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गरम हो रही दुनिया की सबसे ठंडी जगह

कैंसर से पीड़ित नासा के वैज्ञानिक ने ग्रीनलैंड का दौरा कर दुनिया को आगाह किया कैंसर की बीमारी के चौथे चरण में मौत से संघर्ष कर रहे नासा के एक वैज्ञानिक पीयर्स सेलर्स ने आर्कटिक संकट से दुनिया को चेताने की कोशिश की है. उन्होंने जिस खतरे का संकेत किया है, अगर वह टला नहीं […]

कैंसर से पीड़ित नासा के वैज्ञानिक ने ग्रीनलैंड का दौरा कर दुनिया को आगाह किया
कैंसर की बीमारी के चौथे चरण में मौत से संघर्ष कर रहे नासा के एक वैज्ञानिक पीयर्स सेलर्स ने आर्कटिक संकट से दुनिया को चेताने की कोशिश की है. उन्होंने जिस खतरे का संकेत किया है, अगर वह टला नहीं और टाला नहीं गया, तो भविष्य में इनसान के चलते ही इनसानी दुनिया में तबाही के नये अध्याय लिखे जायेंगे. उनका मतलब आर्कटिक पर तेजी से पिघल रहे बर्फ से है.
आर्कटिक की पिघलती हुई बर्फ समुद्री जलस्तर को तेजी से बढ़ाने के लिए काफी है. और अगर समुद्री जलस्तर बढ़ता गया, तो यह दुनिया के लिए एक बड़ी तबाही काे न्योता होगा.
पीयर्स सेलर्स अंतरिक्ष यात्राएं कर चुके हैं. एक बार नहीं, छह बार. फिलहाल वह नासा के गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के अर्थ साइंस डिवीजन में कार्यकारी निदेशक के पद पर तैनात हैं. हाल ही में उन्होंने ग्रीनलैंड की यात्रा की है. वहां पहुंच कर उन्होंने जो कुछ देखा-समझा, उससे वह न केवल आहत हैं, बल्कि उन्होंने धीरे-धीरे दुनिया के सामने आ रही एक ऐसी चुनौती की आशंका जतायी है, जिससे बाद में निबट पाना तमाम देशों के लिए मुश्किल होगा.
सेलर्स ने तय किया कि उन्हें अपनी बीमारी और नौकरी के बीच ही कुछ ऐसा करना होगा, जो व्यापक मानवीय हित में हो. इसी दौरान उन्हें उत्तरी ध्रुव के सबसे ठंडे इलाके के रूप में चिह्नित आर्कटिक जाने का ख्याल आया. इसी ख्याल से प्रेरित सेलर्स ने ग्रीनलैंड की यात्रा की. वहां पहुंच कर उन्होंने जो कुछ देखा, उससे वह हतप्रभ रह गये. उनके मुताबिक, दुनिया की सबसे ठंडी जगह सबसे तेजी से गरम हो रही है. वैश्विक तापमान में करीब एक डिग्री की बढ़ोतरी को शायद लोग सहज ही महसूस न कर सकें, पर आर्कटिक पहुंच कर जो दिखता है, उसे हर व्यक्ति समझ सकता है. आर्कटिक में तेजी से बर्फ पिघल रही है.
नासा के सैटेलाइट्स और दूसरे हवाई अभियानों से पता चल रहा है कि ग्रीनलैंड की तसवीर तेजी से बदल रही है. इसका असर इंसानी जगत में एक बड़े भू-भाग को झेलना पड़ सकता है.
केवल ग्रीनलैंड में हर वर्ष करीब 287 बिलियन मेट्रिक टन बर्फ पिघल रही है. आमतौर पर वहां गरमी के दिनों में बर्फ पिघलने की गति थोड़ी तेज होती रही है, पर बसंत के दिनों में ही तेजी से बर्फ सरक रही है. अनुमान है कि अगर ग्रीनलैंड में मौजूद बर्फ का 10वां हिस्सा भी पिघल कर अटलांटिक सागर में बह जाता है, तो इससे वैश्विक जलस्तर कम-से-कम दो फीट बढ़ जायेगा और धरती पर नया बड़ा संकट हो सकता है.
सेलर्स अपना अनुभव बताते हैं, ग्रीनलैंड और आसपास के लोगों ने महसूस किया है कि अब वहां उनकी भी जिंदगी धीरे-धीरे कठिन हो रही है. बर्फ पिघलने की तेज गति ने इनकी रोजमर्रा की जिंदगी में कई बाधाएं ला खड़ी की हैं. जहां पहले बर्फ पर स्लेजिंग के जरिये परिवहन आसान था, अब दृश्य बदल गया है. कुल मिला कर दुनिया की स्थिति कब कैसी रहेगी, इस बाबत सेलर्स भले ही ठोस निश्चय पर नहीं हैं, पर वह खुद को इस बात से हैरत में बताते हैं कि वह जिस ग्रह पर जी रहे हैं, वह कितनी तेजी से बदल रहा है.
इस वैज्ञानिक ने आर्कटिक संकट के चलते हो रहे तेज बदलाव और इसके संभावित प्रभाव के प्रति देश-दुनिया से मिल रहे राजनीतिक रिस्पांस पर भारी चिंता जतायी है. उन देशों से वह खासे चिंतित हैं, जहां इस तरह की स्थिति दिख रही है या जहां तेजी से हो रहे इन बदलावों के चलते नये संकट को न्योता मिल रहा है.
इस चिंता की सबसे बड़ी वजह यह है कि उपरोक्त बदलाव दुनिया में भयंकर सूखा, तटीय इलाकों में भयंकर बाढ़ और समाज के सामने खाद्यान्न में कमी की नयी चुनौतियों को बुलावा दे सकते हैं, जिनसे निबटने के लिए दुनिया के ताकतवर देश भी अभी तैयार नहीं दिख रहे.
मौसम कंट्रोल करते हैं उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव
उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) पृथ्वी का सबसे सुदूर उत्तरी बिंदु है. इस पर पृथ्वी की धुरी घूमती है. यहां पारा -35 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है, लेकिन हाल के दिनों में गरमी में भी पारा -1.9 डिग्री तक देखा गया है, जो सामान्य से 15 डिग्री ज्यादा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दुनिया भर के मौसम को स्थिर रखने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. यहां सैकड़ों मील तक फैली बर्फ की चादर दुनियाभर की जलवायु के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन अफसोस की बात है कि ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव दोनों ध्रुव झेल रहे हैं.
एक अरब लोगों की जिंदगी होगी प्रभावित
क्रिस्चयनएड चैरिटी की इस साल 16 मई को जारी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2100 तक अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक भी नियंत्रित कर लिया जाये, तो भी समुद्र तल के स्तर में 79 सेंटीमीटर की वृद्धि हो जायेगी. समुद्र तल के स्तर में वृद्धि का सीधा परिणाम बाढ़ के रूप में सामने आ सकता है. वहीं समुद्र तट के किनारे बसे शहरों में हाइयान जैसे तूफान का खतरा बढ़ सकता है. हाइयान तूफान 2013 में फिलीपिंस में आया था. ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक महासागर और अंटार्टिका में बर्फ पिघल रही है. तटीय शहरों में आने वाली संभावित बाढ़ से करीब एक अरब लोगों की जिंदगी प्रभावित हो सकती है. इसमें भारत के कोलकाता और मुंबई भी होंगे.
क्यों पिघल रही बर्फ
इसका मुख्य कारण वायुमंडलीय तापमान में इजाफा है. जिस तरह वातावरण गरम हो रहा है, उससे ठंड के मौसम में बर्फ की मात्रा में वृद्धि में भी गिरावट आ रही है और गरमी में ज्यादा बर्फ पिघल रही है.

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