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प्रकाश को आने दो

जया यशपाल अमीर परिवार में जब बंटवारा होता है, तब तरह–तरह के धनों का बंटवारा होता है और जब गरीब परिवार में बंटवारा होता है, तब टूटे हुए खाट, फटे हुए टाट, लिये हुए कर्ज का बंटवारा होता है. सूरज और चंद्रमा के बीच जब बंटवारा हुआ था, तब टूटे हुए खाट और फटे हुए […]

जया यशपाल
अमीर परिवार में जब बंटवारा होता है, तब तरह–तरह के धनों का बंटवारा होता है और जब गरीब परिवार में बंटवारा होता है, तब टूटे हुए खाट, फटे हुए टाट, लिये हुए कर्ज का बंटवारा होता है. सूरज और चंद्रमा के बीच जब बंटवारा हुआ था, तब टूटे हुए खाट और फटे हुए टाट के लिए दोनों भाइयों में मारामारी की नौबत आ गयी थी. महाजन का कर्ज अदा करने के लिए आधा-आधा कर्ज अदा करने में किसी तरह की कहासुनी नहीं हुई थी. कर्ज देनेवाले महाजन के यहां दोनों भाई एक साथ गये और महाजन के सामने दोनों ने कबूल लिया कि आपका दिया हुआ कर्ज हम दाेनों भाई अपने-अपने हिस्से का कर्ज चुका देंगे. महाजन को चाहिए सूद. मूल बना रहे, तो क्या कहने?
गरीब का परिवार मिल कर रहता है, तब आज या कल कुछ न कुछ विकास कर लेता है. मगर लड़-झगड़ कर अलग हुआ परिवार टूटता ही जाता है. क्योंकि कोई सहारा देनेवाला नहीं होता.
‘‘चंद्रमा, तुमने प्रकाश को स्कूल भेज कर बहुत ही अच्छा किया. कम-से-कम अपने खानदान में एक बेटा तो निकला, जो पढ़ कर होनहार निकला.’’
सूरज ने अपने छोटे भाई के बेटे प्रकाश को स्नेह से निहारते हुए कहा. उसे कसक थी कि अपने भाई से अलग होते ही उसने अपने बेटे को स्कूल भेजने के बजाय कलकत्ता भेज दिया था. सोचा था कि कलकत्ता में कुछ कमा कर वह सुखी हो जायेगा. मगर उसका बेटा जब कलकत्ता में हाथ रिक्शा खींचने का काम करते हुए बीमार बन गया, तब उसका दिल बैठ गया.
‘‘भैया, तुमने अपने दिल की बात कही, तब मुझे बहुत अच्छा लगा. बंटवारा के समय जब हम दोनों टूटे खाट और टाट को बांटने के लिए झगड़ रहे थे, तब मुझे याद है कि रौशन ने रोते-रोते कहा था कि जब घर में कुछ है ही नहीं, तब बंटवारा किस बात का? तुमने गुस्से में रौशन को कलकत्ता भेज दिया. मैं गुस्से में उसे जाने से रोक नहीं सका. उसका जीवन बरबाद हो गया. हाथ रिक्शा खींचना भी भला कोई काम है?’’
चंद्रमा ने अफसोस करते हुए कहा. उसका गला भर आया. अपने भतीजे रौशन को वह बहुत स्नेह करता है. भाई अलग है तो क्या हुआ?
‘‘चंद्रमा तुम ठीक कहते हो. रौशन को कलकत्ता भेज कर हमने उसका जीवन बेकार कर दिया. सूरज ने कहा. उसका गला रूंध गया.
‘‘अभी वक्त बिगड़ा नहीं है भैया, रौशन को घर वापस बुला लो. हम, प्रकाश और रौशन मिल कर बटाई पर खेत लेकर सब्जी की खेती करेंगे. मेरा विश्वास मानो.’’ चंद्रमा ने उत्साहित होकर कहा.
‘‘प्रकाश अब सब्जी की खेती करेगा? क्या तुमने उसका पढ़ना छुड़ा दिया?’’ सूरज ने अकबका कर पूछा. भले वह अपने भाई से अलग था, मगर अपने भतीजे प्रकाश को वह हर हालत में पढ़ना और आगे बढ़ना देखना चाहता था. उसे अपने पिता की याद आ गयी.
‘‘पिता जी आपने मेरा नाम सूरज और मेरे छोटे भाई का नाम चंद्रमा रखा. इस बात पर गांव के लोग बहुत आश्चर्य करते हैं.’’ उसने एक दिन अपने पिता जी से पूछा था.
‘‘गांव का … ब्राह्मण तो तुम्हारा नाम लेदवा रखा था. क्योंकि तुम्हारा पेट थोड़ा निकला हुआ था.’’ पिता जी ने बताया था.
‘‘मैंने उस नीच ब्राह्मण को उल्टे हाथ उसके मुंह पर दे मारा और कहा कि तुमने अपने बेटे का नाम लेदवा क्यों नहीं रखा? उसका भी पेट तो निकला हुआ है?’’ पिताजी ने कहा था और हिदायत दी थी कि गांव के कंटाहा ब्राह्मणों के घनचक्कर में कभी मत पड़ना.
‘‘प्रकाश की पढ़ाई छुटना ही समझो. आइएससी तो किसी तरह इसने कर ली. इस साल मेडिकल में पढ़ने की परीक्षा में भी यह पास कर गया.
अब मेडिकल काॅलेज में एडमिशन के लिए इसे तीस हजार रुपये चाहिए और हर महीने कम से कम पांच हजार रुपये. अब गरीब आदमी चाह कर भी अपने होनहार बच्चे को डाक्टर, इंजीनियर की पढ़ाई नहीं पढ़ा सकता.’’ चंद्रमा ने मन मसोस कर कहा और गरीबी की ग्लानि से सिसकने लगा.
गरीब की सबसे बड़ी ताकत है रोना, सबसे बड़ा उद्धारक है रोना, सबसे अंतिम उपाय है रोना. रोते ही रोते गरीब की जिंदगी बीतती है और रोते ही रोते उसकी मौत हो जाती है.
‘‘यह तुमने क्या सुना दिया भाई? क्या खानदान में फैलता हुआ प्रकाश बुझ जायेगा?
अपने छोटे भाई के द्वारा अपने भतीजे की डाक्टरी की पढ़ाई की बात सुन कर सूरज की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. गरीबी की हालत में उसका बेटा कलकत्ता में हाथ रिक्शा खींचता है और अब शिक्षित होकर उसका भतीजा सब्जी की खेती करेगा. पिताजी ने अपने बेटों का नाम सूरज और चंद्रमा रखा था और पोतों का नाम रौशन और प्रकाश. मगर गरीबी के कारण सभी रोशनीविहीन हो जायेंगे? गरीबी की मार झेलता हुआ सूरज हठात तेजोमय हो गया.
‘‘चंद्रमा मेरे भाई, प्रकाश की पढ़ाई मत छुड़ाओ. तुमने तो प्रकाश को पढ़ाने और बीमार पत्नी के इलाज में अपना कुछ खेत गिरवी रख दिया, कुछ बेच भी दिया, मगर मेरा खेत अभी बचा हुआ है. मैं अपना कुछ खेत गिरवी रख कर तुझे तीस हजार रुपये एक-दो दिन में देता हूं. प्रकाश को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन जरूर ले दो.’’ सूरज ने अपने भाई को छाती से लगाकर कहा. उसे लगा उसके पिता जी इस नेक काम के लिए अश्रुमय होकर उसे आशीर्वाद दे रहे हैं.
‘‘यह तुम क्या कह रहे हो भैया? प्रकाश की पढ़ाई के लिए तुम अपना खेत गिरवी रख दोगे?’’ चंद्रमा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ.
‘‘हां छोटे भाई. प्रकाश पढ़ेगा, तब पूरा खानदान रोशनमय हो जायेगा.’’ सूरज ने कहा.‘‘एक ही शर्त पर तुम्हें इस काम के लिए अपना खेत गिरवी रखने दूंगा कि रौशन को कलकत्ते से वापस बुलवा कर उसे भी पढ़ने के लिए स्कूल में दाखिला करा दो.’’ चंद्रमा ने कहा. ऐसा कहते हुए उसकी आंखें भर आयी.
‘‘हां बड़े पिताजी, पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती. मैं भैया को घर में समय-समय पर पढ़ा कर उन्हें योग्य बना दूंगा. मैंने पढ़ा है कि माता सावित्री बाई जब विवाह करके बहू बन कर पुणे आयी थी, तब भारत पिता जोतिराव (ज्योतिबा फुले) ने उन्हें घर पर स्वयं भी पढ़ाया था और स्कूल में दाखिला दिला कर भी पढ़ाया था.’’
यह कहते हुए प्रकाश ने अपने बड़े पिता का चरण छू लिया. सूरज ने प्रकाश को गले लगा कर अपने मन का संकल्प पूरा किया.

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