालतू जानवरों की सुविधा के साथ उनके खाने-पीने का भी ध्यान रखा जा रहा है.

घर में जब एक पालतू जानवर आता है, तब वह महज़ जानवर न रहकर परिवार का सदस्य बन जाता है.

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लेकिन समस्या तब होती है, जब पूरा परिवार रेस्तरां जा रहा हो और अपने पालतू जानवर को घर पर अकेला या परिवार के किसी अन्य सदस्य को उसके साथ छोड़ कर जाना पड़ता है.

कई परिवारों की इस समस्या का समाधान अब मुंबई के कुछ रेस्तरां और कैफ़े करने में जुट गए हैं.

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ऐसे ही एक कैफ़े ‘ज़ू बार’ के संस्थापकों में से एक निशांत जोशी बताते हैं, "मेरे इंग्लिश मैस्टिफ़्स को लेकर बाहर जाना मेरे लिए हमेशा मुश्किल रहा है. इसी की वजह से मैंने ‘ज़ू बार’ को बनाने के बारे में सोचा."

वे आगे बताते हैं, "इस रेस्तरां से जुड़ा 900 वर्ग फ़ुट का एरिया सिर्फ़ पेट्स के लिए है. यहां उनका खाना, खिलौने और अटेन्डन्ट्स होते हैं."

निशांत ने बताया कि यहां के स्टॉफ़ को पालतू जानवरों की देखभाल करने का तरीक़ा भी सिखाया गया है. वहीं रसोई में भी पेट्स के लिए खाना बनाने के लिए अलग जगह है और उनके लिए ख़ास मेनू भी है.

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‘ज़ू बार’ में आने वाले पेट्स के बारे में कहते हैं कि यहां हर पंद्रह दिन में 20-30 पेट्स आते हैं. अब तक यहां पंछी, कुत्ते, बिल्ली और हैमस्टर्स आ चुके हैं. हमने अडॉप्शन के कई कार्यक्रम भी रखे हैं.

वहीं भक्ति भुखनवाला और तृप्ति ज़वेरी का ‘मट्ट हट्ट कैफ़े’ पॉप अप कॉन्सेप्ट पर काम करता है.

अपने कैफ़े के बारे में भक्ति और तृप्ति ने बताया कि पेट्स को सोशलाइज़िंग करने का मौक़ा नहीं मिलता. इस वजह से ‘मट्ट हट्ट’ का विचार आया.

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भक़्ति ने बताया, "यहां अभी तक पेट्स के लिए बर्थ डे पार्टीज़, फ़ूड इवेंट और म्यूज़िक फ़ेस्टिवल तक आयोजित किए गए हैं."

तृप्ति बताती हैं, "पेट ग्रूमिंग, पेट मसाज, पेट फ़ोटोग्राफ़ी की व्यवस्था भी यहां होती है."

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अंधेरी और बांद्रा के पेट कैफ़े ‘डुलाली’ की ब्रांड मैनेजर त्रेशा गुहाने कहती हैं, “इस कैफ़े में सप्ताहांत में पेट कुकिंग, पेट्स के साथ सफ़र करने से लेकर फर्स्ट-एड तक और पेट सायकॉलॉजी जैसे वर्कशॉप आयोजित किए जाते हैं.”

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पेट लवर निधी शेट्टी कहती हैं, "ऐसे रेस्तरां और बार में ख़ुद के साथ पेट्स की भी अच्छी आउटिंग हो जाती है."

उनका कहना है, "ऐसी जगहों पर न तो उनके खाने-पीने की चिंता होती और न ही पेट्स बोर होते हैं. ऐसे विकल्प इंसान और जानवर दोनों के लिए ही अच्छे हैं."

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