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पर्व एक, रूप अनेक

मकर संक्रांति शीत ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन का प्रतीक है. इस त्योहार का संबंध प्रकृति, ऋतु-परिवर्तन और कृषि से है. इस पावन दिवस पर लोग सुबह-सुबह नदी, सरोवर या घर पर ही स्नान कर तिल-गुड़, खिचड़ी (खिचड़ी की कच्ची सामग्री) ईश्वर को अर्पित करते हैं और प्रसाद खुद भी खाते हैं और […]

मकर संक्रांति शीत ऋतु की समाप्ति और वसंत के आगमन का प्रतीक है. इस त्योहार का संबंध प्रकृति, ऋतु-परिवर्तन और कृषि से है. इस पावन दिवस पर लोग सुबह-सुबह नदी, सरोवर या घर पर ही स्नान कर तिल-गुड़, खिचड़ी (खिचड़ी की कच्ची सामग्री) ईश्वर को अर्पित करते हैं और प्रसाद खुद भी खाते हैं और लोगों को भी खिलाते हैं.

सूर्य का उत्तरायण होना
बच्चो, तुम अपने दादा-दादी या माता-पिता से सुनते होगे कि आज से सूर्य उत्तरायण हो रहे हैं. दरअसल, आकाश की 12 राशियों में सूर्य के भ्रमण से ऋतु चक्र पूरा होता है . सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है. सूर्य जब तक कर्क से धनु राशि में रहता है तो उस 6 महीने की स्थिति को दक्षिणायण कहते हैं तथा जब तक सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि में रहता है तो इस 6 महीने की अविध को उत्तरायण कहते हैं. इस दिन से सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश होता है यानी कर्क से मकर राशि में.

क्यों है खाससंपूर्ण पृथ्वी को दो भागों में बांटा गया है उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध. भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में रहता है, मतलब यह कि सूर्य भारत से दूर रहता है, इस कारण हमारे देश में रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं.

मकर संक्रांति के दिन से सूर्य कर्कराशि से मकर राशि में प्रवेश करता है इसका मतलब है कि सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू कर देता है जिससे रातें छोटी और दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं. माना यह भी जाता है कि मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन से हम अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होते हैं जो हमें साकारात्मक उर्जा देती है. प्रकाश ज्ञान और चेतना का प्रतीक माना जाता है. प्रकाश अधिक होने से प्राणियों में चेतना और कार्य शक्ति में वृद्धि होती है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सामान्य तौर पर भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथि चंद्रमा की गति को आधार मानकर निश्चित की जाती है, पर मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निश्चित किया जाता है. यही कारण है कि मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही आता है. इस दिन हम विविध रूपों में सूर्य की उपासना करके उनके प्रति धन्यवाद प्रकट करते हैं.

स्वास्थ्य के लिए लाभदायक
प्रत्येक त्योहार की परंपरा को बनाने और मानने के पीछे कई ठोस कारण होते हैं. संक्रांति पर संपूर्ण भारत में अन्य खाद्य पदार्थों के साथ-साथ तिल और गुड़ से बने व्यंजन खाना अनिवार्य माना गया है. तिल में काबरेहाइड्रेड, लोहा, कैल्शियम तथा फॉस्फोरस पाया जाता है. यह पौष्टिक, सुपाच्य, स्वादिस्ट और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. इसमें विटामिन बी और सी भी पर्याप्त मात्र में पाया जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि मनुष्य के सिर में जितने कैल्शियम की जरूरत होती है उतना तिल के सेवन से मिल जाता है. इसी तरह गुड़ भी अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ, विटामिन, लोहा, कैल्शियम तथा फॉस्फोरस से युक्त होता है. यह हृदय को मजबूत करने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, जिससे जीवन शक्ति बढ़ती है. आयुर्वेद के अनुसार तिल-गुड़ का एक साथ सेवन शरद ऋतु में ठंड के प्रभाव को कम करके हमारे शरीर को अनेक प्रकार की बीमारियों से बचाता है. इसी वजह से लोग स्नान करके तिल-गुड़ से बने पकवान खाते हैं. असम में इस दिन बिहू त्योहार मनाया जाता है, तो दक्षिण भारत में पोंगल मनाते हैं.

सिंधी इसे लाल लोही के नाम से बुलाते हैं.
पश्चिम बंगाल में भी स्नान-ध्यान-दान का रिवाज है. यहां गंगासागर में मकर संक्रांति के दिन बहुत बड़ा मेला लगता है.

ऐतिहासिक महत्व
पहली मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर (सूर्य) अपने पुत्र शनि से मिलने खुद उनके घर जाते हैं. चूकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी है इस कारण इस दिन को मकरसंक्रान्तिकहते हैं. मान्यता यह भी है कि इस दिन देवनदी गंगा भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से गुजरती हुई सागर में जाकर मिल गई थी. श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर त्याग करता है, वह सीधा बैकुंठ (भगवान विष्णु का आवास) में जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपने शरीर त्यागने के लिए इस पवित्र दिन को ही चुना था.

संक्रांति के विविध रूपहिंदुओं द्वारा यह पर्व समस्त भारत में किसी न किसी रूप में काफी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है.

बिहार-झारखंड में मान्यता है कि इस दिन से ही सूर्य का स्वरूप तिल-तिल बढ़ता है. इस कारण इसे तिल संक्रांति भी कहते हैं. बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी के नाम से भी पुकारते हैं. इस दिन दही, चिवड़ा, तिल-गुड़ तथा खिचड़ी खाया जाता है. पश्चिम उत्तर प्रदेश में इसे संक्रान्तिकहते हैं.

उत्तरी भारत के पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर (13 जनवरी) को लोहड़ी त्योहार बड़ी धूमधाम से मानाया जाता है.

लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही इसकी तैयारी छोटे बच्चे करने लग जाते हैं. वे घर-घर जाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली इकट्ठा करते हैं. लोहड़ी की शाम को आग जलाकर लोग अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते और रेवड़ी, मक्के, मूंगफली और तिल की बनी हुई गजक की आहुति देते हैं. उत्तर प्रदेश में इस पर्व को मुख्य रूप से दान का पर्व माना जाता है. प्रति वर्ष इलाहाबाद में गंगा, यमुना, सरस्वती नदी के ‘संगम’ पर माघ मेला का आयोजन किया जाता है. महाराष्ट्र में लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़, हल्दी-कुमकुम बांटते हैं.

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