
सर्बानंद सोनोवाल असम में पहली बार बनने वाली भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.
इससे पहले सर्बानंद ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं निभाई है, हालांकि वो केंद्र सरकार में मंत्री ज़रूर रहे हैं. आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) से निकलकर क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) में शामिल हुए सर्बानंद 1998 में लखीमपुर से लोकसभा चुनाव हार गए थे.
इसके बाद वो 2001 में पहली बार मोरान से विधायक बने और 2004 में डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए.
इस दौरान उन्हें पार्टी में किसी शीर्ष पद पर नेतृत्व करने का मौका नहीं मिला. इन्हीं कारणों से सर्बानंद ने एजीपी का साथ छोड़कर 2011 में भाजपा का दामन थाम लिया.
ऊपरी असम के डिब्रूगढ़ ज़िले के एक छोटे से बिंदाकटा मुलुकगांव में 31 अक्टूबर 1962 को जन्मे सोनोवाल ने छात्र नेता के बतौर प्रदेश में अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार की.
असम में काफी प्रभावी आल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के अध्यक्ष पद से राज्य के मुख्यमंत्री तक पहुंचने वाले प्रफुल्ल कुमार महंता के बाद वे दूसरे शख़्स हैं.
उनको नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि सर्बानंद के चेहरे पर हमेशा दिखने वाली मुस्कान और उदारवादी स्वभाव ने आज उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया है.
शायद सर्बानंद के अंदर छिपे नेता को कम उम्र में ही उनके स्कूल शिक्षकों ने भांप लिया था. उन्हें मुलुकगांव प्राइमरी स्कूल में सफाई का कार्यभार सौंपा गया था. बचपन से उन्हें साफ-सुथरा रहने की आदत थी.

सर्बानंद की बड़ी बहन डालिमि सैकिया ने बीबीसी को बताया कि आठ भाई–बहनों में सर्बानंद सबसे छोटे हैं. पिता जिबेश्वर सोनोवाल चबुआ बोकदुम पंचायत में सचिव थे.
दरअसल वे जिस गांव से निकलकर आए हैं, वहां बाढ़ आती थी. लोग अपनी तकलीफ सुनाने पिता के पास आते थे और इसका सर्बानंद पर काफी असर पड़ा. यही एक वजह रही कि सर्बानंद समाज सेवा की तरफ आकर्षित हुए.
डालिमि कहती हैं कि सर्बानंद काफी भावुक हैं. जब वह कालेज में थे तो असम आंदोलन हुआ और वह छात्र संगठन से जुड़ गए. वह याद करती हैं कि छात्र नेता के तौर पर सर्बानंद काम में ऐसा लगे कि कई-कई दिन तक घर नहीं आते थे.
डालिमि कहती हैं कि यही एक कारण था कि उन्होंने शादी तक नहीं की. वह कहती हैं कि परिवार के लोगों ने शादी के लिए उन पर दबाव भी बनाया, मगर सर्बानंद इसे टालते रहे. सर्बानंद जिस समय डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय में स्नातक की पढाई कर रहे थे उस दौरान एक बार वे मिस्टर डिब्रूगढ़ युनिवर्सिटी रह चुके हैं.

राज्य में सर्बानंद तब सुर्खियों में आए जब उनकी एक याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 22 साल पुराने विवादास्पद अवैध प्रवासी पहचान ट्रिब्यूनल (आईएमडीटी) क़ानून को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था.
सोनोवाल ने इसे स्थापित किया कि आईएमडीटी एक्ट के रहते असम में विदेशियों की पहचान या निष्कासन का काम संभव नहीं है. इसके बाद प्रदेश में उनकी छवि एक अहम नेता के रूप में बनी.
हालांकि आईएमडीटी एक्ट खारिज कराने का श्रेय लेने से पार्टी के कुछ शीर्ष नेता सर्बानंद से नाराज भी हो गए थे. एजीपी में लंबे समय तक उनके साथ रहे और अब असम कांग्रेस के प्रवक्ता अपूर्व भट्टाचार्य के मुताबिक़ क़ानूनी लड़ाई का खर्च एजीपी के पार्टी फंड से दिया गया था.

सर्बानंद पर ऐसे भी आरोप लगते रहे हैं कि जब प्रदेश में एजीपी की सरकार थी तब उन्होंने पार्टी में होते हुए भी ‘सीक्रेट किलिंग’ का विरोध नहीं किया. साल 1998 से 2001 के बीच प्रफुल्ल कुमार महंता की सरकार के दौरान अज्ञात हमलावरों ने चरमपंथी संगठन उल्फा के काडरों के रिश्तेदारों और समर्थकों की बड़ी तादाद में हत्या कर दी थी.
साल 1989 से ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के महासचिव रहे डॉक्टर समुज्जवल भट्टाचार्य ने लंबे समय तक सर्बानंद सोनोवाल के साथ बतौर छात्र नेता काम किया है. 1992 से 1998 तक जब सोनोवाल आसू के अध्यक्ष थे तब भट्टाचार्य छात्र संगठन के महासचिव थे.
अब आसू और नॉर्थ-ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन के सलाहकार डॉक्टर भट्टाचार्य बताते हैं कि एक बार राज्य में भंयकर बाढ़ आई थी और वे आसू नेताओं के साथ बाढ़ प्रभावित गांवों में राहत कार्य के लिए गए थे.

वहां इतनी परेशानियां थी कि खाना तक के लिए कुछ नहीं मिलता था. लेकिन तनाव के बीच भी फुर्सत के समय सोनोवाल अक्सर सभी साथियों को गाना सुनाते थे. उनको बिहू गीत गाने का बड़ा शौक है.
चूंकि आसू का ड्रेस कोड सफ़ेद शर्ट और काले रंग की पतलून है, इसलिए सर्बानंद को आज भी इन्हीं रंगों के कपड़े पहनना पसंद है. उन्हें क्रिकेट और पुरानी फ़िल्में देखना काफी पसंद है. शोले फिल्म का तो उन्हें हर डायलॉग याद है.
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