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कालेधन पर लगाम : अंकुश का दिख रहा है असर
काले धन पर लगाम कसने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाये गये कदम अर्थव्यवस्था में घुन की तरह लिपटी कालेधन की समस्या के प्रभावी समाधान की दिशा में मोदी सरकार ने अनेक पहलें की है. हालांिक, इस मामले में निर्णायक नतीजे आने में काफी समय लग सकता है क्योंकि यह एक जटिल समस्या है जिसके […]
काले धन पर लगाम कसने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाये गये कदम
अर्थव्यवस्था में घुन की तरह लिपटी कालेधन की समस्या के प्रभावी समाधान की दिशा में मोदी सरकार ने अनेक पहलें की है. हालांिक, इस मामले में निर्णायक नतीजे आने में काफी समय लग सकता है क्योंकि यह एक जटिल समस्या है जिसके तार विदेशों तक फैले हुए हैं.
राजनीतिक क्रियाकलापों से लेकर कारोबार तक तथा रोजमर्रा के जीवन में इसकी गहरी पैठ है. एक वैध आर्थिक तंत्र के भीतर सक्रिय कालेधन का अवैध विस्तार न सिर्फ सरकारी राजस्व के लिए नुकसानदेह है, बल्कि अर्थव्यवस्था के विकास में भी बड़ा अवरोध है.
इसकी रोकथाम के लिए कानूनी व्यवस्था से कहीं अधिक जरूरत मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की है. सर्वोच्च न्यायालय के अधीन चल रही विशेष जांच दल, सरकारी प्रयास, वित्तीय संस्थाओं और जांच एजेंसियों की साझा गतिविधियों को तेज करते हुए दोषियों को दंडित करने की आवश्यकता है. साथ ही, कालेधन के उत्पादन को रोकने के लिए प्रशासनिक और वित्तीय कदम उठाने होंगे. कालेधन पर मौजूदा स्थिति के आकलन के साथ प्रस्तुत है इन-डेप्थ…
कालाधन के स्रोतों को बंद करना जरूरी
संदीप बामजई
वरिष्ठ पत्रकार एवं आर्थिक मामलों के जानकार
पिछले वर्षों में कालेधन पर रोक लगाने के लिए सरकार ने जो भी बड़े कदम उठाये हैं, उनसे फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि कालेधन की समस्या खत्म होनेवाली है. ऐसा इसलिए, क्योंकि जब तक कालाधन पैदा होने के स्रोत पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक इसे रोक पाना मुश्किल है.
कालेधन के पैदा होने के स्रोत तो बहुत हैं, लेकिन भारत में कालेधन का सबसे बड़ा स्रोत ‘पार्टिसिपेटरी नोट’ (पी-नोट) है. पी-नोट के माध्यम से ही विदेशी निवेशक अप्रत्यक्ष रूप में भारत के शेयर बाजार में निवेश करते हैं. यानी जो विदेशी निवेशक सेबी में पंजीकरण कराये बिना ही शेयर बाजार में पैसा लगाना चाहते हैं, वे इसी पी-नोट के जरिये लगाते हैं. इसमें निवेशक का नाम नहीं पता चलता है. इस तरह का बेनामी निवेश भारत में पहले यह 50 से 55 प्रतिशत तक होता था, लेकिन पिछले तीन-चार साल से कालेधन पर अंकुश की कोशिशों के बीच यह घट कर 40 प्रतिशत हो गया है.
कुछ कम तो हुआ है, लेकिन अब भी यह धड़ल्ले से जारी है. जाहिर है, जो सरकार कालाधन उत्पन्न करनेवाले इस 40 प्रतिशत अप्रत्यक्ष निवेश को रोकने के लिए पी-नोट बंद नहीं कर सकती, वह कालेधन पर पूरी तरह से अंकुश लगा पायेगी, इसमें संदेह है. इस पी-नोट को दो और नामों से जाना जाता है- पॉलिटिशियंस नोट और प्रमोटर्स नोट. जब तक यह पी-नोट की काली व्यवस्था बंद नहीं होगी, कालाधन पर अंकुश नहीं लग पायेगा.
कालेधन को लेकर बीते दो साल में जितनी बातें की गयी हैं कि कालेधन पर इतना रोक लगा है, उतना रोक लगा है, उनसे जमीनी स्तर पर बड़ा बदलाव नहीं दिखा है. यूपीए सरकार के दौरान तो कुछ नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भी भेजे गये, लेकिन पिछले दो साल से सिर्फ कालेधन पर ठोस कार्रवाई की हवा उड़ाई जा रही है, . यह ठीक उसी तरह है, जैसे अगस्ता वेस्टलैंड मामले में घूस देनेवाले तो पकड़े गये, लेकिन घूस लेनेवालों का अता-पता नहीं है.
सिर्फ आंकड़े आ रहे हैं कि इतने की टैक्स चोरी पकड़ी गयी, लेकिन ये चोर कौन थे, उनके बारे में कुछ पता ही नहीं है. अभी सरकार ने दावा किया है कि पिछले दो साल में कठोर कार्रवाई करके लगभग 50,000 करोड़ रुपये की अप्रत्यक्ष कर चोरी पकड़ी गयी है. मैं देखना चाहूंगा कि ये कैसे आंकड़े हैं और कहां से आये हैं, क्योंकि पिछले साल भारत सरकार की एमनेस्टी स्कीम (कर छूट योजना) बुरी तरह से फेल हो गयी थी. इस स्कीम में था कि विदेशों में कालाधन छुपानेवाले 50 प्रतिशत टैक्स देकर अपने कालेधन को वापस भारत लायें, तो सरकार उन पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी.
एक तरफ तो भारतीय आयकरदाता मेहनत करके कमाता है, 32-33 प्रतिशत तक टैक्स भरता है, फिर भी उसको इतनी सहूलियतें नहीं होतीं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ विदेश में कालाधन छुपानेवालों पर सरकार कार्रवाई न करने की छूट दे रही है. इस तरह की भेदभाव वाली नीति से कालाधन वापस लाने की मंशा पर सिवाय संदेह के कुछ और नहीं सोचा जा सकता.
सरकार को चाहिए कि उन तमाम स्रोतों पर रोक लगाने की नीति या योजना बनाये, जहां से कालाधन पैदा हो रहा है. उन तरीकों पर अंकुश लगाएं, जिनके जरिये हमारे पैसे या टैक्स चोरी करके विदेशों में भेजे जाते हैं. इसके लिए दो ही सामान्य सी प्रक्रिया है. एक है- अंडर इन्वॉयसिंग (चालान के तहत) और दूसरी है- ओवर इन्वॉयसिंग (चालान के ऊपर). अंडर इन्वाॅयसिंग- जब हम कोई सामान बाहर भेजते हैं, जिसकी कीमत 60 रुपये है, तो हम उसे 40 दिखाते हैं और विदेश में उसे बेचते हैं 60 रुपये में.
ओवर इन्वॉयसिंग- जब हम कोई सामान आयात करते हैं, तो उसकी कीमत दिखाते हैं 80 रुपये, लेकिन लेते हैं सिर्फ 50 रुपये. यहां जो 60-40 या 80-50 में रुपये का गैप है, यही टैक्स चोरी को जन्म देता है और कालाधन बनता है. एक जमाने से यह चलता चला आ रहा है हमारे देश में, लेकिन कोई सरकार इन प्रक्रियाओं पर रोक नहीं लगा पा रही है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
– काला धन जमा करनेवालों के खिलाफ कठोर दंडात्मक प्रावधानों के साथ एक नया काला धन अधिनियम लागू किया गया.
– उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार, 29 मई, 2014 को जारी अधिसूचना के तहत सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एमबी शाह की अध्यक्षता में विशेष जांच दल का गठन. विशेष जांच दल की कई सिफारिशों के मुताबिक सरकार ने
कार्रवाई की.
– घरेलू कालेधन को बाहर लाने के लिए नयी आय घोषणा योजना शुरू की गयी.
वित्त अधिनियम, 2015 के द्वारा काला धन शोधन अधिनियम, 2002 में संशोधन
कालाधन शोधन अधिनियम के अंतर्गत अपराध से होनेवाली आय की परिभाषा को संशोधित किया गया, जिससे देश के बाहर स्थित आरोपित की संपत्ति को जब्त न कर पाने की स्थिति में देश के भीतर समान कीमत की संपत्ति की कुर्की या अधिकरण को संभव किया जा सके.
कालाधन शोधन अधिनियम में अतिरिक्त धारा जोड़ी गयी ताकि विशेष न्यायालय के निर्देश पर कालाधन शोधन के अपराध के परिणामस्वरूप हानि उठाने वाले दावेदार को जब्त संपत्ति वापस लौटायी जा सके.
सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 132 में सीमा शुल्क से जुड़े झूठी घोषणाओं या दस्तावेजों से जुड़े अपराधों को विधेयक में अपराध बना दिया गया ताकि व्यापार पर आधारित कालेधन के शोधन को रोका जा सके.
कालाधन (अघोषित विदेश आय और संपत्ति) और अधिरोपण कर अधिनियम, 2015 की धारा 51 के अंतर्गत किसी कर, दंड या ब्याज से जानबूझ कर बचने के अपराध को नये कानून के अंतर्गत अधिसूचीबद्ध अपराध बनाया गया.
जोखिम राहत के लिए राजस्व विभाग द्वारा उठाये गये कदम
पीएमएलए की उपधारा 2 (1) (एसए) (6) के अंतर्गत निर्धारित व्यापार या व्यवसाय करनेवाले को पिछले साल 15 अप्रैल को बीमा आढ़ती की अधिसूचना.
पीएमएलए की उपधारा 2 (1) (एसए) (2) के अंतर्गत निर्धारित व्यापार या व्यवसाय करने वाले को पिछले साल 17 अप्रैल को पंजीयक या उपपंजीयक अधिसूचित किया गया.
– विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 में वित्त अधिनियम, 2015 के द्वारा हुए संशोधनों के तहत फेमा की धारा चार के उल्लंघन के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति के विदेशी मुद्रा विदेशी प्रतिभूति या अचल संपत्ति अर्जित करने की स्थिति में भारत में समान राशि को जब्त करने और अधिग्रहण करने का प्रावधान किया गया है.
असंतोषजनक प्रगति
सरकारी दावों के बावजूद कालेधन की वापसी और उस पर नियंत्रण की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति पर प्रश्नचिह्न भी हैं. विदेशों में अवैध रूप से रखे गये भारतीय धन के सही आंकड़ों की जानकारी सरकार के पास नहीं है. मोदी सरकार ने कालेधन कानून के अनुसार पिछले साल जुलाई से सितंबर तक स्वैच्छिक आय की घोषणा का अवसर दिया था.
644 घोषणाएं ही हुईं जुलाई से सितंबर, 2015 के बीच तीन महीनों की योजना अवधि में.
4,164 करोड़ की विदेशी संपत्तियों की घोषणा हुई और 446 करोड़ कर के रूप में वसूले गये.
10 आय की स्वैच्छिक घोषणा करने की योजनाएं आ चुकी हैं 1951 के बाद से.
10.89 करोड़ वसूले गये थे 1951 की योजना में.
9,745 करोड़ बतौर कर वसूले गये 1997 की योजना में. यह अब तक की सफलतम योजना रही है.
कालेधन के विदेश भेजने के मामले में भारत चौथे स्थान पर
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय लेन-देन के मामले पर शोध करनेवाली संस्था ग्लोबल फाइनेंसियल इंटेग्रिटी की रिपोर्ट के मुताबिक कालेधन को विदेश भेजने के संदर्भ में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है.
51 बिलियन डॉलर कालाधन हर साल भारत से विदेश भेजा गया 2004 से 2013 के बीच.
139 बिलियन डॉलर कालाधन चीन से हर साल बाहर भेजा गया. चीन इस सूची में अव्वल है. रूस 104 बिलियन डॉलर और मेक्सिको 52.8 बिलियन डॉलर वार्षिक के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं.
1.1 ट्रिलियन डॉलर अवैध रूप से विकासशील और बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं से विदेशों में भेजे गये 2013 में. वर्ष 2013 तक के आंकड़े ही उपलब्ध हैं. 510 बिलियन डॉलर भारत से बाहर भेजे गये कालेधन के रूप में 2004-2014 तक.
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