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एक बार गुरु गोविंद साहब के कुछ शिष्य उनके पास आये और उनसे उलाहना के स्वर में बोले, ‘गुरु जी! आपके कहने पर हम हर रोज जप करते हैं, लेकिन इससे हमें कोई लाभ नहीं होता है. इसका क्या कारण है?’ गुरु जी ने युवा शिष्यों की बात सुन कर कुछ कहा नहीं. वे सिर्फ […]

एक बार गुरु गोविंद साहब के कुछ शिष्य उनके पास आये और उनसे उलाहना के स्वर में बोले, ‘गुरु जी! आपके कहने पर हम हर रोज जप करते हैं, लेकिन इससे हमें कोई लाभ नहीं होता है. इसका क्या कारण है?’

गुरु जी ने युवा शिष्यों की बात सुन कर कुछ कहा नहीं. वे सिर्फ मुस्कुराये. कुछ देर बाद उन्होंने मदिरा से भरा एक घड़ा मंगाया और उन शिष्यों को बुला कर कहा, ‘इससे कुल्ला कर के घड़े को खाली कर दो.’ शिष्यों ने वैसा ही किया.

तब गोविंद सिंह जी ने पूछा, ‘क्या घड़े की सारी मदिरा समाप्त हो गयी है और क्या तुम लोगों को नशा चढ़ा?’ सभी शिष्य बोले, ‘घड़ा तो खाली हो गया, लेकिन जब मदिरा हमारे पेट में गयी ही नहीं, तो नशा कैसे चढ़ेगा.’ गुरु जी मुस्कुराये और बोले, ‘जिस तरह गले के नीचे न उतरने से मदिरा का असर नहीं पड़ा. ठीक उसी तरह जब तक आप हृदय से जप नहीं करोगे, उसमें डूब नहीं जाओगे, उसका कोई लाभ नहीं मिलेगा.’

गुरु गोविंद साहब जी ने कितनी सरलता से इस गहरी बात को समझा दिया. आज के समय में बच्चों के साथ ही बड़ों को भी इस बात से सीख लेनी चाहिए. बच्चों को इसलिए, क्योंकि कई बार बच्चे पढ़ाई के दौरान केवल चीजों को दोहराते हैं, रट्टा मारते हैं, लेकिन उस बात को गहराई से समझ कर अपनी भीतर नहीं उतारते. यही वजह है कि उन्हें उत्तर याद करने में वक्त लगता है और याद हो भी जाता है, तो परीक्षा के दौरान सब विस्मृत हो जाता है. यही बात बड़ों पर भी लागू होती है. हम कई अच्छी बातें अखबारों, पुस्तकों में पढ़ते हैं. उसकी तारीफ करते हैं और फिर भूल जाते हैं. जब तक हम उन्हें दिल से नहीं अपनायेंगे, हमारा पढ़ना बेकार है.

daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

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