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किसी को ”इंदिरा गांधी”, तो किसी को बनाती हैं ”झांसी की रानी”

रिंकु झा किसके चेहरे पर कौन-सा लुक फिट होगा, लुक के अनुसार कौन-सा ड्रेसअप मैच करेगा, इन बातों का निर्णय लेने में शिल्पा सिंह को मिनट भर लगता है. वह निर्णय लेती हैं और उनका काम शुरू हो जाता है. कार्यक्रम के लिए बच्चे का चयन करना, कैरेक्टर के हिसाब से उन्हें तैयार करना, फिर […]

रिंकु झा
किसके चेहरे पर कौन-सा लुक फिट होगा, लुक के अनुसार कौन-सा ड्रेसअप मैच करेगा, इन बातों का निर्णय लेने में शिल्पा सिंह को मिनट भर लगता है. वह निर्णय लेती हैं और उनका काम शुरू हो जाता है. कार्यक्रम के लिए बच्चे का चयन करना, कैरेक्टर के हिसाब से उन्हें तैयार करना, फिर उनके लिए ड्रेस तैयार करना शिल्पा की कारीगरी है. स्कूल में फैंसी ड्रेस कंपीटिशन हो या एनुअल फंक्शन, बस शिल्पा सिंह को संपर्क किया जाता है. इसके बाद की सारी जिम्मेवारी उनकी होती है. किसी को इंदिरा गांधी का रूप देना हो, किसी को झांसी की रानी बनाना हो, किसी को पेड़ बनना हो या फिर जंगल का राजा, इन सबकी पूरी तैयारी कराती हैं शिल्पा.
और चल पड़ा यह सिलसिला
शिल्पा सिंह ने घर से फैंसी ड्रेस बनाने का काम 1998 में शुरू किया. शुरुआत में थोड़ी परेशानी हुई. उन दिनों स्कूलों में फैंसी ड्रेस कंपीटिशन भी कम होता था. लेकिन अब शिल्पा को तीन-चार महीने पहले से ही स्कूलों से ऑर्डर आने लगते हैं. अब उन्हें स्कूल जाने की भी जरूरत नहीं होती. शिल्पा बताती हैं- मैने घर से ही इसकी शुरुआत की थी. सबसे पहले 1998 में डीपीएस, पटना में फैंसी ड्रेस कंपीटिशन आयोजित किया गया. इसके लिए मैने ड्रेसेस डिजाइन किये. इसके बाद तो यह सिलसिला चल पड़ा.
हर स्कूल का प्रोग्राम नयी चुनौती होता है. दरअसल, एक स्कूल के लिए सैकड़ों ड्रेस तैयार करने होते हैं. कई ड्रेस एक जैसे होते हैं. इसके लिए हमें पूरा फोकस रहना पड़ता है. ड्रेस के साथ उसकी ज्वेलरी भी तैयार की जाती है, जो कपड़े की ही बनती है. एक स्कूल के लिए दो से तीन हजार तक ड्रेस तैयार किये जाते हैं.
शिल्पा आज अपने काम से 15 लोगों को रोजगार दे रही हैं. उन्होंने बताया कि ड्रेस बल्क में तैयार होते हैं, फिर भी एक-एक की फिनिशिंग पर पूरा ध्यान दिया जाता है.स्कूलों से केवल बच्चों की संख्या और ड्रेसअप का कलर लेते हैं. हमारी 15 लोगों की टीम इस काम को समय पर पूरा करती है. शुरुआत एक हजार रुपये से हुई थी, पर आज एक लाख का टर्न ओवर है.
थीम पर होता है फोकस
प्राय: फैंसी ड्रेस कंपीटिशन अर्थ डे, वाटर डे, इनवायरमेंट, डायवर्सिटी आदि थीम पर आयोजित होते हैं. शिल्पा बताती हैं कि हर बच्चे के साइज का खास ख्याल रखा जाता है, ताकि वह ड्रेस उस पर बिल्कुल फिट बैठे. स्कूल जाकर हम भाग लेनेवाले उन सारे बच्चों की माप लेते हैं. उसके बाद हमारा काम शुरू होता है. यह हमारे काम की क्रेडिबिलिटी है कि आज पटना के अधिकतर स्कूल इसके लिए सीधे हमें संपर्क करते हैं.

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