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त्रिदीव घोष : अधूरी चर्चा

-दर्शक- त्रिदीव घोष के बारे में बार-बार जानने और बताने की जरूरत है. वह महज इंडियन पीपुल्स फ्रंट के बड़े नेता ही नहीं हैं, बल्कि उससे भी अधिक वह उस तरह के इंसान हैं, जिनकी संख्या किसी एक शहर में अब शायद ही एकाध होगी. सितंबर के दूसरे सप्ताह में उन्हें ‘हार्ट अटैक’ हुआ. कहां? […]

-दर्शक-

त्रिदीव घोष के बारे में बार-बार जानने और बताने की जरूरत है. वह महज इंडियन पीपुल्स फ्रंट के बड़े नेता ही नहीं हैं, बल्कि उससे भी अधिक वह उस तरह के इंसान हैं, जिनकी संख्या किसी एक शहर में अब शायद ही एकाध होगी. सितंबर के दूसरे सप्ताह में उन्हें ‘हार्ट अटैक’ हुआ. कहां? कोंगे बस्ती में वह पानी तैर कर, अलग-थलग पड़ गये गांववालों को दवा पहुंचाने-मेडिकल कैंप लगाने गये थे. इस गांव में उन्होंने जन सहयोग से पाठशाला चलाने-पीने का नल लगवाने और छात्रों का भविष्य संवारने के लिए प्रेरित किया.

और छोटानागपुर के अनेक गांवों में उन्होंने ऐसे अद्भुत काम किये -कराये हैं, भूखे रह कर. जमीन पर सोते हुए. पैदल घूमते हुए. महीने भर भी नहीं गुजरे होंगे, प्रोजेक्ट विद्यालय के शिक्षकों को 12 वर्ष से वेतन न मिलने की बात सुन कर वह कूद गये. आंदोलन में जान आयी. वह पटना तक गये. प्रोजेक्ट शिक्षकों को वेतन भले ही न मिला, पर सारा देश जान गया कि जो व्यवस्था बंधुआ और बाल मजदूरों के प्रति चिंता प्रकट करती है, वह खुद शिक्षकों को बंधुआ रखती है. और आप जानते हैं. उस आंदोलन में भी रोजाना वह 10-20 किमी पैदल ही घूमते थे.

क्योंकि पेट्रोल का पैसा नहीं था. उन्हें कुछ पुराने लेखों का 200 रुपये भुगतान मिला. घंटे भर बाद उन्हें पता चला कि प्रोजेक्ट विद्यालयों में अध्यापकों को परचा छपवाना है, तो उन्होंने तत्काल वह 200 रुपये उन्हें दे दिये. फिर पैदल चलना ही चुना. गांवों में दिन भर भूखे रह कर भी जिस ऊर्जा से वह दूसरों की पीड़ा दूर करने के लिए काम करते रहे हैं, वह कौन बतायेगा? पर उनका जीवन ही दूसरों के लिए अर्पित है.

चाहे ट्रक दुर्घटना में घायल गरीब लोग हो या मरें, उनके लिए दवा-पैसे और कफन के प्रबंधक के लिए त्रिदीव घोष अपनी दुनिया भूल जाते हैं. किसी लड़की के साथ बलात्कार का फिर उसकी हत्या का मामला हो या किसी असहाय व्यक्ति के बच्चे की खर्चीली चिकित्सा, त्रिदीव घोष सबसे आगे खड़े मिलेंगे. अपनी दुनिया भूल कर, दूसरों के दुख-दर्द में डूबे हुए. पलामू में अकाल हो या कहीं मजदूरों के हक की लड़ाई, त्रिदीव घोष अपनी दुनिया भूल कर उसमें डूब जाते हैं.

और यह दुनिया उन्होंने स्वत: चुनी है. वह जर्मनी से पढ़े-लिखे इंजीनियर हैं. वह संपन्न परिवार में जन्में, पर नौकरी छोड़ दी. भारी तनख्वाह पर लात मार दी. संपन्न परिवार से कई दशक पहले ही अलग होकर कठिन जीवन चुना. गरीब मजदूर का कठिन जीवन, जीनेवाले त्रिदीव घोष के अंदर की ममता, अपनत्व और संवेदनशील जिसने देखी हो, वही समझ सकता है कि मनुष्य कहां तक ऊंचा हो सकता है.

पर यह सच है कि भोगवादी राजनीति में ऐसे ‘मनुष्य’ की ऊंचाई कौन जानेगा? क्योंकि त्रिदीव घोष शायद ही अपनी बात किसी से कहते हों.पर वहीं त्रिदीव घोष, बीमार होने के बावजूद जेल में डाल दिये गये. क्योंकि उन्होंने ‘वरदी के अपराध’ का विरोध किया. पर जिन लोगों ने दर्जनों अपराध किये हैं. वे ‘लाल बत्ती’ लगा कर घूम रहे हैं. यह सच घर-घर तक पहुंचाने की जरूरत है.

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