
कांग्रेस पार्टी बहुत कठिन दौर से गुजर रही है. उसकी राजनीतिक हैसियत में कमी आई है. पार्टी न तो चुनाव जीत पा रही है और ना ही विपक्ष की भूमिका ठीक से निभा पा रही है.
भ्रष्टाचार के मामले में अब तक कोई सबूत सामने नहीं आया है जिससे कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी पर कोई सीधा इल्ज़ाम लगे, लेकिन रक्षा सौदे को लेकर ऐसे हालात बने हुए हैं.
सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी, रक्षा सौदे को लेकर काफी संवेदनशील है. राजीव गांधी के राजनीतिक जीवन पर जो बोफ़ोर्स सौदे के दाग़ लगे हैं वो अभी तक नेहरू परिवार का पीछा नहीं छोड़ रहा है.
नेहरू परिवार के ऊपर कोई इल्ज़ाम लगता है तो इससे सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी प्रभावित होती है.
उत्तराखंड में जो हुआ है, वैसी बातें तो पहले भी हुई है जब दल-बदल नियमों को लेकर उलट-फेर हुआ.
हमारे देश में जो दल-बदल क़ानून का प्रावधान है, उसका यहां के राजनीतिक दल और नेता लाभ उठाते हैं. इसे लेकर उठा-पटक चलती रहती है.
उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में जो घटनाएं हुई हैं उसको देखकर ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार कांग्रेस की सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है.

इस मामले में कोर्ट का फ़ैसला केंद्र सरकार के पक्ष में नहीं गया है तो इन सब बातों को लेकर कांग्रेस ‘लोकतंत्र बचाओ’ रैली के माध्यम से सामने आई है.
लोकतांत्रिक प्रणाली की एक ख़ूबसूरत बात यह है कि यहां हरेक को मौका मिलता है. सत्ता पक्ष को लगता है कि सब कुछ ठीक चल रहा है, वहीं विपक्ष को लगता है कि बहुत कमियां हैं और भी बहुत कुछ किया जा सकता है.
इसलिए वो अपनी आवाज़ उठा रहे हैं. बीजेपी चूंकि बहुत सालों से विपक्ष में रही है इसलिए उनका संसद और बाहर दोनों जगह एक उग्र रवैया रहता है जो अभी भी कई बार लगता है कि बदस्तूर जारी है.
सारी बात इस पर निर्भर है कि कामयाबी किसको कितनी मिलती है. अगर असम जैसे राज्य में जहां बीजेपी नहीं है, वहां अगर वो जीत जाती है तो उसके लिए यह बड़ी उपलब्धि होगी.
उसी तरीक़े से उत्तराखंड में जो शक्ति परीक्षण होने वाला है, उसमें अगर हरीश रावत सरकार फिर से आ जाती है तो यह मोदी सरकार के लिए एक बड़ा झटका होगा.
(राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई से बीबीसी संवाददाता सुशीला सिंह से बातचीत पर आधारित)
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)