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कांग्रेस शासन : देश की सिर्फ 7% आबादी पर सिमट गया

अब बड़े राज्यों में सिर्फ कर्नाटक में सरकार 15 अगस्त, 1947 को आजाद होने के बाद देश में पहला लोक सभा चुनाव 1951-52 में हुए. कांग्रेस को आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने का जबरदस्त फायदा मिला. लोकसभा में 364 सीटों पर सफलता मिली. कुल मतों का 45 फीसदी अकेले कांंग्रेस को मिला. पहली […]

अब बड़े राज्यों में सिर्फ कर्नाटक में सरकार
15 अगस्त, 1947 को आजाद होने के बाद देश में पहला लोक सभा चुनाव 1951-52 में हुए. कांग्रेस को आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने का जबरदस्त फायदा मिला. लोकसभा में 364 सीटों पर सफलता मिली. कुल मतों का 45 फीसदी अकेले कांंग्रेस को मिला. पहली लोक सभा में कांग्रेस को टक्कर का विपक्ष नहीं मिला था. लोगों के मन में सहानूभूति भी थी और नेहरू का करिश्मा, जिसने उसे इतनी बड़ी जीत दिलाई. दूसरे लोक सभा में भी इससे थोड़ी बेहतर हुई पार्टी को 371 सीटों पर जीत हासिल हुई .
कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ आपातकाल के बाद से गिरने लगा. विपक्ष लगभग हर चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ इसे मुद्दे को उठाता है. 1971 में कांग्रेस को 351 सीटें मिली थी. आपातकाल के बाद उसे मात्र 154 सीटों से संतोष करना पड़ा. इदिरा गांधी और संजय गांधी भी चुनाव हार गये थे. लेकिन, 1980 के लोस चुनाव में पार्टी ने जबरदस्त वापसी की. उसे 351 सीटों पर जीत हासिल हुई .
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में 409 सीटों पर पार्टी को जीत मिली. कांग्रेस की सीटों में गिराव इसके बाद तेजी से शुरू हुआ. 1989 के बाद अकेले दम पर शासन करने की कूबत उसमें नहीं रही. वर्ष 2014 में हुए लोक सभा चुनाव में पार्टी को मात्र 44 सीटों से संतोष करना पड़ा. केंद्र के साथ – साथ राज्यों में भी कांग्रेस का अवसान इसी तरह हुआ है. इस समय कांग्रेस सिर्फ हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और उत्तराखंड में सत्ता में है. इन राज्यों में देश की कुल आबादी मात्र 7.03 % हिस्सा ही रहता है. बिहार जैसे कुछ राज्यों में कांग्रेस सरकार में सहयोगी की भूमिका में भी है.
1967 में कांग्रेस के हाथ से निकले थे नौ राज्य
आजादी के पहले हुए आम चुनाव में कांग्रेस कुछ राज्यों को छोड़ कर सभी राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब हो गयी थी. 1957 में केरल विधानसभा के चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को भाकपा ने हरा दिया था, लेकिन 1960 में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने केरल में फिर सत्ता हासिल कर ली. नेहरु के समय तक कहें तो कांग्रेस का देश में एकछत्र राज्य था.
1967 में नौ राज्यों में कांग्रेस सत्ता विहीन हुई और मिलीजुली सरकारें बनीं. 1967 में ऐसे पहले आम चुनाव हुए, जिनमें नेतृत्व करने के लिए नेहरूजी नहीं थे. केंद्र में कांग्रेस ने सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन तमिलनाडु (जिसे तब मद्रास कहा जाता था) में द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम ने ठीक-ठाक बहुमत हासिल किया. तब कांग्रेस विरोधी लहर शुरू हुई थी. 1967 में कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों और असंतुष्ट कांग्रेसियों के एक गंठबंधन से भी हार स्वीकारनी पड़ी और बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा उड़ीसा में भी गैरकांग्रेसी गठबंधन सरकारें बनीं. 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस ने केंद्र और कई उत्तरी राज्यों में सत्ता गंवा दी. तब भी 1957 में केरल, 1967 में तमिलनाडु, 1977 में पश्चिम बंगाल और 1983 में आंध्र प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस एक बड़ी पार्टी थी.
…और साझेदार 1 राज्य में सरकार बिहार 15.58%
थरूर-सिंधिया ने दी सुधरने की सलाह
नयी दिल्ली : पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस को उसके दो नेताओं ने आड़े हाथों लिया. कांग्रेस के सांसद शशि‍ थरूर ने नेतृत्व बदलने की सलाह दे डाली, वहीं राहुल गांधी के करीबी ज्योतिरादित्य सिंधि‍या ने कहा कि कांग्रेस को खुद के बारे में सोचने की जरूरत है.
अब िसर्फ 7 राज्यों में सरकार
राज्य एवं देश की कुल आबादी का प्रतिशत
कर्नाटक 5.0%
उत्तराखंड 0.8%
हिमाचल 0.6%
मणिपुर 0.2%
मेघालय 0.2%
मिजोरम 0.1%
पुडुचेरी 0.1%
कुल 7%

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